हमारे देश में किसान पुराने समय से फूलों की खेती तो करते आ रहे हैं लेकिन पिछले कुछ सालों से फूलों की खेती को काफी बढ़ावा मिला है और बहुत से किसान फूलों की खेती कर अपना जीवन महका रहे हैं.
फूलों की खेती से किसान के अलावा अनेक लोगों को भी रोजगार मिल रहा है. आज घरों की सजावट से ले कर तीजत्योहारों व शादीविवाह के मौके पर गेंदा के फूलों का बहुत इस्तेमाल होता है. इस के चलते सालोंसाल फूलों का कारोबार बढ़ रहा है. गेंदा की खेती को ले कर किसान खासा जागरूक हैं क्योंकि यह कम समय में तैयार होने वाली और अधिक पैदावार देने वाली फसल है.
गेंदा की कुछ प्रजातियों को जैसे हजारा और पावर से सालोंसाल पैदावार ली जा सकती है. मैदानी इलाकों में गेंदा की 3 फसलें ली जाती हैं और अगस्त से अक्तूबर माह तक तो गेंदा के फूलों की मांग काफी बढ़ जाती है.
उन्नतशील प्रजातियां : गेंदा की 2 तरह की प्रजातियां खास होती हैं. पहली अफ्रीकन गेंदा और दूसरी फ्रांसीसी गेंदा.
अफ्रीकन गेंदा : आमतौर पर अफ्रीकन गेंदा की पौध काफी लंबी तकरीबन 80-100 सैंटीमीटर होती है. इन की पत्तियां चौड़ी और फूल पीले, नारंगी और सफेद रंग वाले और गोलाकार लिए होते हैं. अफ्रीकन गेंदा 2 प्रकार का होता है. पहला, कारनेशन के समान फूल वाला और दूसरा, गुलदाउदी के समान फूल वाला. खासतौर पर कारनेशन के समान फूल वाले नारंगी रंग की किस्में व्यापारिक नजरिए से बहुत ही खास हैं.
मुख्य किस्में
पूसा नारंगी गेंदा : यह बीज बोने से फूल आने तक 125-135 दिन लेती है. इस के पौधे तकरीबन 60 सैंटीमीटर ऊंचे और स्वस्थ होते हैं. इस के फूल नारंगी रंग के होते हैं. यह माला बनाने में काफी इस्तेमाल होता है. अनेक जलसोंकार्यक्रमों में इस वैरायटी का फूल काफी इस्तेमाल किया जाता है.
पूसा बसंती गेंदा : यह बीज बोने से फूल आने तक 135-145 दिन लेती है. पौधे ऊंचे और स्वस्थ होते हैं. फूल गंधक समान पीले रंग के अनेक पंखुडि़यां जो 6 से 9 सैंटीमीटर व्यास वाली होती हैं. एक पौधे पर तकरीबन 60 फूल आते हैं. फूल आने का समय 40 से 45 दिन है. यह किस्म घरों और उद्यानों में गमलों और क्यारियों में उगाने के लिए काफी अच्छी है.
इस के अलावा पिस्ता, सुप्रीम, जीनिया गोल्ड, क्राउन औफ गोल्ड, मैलिंग स्माइल, नारंगी जाइंट डबल पीला, यैलो स्पेन, फर्स्ट लेडी आदि खास किस्में हैं.
फ्रांसीसी गेंदा : इस के पौधे 20-60 सैंटीमीट की ऊंचाई तक बढ़ते हैं. इन्हें आम भाषा में जाफरी भी कहते हैं. इस के फूलों का आकार 3-5 सैंटीमीटर होता है. फूल पीले, नारंगी, मटियाले, चित्तीदार लाल या इस तरह के मिलेजुले रंग के होते हैं.
मुख्य किस्में : डैंटी मेरिटा, नौटी मेरिटा, सन्नी, बोनीटा, बटरस्कौच, डबल हारमोनी, लेमन ड्रौप, मिलोडी, पिटाइट हारमोनी, पिटाइट ओरैंज, पिटाइट यैलो, रैड ब्रोकेड रस्टी रैड, टैंजेरिन यैलो, पिगमी, स्टार औफ इंडिया, बोलेरो, गोल्डन, गोल्डन जेम रैड हेट आदि हैं.
ये सभी किस्में हर तरह के क्षेत्रों में सालभर उगाई जा सकती हैं. गेंदे के पौधों के लिए धूप वाली जगह काफी सही होती है.
मिट्टी और उस की तैयारी : गेंदे की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी काफी अच्छी रहती है. वह मिट्टी जिस का पीएच मान 7 से 7.5 हो और जिस में हवा का बहाव अच्छा हो और पानी का निकास भी सही हो, मुफीद रहता है.
पौध तैयार करना : नर्सरी तैयार करने के लिए जमीन को अच्छी तरह से 30 सैंटीमीटर गहराई तक खोद लेना चाहिए और उस में गोबर की सड़ी खाद मिला कर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए. इस के बाद उस में नर्सरी तैयार करने के लिए 15 सैंटीमीटर ऊंची, एक मीटर चौड़ी और 5 से 6 मीटर लंबी क्यारियां बनाते हैं.
एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 700-800 ग्राम बीज की जरूरत होती है. क्यारियां तैयार होने के बाद बीज को 6-8 सैंटीमीटर की दूरी पर 2 सैंटीमीटर गहराई तक बोते हैं. इस के बाद बीजों को अच्छी तरह छनी हुई गोबर की हलकी परत से ढक देते हैं. नर्सरी में रोजाना पानी का छिड़काव करना चाहिए. यदि बीज ठीक है तो वे 5 से 6 दिनों में उग आएंगे.
गरमियों में फसल लेने के लिए बीज जनवरीफरवरी महीने में बो दिए जाते हैं. बरसात में फसल लेने के लिए बोआई मईजून महीने में करना सही रहती है. सितंबरअक्तूबर महीना सर्दियों की फसल की बोआई के लिए सही समय है.
पौधों को क्यारियों में लगाना : आमतौर पर बीज के 1 महीने बाद पौधों को नर्सरी से निकाल कर क्यारियों में लगा दिया जाता है. अफ्रीकन गेंदे को 40×40 सैंटीमीटर की दूरी पर और फ्रांसीसी गेंदे को 30×30 सैंटीमीटर की दूरी पर लगाते हैं.
गरमी और बरसात के दिनों में पौधों में बढ़ोतरी शुरू हो जाए और उन में जब कलियां निकल आएं तब इन कलियों को तोड़ देना चाहिए. ऐसा करने से ज्यादा शाखाएं बनेंगी और ज्यादा फूल आएंगे.
खाद : अच्छी फसल के लिए 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस और 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए. फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा जमीन तैयार करते समय और नाइट्रोजन की आधी मात्रा पौधों के क्यारियों में लगाने के एक महीने बाद और बाकी आधी मात्रा 2 महीने बाद लगानी चाहिए.
सिंचाई : गरमी के दिनों में पौधों को 4 से 5 दिन के अंतर पर पानी देना चाहिए. जाड़ों के दिनों में 8-10 दिन के अंतर पर सिंचाई की जरूरत होती है. बारिश के दिनों में पौधों की सिंचाई जरूरत के मुताबिक की जाती है.
फूल उत्पादन का समय और फूल तोड़ना : गरमियों की फसल मई के मध्य से फूल देना शुरू कर देती है. बारिश के मौसम वाली फसल में सितंबर के मध्य से फूल आने शुरू हो जाते हैं. सर्दियों में फसल में मध्य जनवरी से फूलों का आना शुरू हो जाता है. फूलों को पूरा खिलने पर ही तोड़ना चाहिए.
जहां तक संभव हो, फूलों को सुबह के समय ही तोड़ना चाहिए. अगर फूल शाम के समय तोड़ रहे हैं तो उन्हें तोड़ कर ठंडी जगह पर इकट्ठा करना चाहिए. इस के बाद उन्हें बांस की टोकरियों में भर कर उचित साधन से बाजार या मंडी में ले जाना चाहिए.
कीट और रोगों से बचाव
गेंदे में लाल रंग की जाल बनाने वाली मकड़ी पौधों का रस चूस कर नुकसान पहुंचाती है. इसे 0.2 फीसदी मैलाथियान या डाइकोफोल 0.1 फीसदी घोल को पौधों पर छिड़क कर नियंत्रित किया जा सकता है. चूर्णी फफूंद, रतुआ और विषाणु (वायरस) गेंदे की मुख्य बीमारियां हैं.
चूर्णी फफूंद और रतुआ को 0.2 फीसदी घुलनशील गंधक के घोल का छिड़काव करने से नियंत्रित किया जा सकता है. कीटनाशक दवाओं जैसे नुवाक्रोन या न्यूवान (0-03 फीसदी) या मैटासिस्टाक्स (0-2 फीसदी) के घोल का 15 दिन के अंतर पर छिड़काव करने से विषाणु बीमारियां फैलाने वाले कीटों को नियंत्रण में रखा जा सकता है.