फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिए किसान उम्दा किस्म के खादबीज इस्तेमाल करता है और फसल की देखभाल करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ता. लेकिन कई बार फसल में कीटों का हमला हो जाता है जिस से फसल को बहुत नुकसान होता है.
अनेक किसान कीटों का हमला रोकने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का जम कर इस्तेमाल करते हैं जिस के नतीजे कई बार अच्छे नहीं होते क्योंकि रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करने से खेत की मिट्टी तो खराब होती ही है, साथ ही फसल में भी कुछ न कुछ जहरीलापन जरूर आ जाता है.
इस से बचने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने फैरोमौन ट्रैप नाम की एक ऐसी तकनीक ईजाद की है जिस में आर्गेनिक पदार्थ का इस्तेमाल होता है जो खेती के लिए भी सुरक्षित है.
यह फैरोमौन ट्रैप ल्यूर और ट्रैप (गंधपाश) 2 चीजों को मिला कर बना होता है इसलिए इसे गंधपाश के नाम से भी जाना जाता है.
यह एक तरह का साधारण सा बना हुआ उपकरण है. इस में कीप के आकार के मुख्य भाग पर लगे ढक्कन पर ल्यूर लगाया जाता है. इस में ल्यूर का इस्तेमाल नरपतंगों को मैथुन क्रिया के लिए अपनी तरफ खींचता है जिस से ट्रैप में फंस कर कीट मर जाते हैं.
गंध (फैरोमौन) क्या है
देश की अनेक संस्थाएं इस पर काम कर रही हैं. इस के द्वारा खेतों में कई कीटों की सघनता का आंकलन कर के और उन को बड़े पैमाने पर पकड़ कर खत्म करने के लिए फैरोमौन तकनीक का विकास किया गया है. इस में से कुछ खास कीड़े जिन में फैरोमेन मौजूद हैं, निम्न हैं:
स्पोडोप्टेरा लिट्यूरा : यह कीट टोबैको कैटरपिलर के नाम से जाना जाता है. इस का हमला भिंडी, पत्तागोभी, तंबाकू, सरसों, फूलगोभी वगैरह फसलों पर होता है. इस कीट का फैरोमौन ल्यूर बाजार में स्पोडोप्टेरा लिट्यूरा के नाम से मिलता है.
हैलीकोवर्पा आर्मीजेरा : यह कीट अमेरिकन वालवर्म और चना फलीछेदक वगैरह नामों से जाना जाता है. इस का हमला कपास, चना, अरहर, टमाटर, मटर वगैरह फसलों पर बहुतायत से होता है. इस कीट का ल्यूर हैलिकोवर्पा आर्मीजेरा नाम से मिलता है.
पेक्टिनोफोरा गौसीपियेला : यह कीट कपास और भिंडी में लगता है. इस का ल्यूर पेक्टिनोफोरा गौसीपियेला नाम से मिलता है.
इरिआस स्पी. (कपास का गूलर बेधक) : यह कीट कपास और भिंडी में लगता है. इस कीट काल्यूर इरिआस विटिला, इरिआस इन्सुलाना नाम से मिलता है.
प्लूटेला जाइलोस्टेला (हीरकपृष्ठ शलभ) : इस कीट का हमला सरसों, पत्तागोभी, फूलगोभी वगैरह फसलों पर होता है. इसे डायमंड बैक माथ के नाम से जानते हैं. इस का ल्यूर प्लूटेला जाइलोस्टेला नाम से मिलता है.
इसी तरह से गन्ने के पोरीबेधक, अंकुरबेधक, तनाबेधक, धान के तना छेदक, बैगन के तना और फल छेदक, सफेद गिंडार और फल मक्खी वगैरह कीटों के लिए भी अलगअलग ल्यूर बाजार में मौजूद है.
कैसे इस्तेमाल करें : खेतों में इस ट्रैप को सहारा देने के लिए एक डंडा गाड़ना होता है. इस डंडे के सहारे छल्ले को बांध कर इसे लटका दिया जाता है. ऊपर के ढक्कन में बनी जगह पर ल्यूर को फंसा दिया जाता है और बाद में छल्लों में बने पैरों पर इसे कस दिया जाता है. कीट इकट्टा करने की थैली को छल्ले में लगा कर इस के निचले सिरे को डंडे के सहारे एक छोर पर बांध दिया जाता है. इस ट्रैप की ऊंचाई इस तरह से रखनी चाहिए कि ट्रैप का ऊपरी भाग फसल की ऊंचाई से तकरीबन 1 से 1.5 मीटर ऊपर रहे.
ट्रैप का चुनाव और लगाने का तरीका : हर कीट के नरों को बड़े पैमाने पर इकट्ठा करने के लिए आमतौर पर 4 ट्रैप प्रति एकड़ काफी हैं. खेत में समान दूरी पर ट्रैप लगाने चाहिए. कीट की सघनता की जांच करने के लिए एक ट्रैप प्रति एकड़ रखना चाहिए.
इस ट्रैप को खेत में लगा देने के बाद इस में फंसे कीटों की नियमित जांच की जानी चाहिए और पाए गए कीटों का आंकड़ा रखना चाहिए जिस से उन की गतिविधियों और तादाद में बढ़ोतरी पर ध्यान रखा जा सके. बड़े पैमाने पर कीटों को पकड़ कर मारने के मकसद से जब इस का इस्तेमाल किया जाए तो थैली में इकट्ठा कीटों को नियमित रूप से खत्म कर थैली को बराबर खाली करते रहें जिस से उस में नए कीड़ों को घुसने के लिए रास्ता बना रहे.
इस नई तकनीक का फायदा यह है कि किसान अपने खेतों पर कीटों की सघनता का आंकलन कर उन के मुताबिक कीटनाशकों के इस्तेमाल की रणनीति तय कर बेकार रासायनिक उपचार से बच सकते हैं.
फैरोमौन ट्रैप के फायदे
* इस के इस्तेमाल से खेती की रक्षा के लिए अनावश्यक छिड़काव और उस पर होने वाले खर्च से किसान बच सकते हैं.
* कीटनाशकों के कम इस्तेमाल से वातावरण को सुरक्षित रखने में मदद मिलती है. ये खुद विषैले नहीं हैं इसलिए इन से वातावरण को कोई खतरा नहीं है.
* फैरोमौन ट्रैप से कीटों की बढ़ोतरी को सीधा रोका जा सकता है. इस तरह कीटों से होने वाले नुकसान को रोकने में मदद मिलती है और पैदावार भी 10 से 15 फीसदी बढ़ जाती है.
* फैरोमौन जहरीले नहीं हैं और कीटों के प्रति कारगर हैं इसलिए ये फसल और किसान दोनों के लिए सुरक्षित हैं.
* जैविक नियंत्रण के लिए उपयोगी नरभक्षी और परजीवी कीटों के लिए फैरोमौन सुरक्षित हैं इसलिए यह एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन की तकनीक के तहत बहुत कारगर है.
* फैरोमौन द्वारा कीटों का आंकलन कर हर कोई जरूरत के मुताबिक रासायनिक उपचार को सही समय से अपना सकता है.
* फैरोमौन तकनीक से नियंत्रण की विधियों की गुणवत्ता का भी मूल्यांकन हो जाता है.
* इस पर खर्चा बहुत ही कम है जो आमतौर पर एक रासायनिक उपचार से काफी कम है.
जरूरी सावधानियां
* फैरोमेन के ल्यूर को एक महीने में एक बार जरूर बदल देना चाहिए.
* ल्यूर ठंडी और सूखी जगह पर इकट्ठा करें. रेफ्रीजरेटर इस के लिए सही है.
* इस्तेमाल किए गए ल्यूर को खत्म कर दें या जमीन में गाड़ दें.
* इस बात को तय करते रहें कि कीट इकट्ठा करने की थैली का मुंह बराबर खुला रहे और खुली जगह बनी रहे जिस से ज्यादा से ज्यादा कीड़े इकट्ठा कर के खत्म किए जा सकें.
अधिक जानकारी के लिए किसान कौल सैंटर के टोल फ्री नंबर 1800-180-15551 पर संपर्क करें या अपने नजदीकी कृषि विभाग के अधिकारी से मिलें.