गाजर एक अत्यंत ही पौष्टिक एवं महत्त्वपूर्ण सब्जी है. इस का उपयोग सलाद, सब्जी, हलवा, मुरब्बा, जूस और रायता आचार आदि के रूप में किया जाता है. आमतौर पर गाजर का रंग नारंगी, लाल, काला व पीला होता है. इस के प्रयोग से भूख बढ़ती है, आंखों की रोशनी बढ़ती है और गुरदे की बीमारी में लाभप्रद होता है.
जलवायु : गाजर ठंडी जलवायु की फसल है. इस की जड़ों का रंग और बढ़वार तापमान द्वारा प्रभावित होती है. इस के लिए 10 डिगरी सैल्सियस तापमान अच्छा पाया गया है. अधिक तापमान पर जड़ें छोटी और कम तापमान पर जड़ें लंबी और पतली हो जाती हैं.
भूमि एवं भूमि की तैयारी : गाजर की खेती दोमट या बलुई दोमट, जिस में जीवांश की पर्याप्त मात्रा हो एवं जल निकास का उचित साधन हो, भूमि में कड़ी परत न हो, इस की खेती के लिए सब से उपयुक्त समझी जाती है. खेत की 3-4 जुताई कर के मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए और खेत तैयार करते समय खेत में गोबर कि खाद भी देनी चाहिए.
उन्नतशील किस्में
लाल रंग की किस्में : पूसा वृष्टि, काशी अरुण, पूसा रुधिका.
नारंगी रंग की किस्में : पूसा नयन ज्योति, पूसा यमदग्नि, कुरोडा, नैन्टीज.
काले रंग की किस्में : पूसा आसिता, पूसा कृष्णा.
खाद एवं उर्वरक : 8 से 10 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर की दर से बोने से 3 हफ्ते पहले डाल कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें, तो बोआई के पहले अंतिम जुताई के समय 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फास्फोरस व 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालें. बोआई के 30 दिन बाद 30 किलोग्राम नाइट्रोजन को टौप ड्रैसिंग रूप में दें.
बोआई का समय : गाजर की बोआई आमतौर पर अगस्त से अक्तूबर महीने तक की जाती है.
बीज की बोआई एवं दूरी : बोआई के समय खेत में ठीकठाक नमी होनी चाहिए. इस के लिए बोआई से पहले खेत का पलेवा कर खेत की जुताई करें. इस की बोआई 30-40 सैंटीमीटर की दूरी पर बनी मेंड़ों पर करें. मेंड़ों पर 1 से 2 सैंटीमीटर गहराई पर लाइन बना कर बोआई करें और मिट्टी से ढक दें. जब बीज का अंकुरण हो जाए, तो पौधों को 6-7 सैंटीमीटर की दूरी बनाते हुए घने पौधों को निकाल दें. इस प्रकार एक हेक्टेयर के लिए 6 से 8 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. आजकल गाजर बोआई के लिए कृषि यन्त्र गाजर प्लांटर का भी इस्तेमाल होने लेगा है.
सिंचाई : बोआई के समय भूमि में नमी की कमी हो, तो बोने के तुरंत बाद हलकी सिंचाई करें, परंतु बोआई के समय भूमि में जमाव के लिए पर्याप्त नमी होनी चाहिए. पहली सिंचाई बीज उगाने के बाद करनी चाहिए. गरम मौसम में सप्ताह में एक बार और सर्दियों में 10-12 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए. इस बात का ध्यान रखें कि खेत सूखने और सख्त न होने पाए, नहीं तो जड़ों का समुचित विकास नहीं हो पाता है. साथ ही, जड़ फटने की संभावना बनी रहती है.
खुदाई : जड़ों का जब पूरी तरह से विकास हो जाए, तो उन की खुदाई कर लेनी चाहिए. सुगमतापूर्वक खुदाई के लिए खेत में हलकी सिंचाई कर दें और पत्तियों को काट दें. खुदाई कुदाल या फावड़े से करें. खुदाई करने के बाद जड़ों को पानी से अच्छी तरह धो लें. बहुत बारीक जड़ों को अलग कर लें और ग्रेडिंग के बाद बाजार में भेजें.
पैदावार : आमतौर पर गाजर की फसल 80 से 95 दिन में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है. इस की औसत पैदावार 250 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है.
कीट एवं रोग नियंत्रण माहू : यह कीट पत्तियों की निचली सतह, पौधों की शाखाओं और फूलों पर चिपके रहते हैं. शिशु एवं वयस्क दोनों ही हानि पहुंचाते हैं और पत्तियों एवं फूलों का रस चूस कर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिस से फसल की बढ़वार रुक जाती है और पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं. इस कीट का प्रकोप फरवरी व अप्रैल महीने में अधिक होता है. इस के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 0.3 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करें.
पाउडरी मिल्ड्यू : इस रोग में पत्तियों पर सफेद रंग का पाउडर जगहजगह बन जाता है. इस के नियंत्रण के लिए 2.5 किलोग्राम घुलनशील गंधक को 600 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. गाजर की खेती कृषि यंत्रों का प्रयोग गाजर बीज की बोआई बिजाई यंत्र से करें गाजर की बिजाई मजदूरों के अलावा मशीन से भी कर सकते हैं.
गाजर कि खेती में कृषि यंत्रो का प्रयोग: इस के लिए तमाम कृषि यंत्र बाजार में मौजूद हैं. हरियाणा के अमन विश्वकर्मा इंजीनियरिंग वर्क्स के मालिक महावीर प्रसाद जांगड़ा ने खेती में इस्तेमाल की जाने वाली तमाम मशीनें बनाई हैं, जिन में गाजर बोने के लिए गाजर बिजाई की मशीन भी शामिल है.
गाजर बिजाई की मशीन यह मल्टीक्रौप बिजाई मशीन है, जो बोआई के साथसाथ मेंड़ भी बनाती है. इस मशीन से गाजर के अलावा मूली, पालक, धनिया, हरा प्याज, मूंग, अरहर, जीरा, गेहूं, लोबिया, भिंडी, मटर, मक्का, चना, कपास, टिंडा, तुरई, सोयाबीन, टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, सरसों, राई और शलगम जैसी तमाम फसलें बोई जा सकती हैं.
पूसा गाजर प्लांटर: गाजर बीज बोने वाले इस यंत्र को 35 हौर्सपावर ट्रैक्टर के साथ चलाया जाता है और इस के द्वारा एक घंटे में 5 हेक्टेयर खेत में गाजर बीज बोया जा सकता है. 8 लाइन में बोआई करने के लिए यह गाजर प्लांटर एकसमान गहराई पर बीज डालता है. साथ ही, पानी की भी बचत करता है.
यंत्र कृषि यांत्रिकी विभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली द्वारा बनाया गया है.
मशीन से धोएं गाजर: खेत से निकालने के बाद गाजरों की धुलाई का काम भी काफी मशक्कत वाला होता है, जिस के लिए मजदूरों के साथसाथ ज्यादा पानी की जरूरत भी होती है. जिन किसानों के खेत किसी नहरपोखर वगैरह के किनारे होते हैं, उन्हें गाजर की धुलाई में आसानी हो जाती है. इस के लिए वे लोग नहर के किनारे मोटर पंप के जरीए पानी उठा कर गाजरों की धुलाई कर लेते हैं, लेकिन सभी को यह फायदा नहीं मिल पाता. महावीर जांगड़ा ने जड़ वाली सब्जियों की धुलाई करने के लिए भी मशीन बनाई है. इस धुलाई मशीन से गाजर, अदरक व हलदी जैसी फसलों की धुलाई आसानी से की जाती है. इस मशीन से कम पानी में ज्यादा गाजरों की धुलाई की जा सकती है. इस मशीन को ट्रैक्टर से जोड़ कर आसानी से इधरउधर ले जाया जा सकता है.