नई दिल्ली : फैरोमौन डिस्पेंसर नियंत्रित रिलीज दर के साथ कीट नियंत्रण और प्रबंधन की लागत को कम कर सकता है. कीट नियंत्रण कृषि का एक अनिवार्य हिस्सा है, क्योंकि कीट और अन्य परजीवी अनियंत्रित हो जाते हैं और अच्छी फसल को जल्द ही नष्ट कर सकते हैं.

हाल ही में एक सहयोगी अनुसंधान परियोजना में जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (जेएनसीएएसआर), बेंगलुरु, (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान) और आईसीएआर-राष्ट्रीय कृषि कीट संसाधन ब्यूरो (आईसीएआर-एनबीएआईआर) के वैज्ञानिकों ने नियंत्रित रिलीज दर के साथ एक स्थायी फैरोमौन डिस्पेंसर विकसित किया है, जो कीट नियंत्रण और प्रबंधन की लागत को बहुत हद तक कम करने के लिए एक अभिनव समाधान बन सकता है.

अब वे प्रयोगशाला में अपनी सफलता को औद्योगिक उत्पादन में परिवर्तित करने की योजना बना रहे हैं, जिस से इस के माध्यम से बड़े पैमाने पर किसानों को सीधा लाभ प्राप्त हो सके. इस के लिए जेएनसीएएसआर और आईसीएआर-एनबीएआईआर ने हाल ही में कृषि विकास सहकारी समिति लिमिटेड (केवीएसएसएल), हरियाणा के साथ एक तकनीकी लाइसैंस समझौता किया है. प्रो. एम. ईश्वरमूर्ति ने जेएनसीएएसआर की ओर से हस्ताक्षर किया, जबकि डा. केशवन सुबेहरन ने आईसीएआर-एनबीएआईआर का प्रतिनिधित्व किया.

इस आयोजन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रो. एम. ईश्वरमूर्ति ने कहा, “यह अभ्यास पूरे देश में और वैश्विक स्तर पर भी प्रौद्योगिकी के प्रसार को सक्षम बनाएगा. कीट प्रबंधन के लिए किसान समुदाय को लाभ पहुंचाने के लिए अनुसंधान का लाभ प्रयोगशाला से खेत तक पहुंचाया जाएगा.”

डा. केशवन सुबेहरन ने कहा, “वर्तमान में स्वच्छ और हरित प्रौद्योगिकियों के विकास पर बल दिया जा रहा है. इसी तर्ज पर, अर्धरसायनों (फैरोमौन जैसे संकेत देने वाले पदार्थ) के नियंत्रित रिलीज पर विकसित तकनीक का हस्तांतरण फर्मों में करने से एक बड़े क्षेत्र को कवर करते हुए उत्पादन वृद्धि को सक्षम बनाया जाएगा.”

स्थायी जैविक फैरोमौन डिस्पेंसर कोई नई अवधारणा नहीं है. वास्तव में फैरोमौन रिलीज करने वाले पौलिमर मेम्ब्रेन या पौलीप्रोपाइलीन ट्यूब डिस्पेंसर पहले से ही बाजार में हावी हैं. रिलीज किए गए फैरोमौन लक्षित कीट प्रजातियों का व्यवहार बदल देते हैं और उन्हें चिपचिपे जाल की ओर आकर्षित करते हैं. हालांकि उन का मुख्य दोष यह है कि जिस दर पर फैरोमौन हवा में छोड़े जाते हैं, वह स्थिर नहीं होता है.

दूसरे शब्दों में, इन जालों को बारबार जांचने और बदलने की आवश्यकता होती है, जिस से लागत बढ़ जाती है और आवश्यक शारीरिक मेहनत भी बढ़ जाती है.

जेएनसीएएसआर और आईसीएआर-एनबीएआईआर के वैज्ञानिकों ने अपने डिस्पेंसर में मेसोपोरस सिलिका मैट्रिक्स का उपयोग कर के इस मुद्दे का समाधान किया है. इस सामग्री में कई छोटे छिद्रों के साथ एक क्रमबद्ध संरचना होती है, जो फैरोमौन अणुओं को आसानी से सोखने और समान रूप से बनाए रखने में मदद करती है. मेसोपोरस सिलिका न केवल अन्य वाणिज्यिक सामग्रियों की तुलना में अधिक धारण क्षमता प्रदान करता है, बल्कि यह संग्रहीत फैरोमौन को ज्यादा स्थिर तरीके से रिलीज करता है, जो बाहरी स्थितियों, जैसे कि क्षेत्र के तापमान से स्वतंत्र होता है.

प्रस्तावित फैरोमौन डिस्पेंसरयुक्त ल्यूर का उपयोग करने से कई फायदे होते हैं. सब से पहले लोड किए गए फैरोमौन की कम और ज्यादा स्थिर रिलीज दर के कारण प्रतिस्थापन के बीच का अंतराल लंबा होता है, जिस से किसानों का कार्यभार कम हो जाता है. इस के शीर्ष पर डिस्पेंसर को फैरोमौन की अधिक अपरिवर्तनवादी मात्रा के साथ लोड किया जा सकता है, क्योंकि स्थिति स्वतंत्र रिलीज दर यह सुनिश्चित करती है कि वे समय से पहले रिलीज न हों.

इस तरह प्रस्तावित डिजाइन प्रति डिस्पेंसर आवश्यक फैरोमौन की मात्रा को कम करता है, जिस से लागत में कमी आती है और सुलभ व स्थायी कृषि प्रथाओं में योगदान प्राप्त होता है.

डा. केशवन सुबेहरन ने कहा, “विकसित उत्पाद मौजूदा डिस्पेंसर पर बढ़त प्राप्त करेंगे, क्योंकि वे ल्यूर की विस्तारित क्षेत्र प्रभावकारिता और फैरोमौन उपयोग की मात्रा कम होने के कारण लागत को कम करने में मदद करते हैं.”

व्यापक प्रयोगों और क्षेत्र परीक्षणों ने प्रस्तावित डिजाइन की कीट पकड़ने की प्रभावकारिता का प्रदर्शन किया, जो वाणिज्यिक डिस्पेंसर के बराबर पाया गया, लेकिन कम आवश्यक फैरोमौन रिलीज के साथ.

प्रो. एम. ईश्वरमूर्ति ने निष्कर्ष निकाला, “तकनीकी लाइसैंस समझौते के निष्पादन होने से, फर्म उत्पादन बढ़ेगी और किसानों को क्षेत्र में उपयोग के लिए गुणवत्ता प्रदान करेगी, ताकि कीटों का प्रभावी रूप से प्रबंधन किया जा सके.”

जेएनसीएएसआर और आईसीएआर-एनबीएआईआर के बीच एक सक्रिय सहयोग के रूप में, जिसे भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और डीबीटी द्वारा वित्त पोषित किया जाता है, यह प्रयास स्थायी कृषि प्रथाओं के माध्यम से सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 2, जीरो हंगर की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

जेएनसीएएसआर के प्रो. ईश्वरमूर्ति (आविष्कारक) और प्रो केआर श्रीनिवास; डा. दीपा बेनीवाल, सहायक प्रबंधक, केवीएसएसएल; प्रो. जीयू कुलकर्णी, अध्यक्ष, जेएनसीएएसआर; डा. एसएन सुशील, निदेशक, आईसीएआर-एनबीएआईआर; जौयदीप देब, प्रशासनिक अधिकारी, जेएनसीएएसआर; डा. केशवन सुबेहरन, सीएसआईआर-एनबीएआईआर के आविष्कारक; डा. याशिका, एसआईआर-एनबीएआईआर; और डा. के. पन्नीर सेल्वम, समन्वयक, अनुसंधान एवं विकास, जेएनसीएएसआर और आईसीएआर-एनबीएआईआर के वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए फैरोमौन डिस्पेंसरयुक्त एक नव विकसित स्थायी और लागत प्रभावी कीट ल्यूर विकसित किया है, जो उन के पौधों को खतरे में डालने वाले कीटों को नियंत्रित करता है.

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