रांची : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के रांची में आईसीएआर-राष्ट्रीय उच्चतर कृषि संस्थान (एनआईएसए) के शताब्दी समारोह में भाग लिया. इस अवसर पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि खेती को लाभप्रद बनाने के अलावा 21वीं सदी में कृषि के समक्ष 3 अन्य बड़ी चुनौतियां हैं. खाद्य एवं पोषण सुरक्षा, संसाधनों का सतत उपयोग और जलवायु परिवर्तन.

उन्होंने आगे कहा कि द्वितीयक कृषि से जुड़ी गतिविधियां इन चुनौतियों से निबटने में सहायक हो सकती हैं. द्वितीयक कृषि में प्राथमिक कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन के साथसाथ मधुमक्खीपालन, मुरगीपालन, कृषि पर्यटन आदि जैसी कृषि से जुड़ी अन्य गतिविधियां शामिल हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि द्वितीयक कृषि गतिविधियों के माध्यम से कृषि अपशिष्ट का समुचित उपयोग किया जा सकता है. उन्हें प्रसंस्कृत यानी प्रोसैस्ड कर के उपयोगी और मूल्यवान चीजें बनाई जा सकती हैं. इस तरह पर्यावरण की रक्षा होगी और किसानों की आय भी बढ़ेगी.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि भारत में लाख का उत्पादन मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय द्वारा किया जाता है. यह उन की आय का एक मुख्य स्रोत है. उन्हें यह जान कर खुशी हुई कि राष्ट्रीय उच्चतर कृषि संस्थान ने लाख, प्राकृतिक रेजिन और गोंद के अनुसंधान और विकास के साथसाथ वाणिज्यिक विकास के लिए कई कदम उठाए हैं. इस में एक छोटी लाख प्रसंस्करण इकाई और एक एकीकृत लाख प्रसंस्करण इकाई का विकास, लाख आधारित प्राकृतिक पेंट, वार्निश और कास्मैटिक उत्पादों का विकास, फलों, सब्जियों और मसालों की शेल्फलाइफ बढ़ाने के लिए लाख आधारित कोटिंग का विकास शामिल है.

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि ये सभी कदम आदिवासी भाईबहनों के जीवनस्तर को बेहतर बनाने में मदद करेंगे. एनआईएसए ने लाख की खेती में अच्छा काम किया है. लेकिन, अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिन में हम और आगे बढ़ सकते हैं. जैसे, फार्मास्यूटिकल्स और कास्मैटिक्स उद्योगों में उच्च गुणवत्ता वाली लाख की मांग है. अगर भारतीय लाख की गुणवत्ता, आपूर्ति श्रंखला और विपणन में सुधार किया जाए, तो हमारे किसान देशविदेश में इस की आपूर्ति कर सकेंगे और उन्हें बेहतर मूल्य मिलेगा.

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