हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में पशुपालन और डेयरी विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार के दो अग्रणी संस्थानों सीईएएच, बैंगलुरू और रीजनल फोडर स्टेशन, हिसार द्वारा ‘भारत में चारा प्रबंधन में प्रगति’ (एएफएमआई-2024) विषय पर पांचदिवसीय पहली राष्ट्रीय स्तर की प्रशिक्षण सह कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में विभिन्न राज्यों के चारा विशेषज्ञों सहित 14 राज्यों के 71 पशु चिकित्सकों ने हिस्सा लिया.
कार्यशाला का शुभारंभ चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति एवं मुख्य अतिथि प्रो. बीआर कंबोज ने किया. कार्यक्रम में संयुक्त आयुक्त (राष्ट्रीय पशुधन मिशन) डा. एचआर खन्ना व संयुक्त आयुक्त और निदेशक (सीईएएच) डा. महेश पीएस भी मौजूद रहे.
प्रो. बीआर कंबोज ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि नई किस्मों एवं तकनीकों को अपना कर चारा उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सकती है. उन्होंने केंद्र एवं राज्य सरकार के चारा बीज उत्पादन और संबंधित गतिविधियों में शामिल पशु चिकित्सा अधिकारियों को प्रशिक्षित करने पर बल दिया.
उन्होंने पशु पोषण के महत्व पर पशुपालकों में जागरूकता पैदा करना, पशुधन स्वास्थ्य, चारा उत्पादन डेयरी और चारा उत्पादों की आपूर्ति से जुड़े हितधारकों के लिए एक साझा मंच प्रदान करने पर भी बल दिया. साथ ही, उन्होंने पशु चिकित्सा विज्ञान और कृषि में प्रशिक्षित युवाओं से इस क्षेत्र के बेहतर भविष्य के लिए चारा क्षेत्र में उद्यमिता अपनाने का आग्रह किया.
कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि देश में इस समय 11.3 फीसदी हरे चारे व 23.2 फीसदी सूखे चारे की कमी है. कृषि भूमि सीमित होने के कारण चारा फसलों का क्षेत्रफल बढ़ाना कठिन है, लेकिन हम चारा फसलों की उन्नत किस्मों का बीज उपलब्ध करवा कर, चारा उत्पादन की नईनई तकनीक विकसित कर के, विभिन्न क्षेत्रों के लिए चारा फसलों के उचित फसल चक्र विकसित कर के बहुवर्षीय चारा फसलों की खेती कर के इस का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं. इस से न केवल हमारे पशुधन की उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी. चारे की कमी के दिनों में साइलेज बना कर पशुओं को खिलाया जा सकता है.
उन्होंने आगे कहा कि चारा फसलों की मुख्य चुनौतियों में गुणवत्तापूर्ण बीज की कमी भी है. इस के लिए हमें किसानों व संबंधित अधिकारियों को चारा फसलों के बीज उत्पादन के लिए प्रेरित करना होगा. यदि इन विषयों पर पशु चिकित्सकों, संबंधित अधिकारियों एवं किसानों को प्रशिक्षण दिया जाए, तो इस से चारा उत्पादन में फायदा हो सकता है. गौरतलब है कि पशुओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए वर्षभर हरे चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करना बहुत ही महत्वपूर्ण है.
डा. महेश पीएस ने कार्यशाला में प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम की थीम और आवश्यकताओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी. क्षेत्रीय चारा केंद्र, हिसार के निदेशक डा. पीपी सिंह ने सभी का धन्यवाद किया.
इस अवसर पर एचएयू के कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा, अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग, पशु चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. गुलशन नारंग, सीएसबीएफ, हिसार के निदेशक डा. रुंतु गोई व हकृवि के चारा अनुभाग के वैज्ञानिक भी उपस्थित रहे.