रबी सीजन में की जाने वाली तिलहनी खेती में सरसों (Mustard) का सब से अहम स्थान है. रबी सीजन की यह एक प्रमुख तिलहनी नकदी फसल है. देश में घरों में खाने के लिए सब से ज्यादा सरसों (Mustard) के तेल का ही इस्तेमाल होता है.

तिलहनी फसलों में सरसों (Mustard) एक ऐसी फसल है, जिस से कम सिंचाई व लागत में दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है. सरसों (Mustard) की खेती के मामले में राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, असम,    झारखंड, बिहार एवं पंजाब अग्रणी राज्यों में गिने जाते हैं.

सरसों (Mustard) एक ऐसी तिलहनी फसल है, जिसे एकल और मिश्रित दोनों तरीकों से आसानी से उगाया जा सकता है. सरसों (Mustard) के तेल का उपयोग खाने के अलावा साबुन और कास्मैटिक वस्तुओं के बनाने में भी किया जाता है. इस के खड़े दानों का उपयोग खाने के मसाले के रूप में भी होता है. साथ ही, इस की खली मवेशियों के खिलाने में भी काम आती है. सरसों (Mustard) के दानों में किस्मों के हिसाब से लगभग 38 से 50 फीसदी तेल का परता होता है.

खेती के लिए सही जलवायु

सरसों (Mustard) की खेती रबी सीजन यानी शरद ऋतु में की जाती है, क्योंकि इस सीजन में सरसों (Mustard) की खेती के लिए जरूरी तापमान 18 से 25 डिगरी के बीच पाया जाता है. सरसों (Mustard) की फसल में फूल आने के दौरान बारिश होने या बादल छाने के चलते कीट व बीमारियों का प्रकोप बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है. फूल आने के दौरान बारिश और बादल छाने की दशा में माहू कीट के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है.

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