नई दिल्ली : चंद्रयान-3 मिशन के सफल प्रक्षेपण, विक्रम लैंडर की सौफ्ट लैंडिंग और 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा पर प्रज्ञान रोवर की तैनाती के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने हर साल 23 अगस्त को ‘राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस’ के रूप में घोषित किया है. इस उपलब्धि के साथ ही भारत अंतरिक्ष में जाने वाले देशों के विशिष्ट समूह में शामिल हो गया है और चंद्रमा की सतह पर उतरने वाला चौथा देश बन गया है. भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश है.

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में इस विशेष दिन को चिह्नित करने के लिए, अंतरिक्ष विभाग अगस्त, 2024 के दौरान राष्ट्रव्यापी समारोहों का आयोजन कर रहा है, ताकि देश के युवाओं को अंतरिक्ष विज्ञान और इस के अनुप्रयोगों के बारे में प्रेरित किया जा सके, जिस का विषय है, “चंद्रमा को छूते हुए जीवन को छूना : भारत की अंतरिक्ष गाथा”.

इस अवसर पर कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने भारत के कृषि क्षेत्र को अभूतपूर्व वृद्धि एवं विकास की ओर अग्रसर करने में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में एक सम्मेलन का आयोजन किया. इस सम्मेलन में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सचिव डा. देवेश चतुर्वेदी की उपस्थिति में डिजिटल भू स्थानिक मंच, कृषि निर्णय सहायता प्रणाली का शुभारंभ किया, जो देश के कृषि नवाचार परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
कृषि डीएसएस अपनी तरह का पहला भू स्थानिक प्लेटफार्म है, जिसे विशेष रूप से भारतीय कृषि के लिए डिजाइन किया गया है.

यह प्लेटफार्म उपग्रह चित्रों, मौसम की जानकारी, जलाशय भंडारण, भूजल स्तर और मृदा स्वास्थ्य जानकारी सहित व्यापक डाटा तक सहज पहुंच उपलब्‍ध कराता है, जिस पर किसी भी समय कहीं से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है. कृषि डीएसएस में व्यापक कृषि प्रबंधन का समर्थन करने के लिए डिजाइन किए गए कई उन्नत मौड्यूल शामिल हैं. खेतों के विशाल विस्तार से ले कर मिट्टी के सब से छोटे कण तक, कृषि डीएसएस ने सबकुछ कवर किया है.

फसल मानचित्रण और निगरानी के साथ हम विभिन्न वर्षों में पार्सल स्तरीय फसल मानचित्रों का विश्लेषण कर के फसल पैटर्न को समझने में सक्षम होंगे. यह जानकारी फसल रोटेशन प्रथाओं को समझने में मदद उपलब्‍ध कराती है और विविध फसलों की खेती को प्रोत्साहित कर के टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देती है. सूखे की निगरानी, सूखे की स्थिति से आगे रहने में मदद करेगी, जो विभिन्न संकेतकों जैसे मिट्टी की नमी, जल भंडारण, फसल की स्थिति, सूखे की अवधि आदि पर लगभग वास्तविक समय की जानकारी देती है.

फसल मौसम की निगरानी हमें इस बारे में सूचित करेगी कि मौसम फसलों को कैसे प्रभावित कर रहा है और फसल की कटाई की स्थिति, फसल अवशेष जलाने आदि के बारे में भी जानकारी देगी.
‘फील्ड पार्सल सेगमेंटेशन’ के साथ, हम फील्ड पार्सल इकाइयों को सटीक बनाने में सक्षम होंगे, जो लक्षित हस्तक्षेपों के लिए प्रत्येक पार्सल की विशिष्‍ट जरूरतों, फसल पैटर्न को समझने में मदद करेंगे.
एक राष्ट्र एक मृदा सूचना प्रणाली आप की उंगलियों पर एक व्यापक मृदा डाटा प्रदान करती है, जिस में मिट्टी की किस्‍म, मिट्टी का पीएच मान, मिट्टी का स्वास्थ्य आदि शामिल हैं. मृदा डाटा हमें मृदा जल संरक्षण उपायों को लागू करने के लिए फसल की उपयुक्तता और भूमि क्षमता का आकलन करने में मदद करेगा.

कृषि डीएसएस की ‘ग्राउंड ट्रुथ डाटा लाइब्रेरी’ शोधकर्ताओं और उद्योग को विभिन्न फसलों के लिए ग्राउंड ट्रुथ डाटा और स्पेक्ट्रल लाइब्रेरी जैसे आवश्यक संसाधन प्रदान कर के नवाचार को बढ़ावा देगी.
बाढ़ प्रभाव आकलन से ले कर फसल बीमा समाधान और कई अन्य तक, कृषि डीएसएस एक समग्र समाधान है. यह हमारे किसानों को सशक्त बनाने, हमारी नीतियों को सूचित करने और हमारे राष्ट्र को पोषित करने के बारे में जानकारी देगी.

कृषि निर्णय सहायता प्रणाली (डीएसएस) पर उपलब्ध विभिन्न डाटा स्रोतों को एकीकृत कर के, किसानों के लिए सही व्यक्तिगत सलाह, कीट हमले, भारी बारिश, ओलावृष्टि आदि जैसी आपदाओं की पूर्व चेतावनी देने जैसे विभिन्न किसान केंद्रित समाधान विकसित किए जा सकते हैं.

कृषि डीएसएस केवल एक उपकरण नहीं है, बल्कि यह कृषि में नवाचार और स्थिरता के लिए उत्प्रेरक है. साथ मिल कर हम भारत के लिए एक लचीला, टिकाऊ और समृद्ध कृषि का निर्माण करेंगे.
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, अंतरिक्ष विभाग, इसरो केंद्र, विभिन्न केंद्रीय एजेंसियों (आईएमडी, सीडब्‍ल्‍यूसी, एनडब्‍ल्‍यूआईसी, एनआईसी, आईसीएआर, एसएलयूएसआई, एनएनसीएफसी) राज्य रिमोट सेंसिंग केंद्र, राज्य कृषि विभाग, संस्थान/विश्वविद्यालय, कृषि-तकनीक उद्योग के अधिकारी/प्रतिनिधि इस कार्यक्रम में शामिल हुए.

कार्यक्रम में कृषि क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग की वर्तमान स्थिति को प्रदर्शित करने वाले विभिन्न तकनीकी सत्र और उपग्रह आधारित डाटा उत्पादों तक पहुंचने के लिए इसरो के विभिन्न पोर्टल का प्रदर्शन शामिल था. कृषि के क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संभावित उपयोगों पर चर्चा करने के लिए पैनल चर्चाएं भी आयोजित की गईं.

नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, उद्योग जगत के नेताओं और शोधकर्ताओं की यह प्रतिष्ठित सभा भारतीय कृषि की चुनौतियों का समाधान करने और बढ़ती आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की अपार क्षमता पर जोर दे रही है.

सम्मेलन की मुख्य विशेषताएं :

कृषि की प्रगति के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग : इस सम्मेलन में उपग्रह रिमोट सेंसिंग, भू स्थानिक प्रौद्योगिकी और सटीक कृषि, फसल निगरानी, आपदा प्रबंधन और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन में उन के अनुप्रयोगों में नवीनतम प्रगति को प्रदर्शित किया गया.

कृषि डीएसएस का शुभारंभ : भू स्थानिक मंच, कृषि डीएसएस, मौसम के पैटर्न, मिट्टी की स्थिति, फसल स्वास्थ्य, फसल का रकबा और सलाह पर वास्तविक समय के डाटा संचालित अभिज्ञान के साथ हितधारकों को सशक्त बनाने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में अनावरण किया गया.

सार्वजनिक व निजी भागीदारी : सम्मेलन ने कृषि में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को अपनाने में तेजी लाने के लिए सरकार, निजी क्षेत्र और शिक्षाविदों के बीच सहयोग के महत्व को रेखांकित किया.

किसान केंद्रित दृष्टिकोण : इस कार्यक्रम ने उपयोगकर्ता के अनुकूल समाधान और क्षमता निर्माण कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का लाभ जमीनी स्तर तक पहुंचे.

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग विभिन्न अनुप्रयोगों जैसे फसल उत्पादन पूर्वानुमान, सूखे की निगरानी, फसल स्वास्थ्य आकलन और फसल बीमा समाधान के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की क्षमता का उपयोग करने में सक्रिय रहा है. भविष्य में भी यह विभाग भारतीय कृषि की बेहतरी के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने के लिए प्रतिबद्ध है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी हितधारकों के साथ मिल कर काम करने के लिए समर्पित है.

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