आजादी के लगभग 75 साल बीतने के बाद भी भारत में किसान बदहाल बने हुए हैं. इस दौरान जितनी भी सरकारें आईं और गईं, उन में से ज्यादातर ने किसानों को राजनीति का जरीया बना कर अपना उल्लू सीधा किया है.

किसानों को ले कर राजनीति तो होती रही, लेकिन उन को ले कर कोई कारगर नीति अभी तक नहीं बनी है. किसानों के हितों और उन की आर्थिक तरक्की की दुहाइयां भी हर नेता और दल देता रहा, लेकिन हकीकत की धरातल पर कोई काम नहीं हुआ. आज भी जो भी दल केंद्र या राज्य की सत्ता पर काबिज होता है, वह किसानों को परेशान करता है.

असल में अब किसानों को राजनीति नहीं, बल्कि नीति की दरकार है, लेकिन यह अभी भी कहीं दिखाई नहीं देती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में भी किसान परेशान ही हैं. बता दें कि मोदी ने अपनी चुनावी रैलियों में किसानों को खुशहाल रखने के बड़ेबड़े वादे किए थे. उन्होंने कहा था कि यदि वे केंद्र की सत्ता में आए, तो किसानों को लगात से ऊपर 50 फीसदी मुनाफा दिलवाएंगे. इस वादे के बाद किसानों ने उन्हें जोरदार बहुमत से जीत दिखाई.

अब मोदी का राज है. उन्हें सत्ता में बैठे 3 साल बीत चुके हैं, मगर अभी तक इस वादे की ओर कोई पहल नहीं की गई है. अब आलम यह है कि मोदी इस पर चर्चा तक नहीं करना चाहते हैं. हाल ही में किसानों के आंदोलन के दौरान सत्ता पक्ष ने कांग्रेस पार्टी पर किसानों के शोषण का आरोप मढ़ते हुए कहा कि आज किसानों की जो भी बदहाली है, उस के लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है. कांग्रेस अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए इस समय किसान आंदोलन में आग में घी डालने का काम कर रही है.

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