भोपाल : मध्य प्रदेश में पर्याप्त जलाशय संसाधन हैं और बड़ी संख्या में केज बनाए गए हैं, जो मछली उत्पादन की उच्च क्षमता का संकेत देते हैं.

मछलीपालन में केज कल्चर एक खास तकनीक है, जिस में जलाशय में तय जगह पर फ्लोटिंग केज यूनिट बनाई जाती हैं.

मध्य प्रदेश केज कल्चर की संस्कृति और जलीय कृषि में मछली उत्पादकता बढ़ाने के लिए एकीकृत प्रबंधन की खासा जरूरत की मांग करता है. यह देखते हुए कि वास्तविक समय निदान और प्रबंधन तकनीकों की कमी के कारण मछली में रोग एक बड़ी बाधा है.

संचालनालय मत्स्योद्योग मध्य प्रदेश ने केज कल्चर में मत्स्यपालन और जलीय कृषि रोग निदान और बेहतर प्रबंधन प्रथाओं पर 2 दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान के साथ सहयोग से किया गया कार्यक्रम 5 एवं 6 सितंबर को संचालनालय मत्स्योद्योग भोपाल में आयोजित किया गया था.

केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्था के डा. असित कुमार बेरा और नीलेमेश दास ने मछली रोग निदान निवारण उपाय, गहन जलीय कृषि और जलीय कृषि दवा के उपयोग योजना सहित विभिन्न विषयों पर व्याख्यान दिए. सत्र में मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से 31 केज कल्चर किसान और 30 एक्वाकल्चर, टैंक कल्चर, बायोफ्लोक किसानों ने उपस्थित रह कर भाग लिया.

कार्यशाला में राज्य सरकार के 30 मत्स्य अधिकारियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया. 2 दिवसीय चर्चा के दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण और तत्काल जरूरतों की पहचान की गई, जिस में क्षेत्र स्तर पर रोग का पता लगाना, क्षेत्र स्थल पर न्यूनतम निदान की सुविधा, कार्मिक रोग रिपोर्टिंग प्रशिक्षण और मछली व पानी के लिए स्वास्थ्य रिकौर्ड का रखरखाव शामिल है.

साथ ही, उन्होंने भविष्य के प्रबंधन विकल्पों के लिए डेटाबेस विकसित करने के लक्ष्य को साधा. संचालक मत्स्योद्योग, मध्य प्रदेश, रवि गजभिए और मुख्य महाप्रबंधक, मध्य प्रदेश मत्स्य महासंघ पीसी कोल ने कार्यक्रम में भाग लिया और पूरे राज्य में मछली उत्पादन में सुधार के लिए कार्यशाला के महत्व पर जोर दिया, प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया और उन्हें अन्य जिलों के किसानों व अधिकारियों तक पहुंचने के लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों में नियमित आधार पर ऐसी इंटरैक्टिव चर्चा और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की सलाह दी.

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