हमारे देश में सिंचाई के लिए टपक सिंचाई एक ऐसा तरीका है जिस में धीरेधीरे बूंदबूंद कर के पानी फसलों की जड़ों में पहुंचाया जाता है. बूंदबूंद कर के पानी पौधों तक प्लास्टिक के पाइपों के जरीए पहुंचता है. इस पाइप में जगहजगह छेद होते हैं.
इस तकनीक का सब से पहले इस्तेमाल इजरायल में किया गया था इसलिए इस को इजरायली तकनीक से सिंचाई भी कहा जाता है.
सिंचाई के दौरान खेत में उर्वरकों का घोल के रूप में इस तरीके से इस्तेमाल किया जाता जिस से उर्वरक सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचता है.
यह सिंचाई उन इलाकों के लिए बहुत ही उम्दा है जहां पानी की कमी है और खेती की जमीन भी समतल नहीं है.
इस टपक सिंचाई में चूंकि पानी सीधे पौधों की जड़ों तक पहुंचता है, इस से पानी की बरबादी भी नहीं होती और फसल में सामान्य से अधिक पैदावार मिलती है.
लाइन में बोई गई फल और सब्जी की फसलों के लिए टपक सिंचाई खास उपयोगी है. लंबी दूरी पर बोई गई फसलों के लिए यह तकनीक फायदेमंद है. सेब, संतरा, नीबू, केला, अमरूद, अनार वगैरह और टमाटर, बैगन, खीरा, ककड़ी, कद्दू, फूलगोभी, बंदगोभी, भिंडी वगैरह सब्जी आदि फसलों के लिए यह विधि खास है.
टपक सिंचाई कंपनी
अत्याधुनिक तकनीक से बनी और सभी तरह की फसलों के लिए अनुकूल नेटाफिम ड्रिप सिंचाई तकनीक आजकल किसानों द्वारा काफी पसंद की जा रही है. आज देश में 3 लाख हेक्टेयर से भी ज्यादा क्षेत्र पर नेटाफिम ड्रिप सिंचाई तकनीक से सिंचाई की जा रही है.
ड्रिप लाइन : आधुनिक तकनीक से बनी नेटाफिम ड्रिप लाइन को बनाने का काम भारतीय खेती की जरूरतों को ध्यान में रख कर किया गया है. ड्रिप लाइन के हर ड्रिपर में फिल्टर होता है जो ड्रिप में कचरा जमा नहीं होने देता. जमीन व फसल की जरूरत के मुताबिक ड्रिपर के बीच की दूरी 20, 30, 40, 50, 60, 75 व 90 सैंटीमीटर और ड्रिपर 1, 2 या 3 लिटर पानी प्रति घंटा जल प्रवाह में उपलब्ध है. यह सभी प्रकार की सब्जियों, गन्ना, कपास, फूलों की खेती और सघन बागबानी के लिए उपयुक्त है.