टीकमगढ़ : कृषि विज्ञान केंद्र, टीकमगढ़ के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. बीएस किरार के मार्गदर्शन में कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा दोदिवसीय क्षमतावर्धक प्रशिक्षण में बंदियों को मशरूम उत्पादन सिखाया गया. इस अवसर पर डा. आरके प्रजापति (प्रशिक्षण वैज्ञानिक), डा. एसके जाटव और हंसनाथ खान, केंद्र की टीम की तरफ से और जिला जेल प्रशासन के जेल अधीक्षक प्रतीक कुमार जैन, सियाराम यादव (जेल शिक्षक) सहित 40 बंदी उपस्थित रहे.

कैदियों में ज्यादातर लोग कृषि और ग्रामीण पृष्ठभूमि की खेती से जुड़े हुए हैं. बंदी सुधार के लिए जेल अधीक्षक द्वारा यह प्रयास है कि सजा पूरी होने के बाद ये लोग समाज की मुख्यधारा में फिर से वापस आ सकें. कैदियों के अंदर तकनीकी क्षमता पैदा करना है.

जिले में मशरूम उत्पादन बिक्री के लिए अब धीरेधीरे बाजार पैदा हो रहा है. इस को देखते हुए मशरूम आसानी से रोजगार दिलाने वाला नवाचार बनता जा रहा है, क्योंकि मशरूम उत्पादन के लिए जिले की जलवायु अनुकूल है. साथ ही, गांव में उपलब्ध बहुत मात्रा में गेहूं, उड़द, सोयाबीन एवं अन्य फसलों का भूसा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है. अभी तक अपने जिले में तकरीबन 30 लोगों ने मशरूम जैसे ढिंगरी मशरूम, बटन मशरूम एवं दूधिया मशरूम का पैदा करना शुरू कर दिया है.

मशरूम एक 10×10 फीट आकार के बंद कमरे में आसानी से किया जा सकता है. मशरूम उत्पादन की तकनीक बेहद आसान और सस्ती है. ढाई सौ रुपए की लागत से 10 किलोग्राम भूसे से मशरूम पैदा करने में लगता है. 10 किलोग्राम भूसे से 8 किलोग्राम तक मशरूम पैदा किया जा सकता है, जिस की कीमत ढाई हजार रुपए तक होती है. मशरूम में कुपोषण को दूर करने की एवं खतरनाक रोगों से शरीर की रक्षा करने की क्षमता होती है.

कैदियों द्वारा प्रशिक्षण ले कर जेल में ही मशरूम लगाया गया है, जो 25 से 30 दिनों के बाद पैदा होने लगेगा. जेल अधीक्षक का कहना है कि मैनपावर यानी मानवशक्ति का उपयोग मशरूम उत्पादन में किया जाएगा, जिस से कैदियों में आत्मविश्वास बढ़ेगा और तकनीकी क्षमता उन को समाज की मुख्यधारा में लौटा लाएगी. जेल में वैसे तो कई प्रकार के व्यावसायिक प्रशिक्षण होते रहते हैं, मगर टीकमगढ़ में कृषि और ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले कैदियों को देखते हुए उन के हिसाब से ऐसा पहली बार है. जेल अधीक्षक के सहयोग से कृषि विज्ञान केंद्र के साथ यह पहला प्रयोग शुरू किया गया है. आगे इस के अच्छे परिणाम की ओर देखा जा सकता है.

कैदियों ने खुद से भूसे और मशरूम बीज का प्रयोग कर के जेल की खाली पड़ी जगह पर उस को लगाया है और इस की आगे की ट्रेनिंग अन्य कैदियों की सीखे हुए कैदियों द्वारा की जाती रहेगी. तकनीकी मार्गदर्शन के रूप में केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा सहयोग मिलता रहेगा और अभी ढिंगरी मशरूम लगाया गया है, क्योंकि मशरूम की खेती मौसम, तापमान और नमी पर आधारित रहती है, इसलिए इस के बाद बटन और दूधिया मशरूम भी लगाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा.

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