नई दिल्ली : केंद्र सरकार के खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव ने मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों भारतीय सौल्वेंट एक्सट्रैक्शन एसोसिएशन (एसईएआई), भारतीय वनस्पति तेल उत्पादक संघ (आईवीपीए) और सोयाबीन तेल उत्पादक संघ (सोपा) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की. अग्रणी खाद्य तेल संघों को सलाह दी गई थी कि वे यह सुनिश्चित करें कि प्रत्येक तेल का एमआरपी तब तक बनाए रखा जाए, जब तक कि आयातित खाद्य तेल स्टाक शून्य फीसदी और 12.5 फीसदी मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) उपलब्ध न हो. इस मुद्दे पर अपने सदस्यों के साथ अविलंब विचारविमर्श करने की सलाह दी गई.
अग्रणी खाद्य तेल संघों के साथ विभाग की बैठकों में इस से पहले भी सूरजमुखी, सोयाबीन और सरसों के तेल जैसे खाद्य तेलों की एमआरपी उद्योग द्वारा कम की गई थी. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दाम घटने और खाद्य तेलों पर आयात शुल्क घटने से तेल की कीमतों में कमी आई है. समयसमय पर उद्योग के घरेलू मूल्यों को अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों के अनुकूल बनाने की सलाह दी गई है, ताकि उपभोक्ताओं पर अधिक बोझ न पड़े.
केंद्र सरकार ने घरेलू तिलहन मूल्यों का समर्थन करने के लिए विभिन्न खाद्य तेलों पर मूल सीमा शुल्क में वृद्धि लागू की है. 14 सितंबर, 2024 से कच्चे सोयाबीन तेल, कच्चे पाम तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर मूल सीमा शुल्क शून्य फीसदी से बढ़ा कर 20 फीसदी कर दिया गया है, जिस से कच्चे तेल पर प्रभावी शुल्क 27.5 फीसदी हो गया है. इस के अतिरिक्त, रिफाइंड पाम तेल, रिफाइंड सूरजमुखी तेल और रिफाइंड सोयाबीन तेल पर मूल सीमा शुल्क 12.5 फीसदी से बढ़ा कर 32.5 फीसदी कर दिया गया है, जिस से रिफाइंड तेलों पर प्रभावी शुल्क 35.75 फीसदी हो गया है.
ये समायोजन घरेलू तिलहन किसानों को सहायता देने के लिए सरकार के चल रहे प्रयासों का हिस्सा हैं. अक्तूबर, 2024 से बाजारों में नई सोयाबीन और मूंगफली की फसलों के आने की उम्मीद है.
यह निर्णय व्यापक विचारविमर्श का पालन करता है. यह कई कारकों से प्रभावित होता है, जैसे सोयाबीन, तेल ताड़ और अन्य तिलहनों के वैश्विक उत्पादन में वृद्धि; पिछले वर्ष की तुलना में खाद्य तेलों के वैश्विक स्तर पर अधिक स्टाक और अधिक उत्पादन के कारण वैश्विक कीमतों में गिरावट. इस स्थिति के कारण सस्ते तेलों के आयात में वृद्धि हुई है.
आयातित खाद्य तेलों की लागत बढ़ा कर इन उपायों का उद्देश्य घरेलू तिलहन की कीमतों में वृद्धि करना, उत्पादन में वृद्धि का समर्थन करना और यह सुनिश्चित करना है कि किसानों को उन की उपज का उचित मुआवजा मिले.
केंद्र सरकार को पता है कि कम शुल्क पर आयात किए गए खाद्य तेलों का लगभग 30 एलएमटी स्टाक है, जो 45 से 50 दिनों की घरेलू खपत के लिए पर्याप्त है.