उदयपुर : 24 अक्तूबर, 2024. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के सभागार में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् की अनुसंधान परियोजनाओं की मध्य एवं पश्चिमी क्षेत्र की दोदिवसीय समीक्षा दल बैठक का शुभारंभ हुआ. इस बैठक में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की सिंचाई जल प्रबंधन परियोजना की पांचवर्षीय कार्यों की समीक्षा की गई, जिस में देश के 7 विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्र के वैज्ञानिक अपने कार्यों की प्रगति की समीक्षा के लिए प्रतिवेदन प्रस्तुत किया.
डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, मप्रकृप्रौविवि, उदयपुर ने अपना संदेश साझा करते हुए बताया कि पंचवर्षीय समीक्षा दल बैठक अनुसंधान कार्यों के मूल्यांकन एवं समीक्षा हेतु एक अतिमहत्वपूर्ण बैठक होती है. इस उच्चस्तरीय समीक्षा दल के सदस्य काफी अनुभवी, पूर्व कुलपति एवं पूर्व निदेशक व अधिष्ठाता स्तर के अधिकारी होते हैं. समीक्षा दल की बैठक में विगत 5 सालों के अनुसंधान कार्यों की समीक्षा की जाती है और आने वाले समय में अनुसंधान कार्य को दिशा प्रदान की जाती है.
उन्होंने कहा कि मेवाड़ की ख्याति महाराणा प्रताप के साथसाथ उच्च कोटि के जल संचयन, संरक्षण एवं प्रबंधन तकनीक से है, जिस का उल्लेख मेवाड़ ऐतिहासिक लेखक चक्रपाणी मिश्रा ने अपने ग्रंथ विश्व वल्लभ में किया है.
कार्यक्रम एवं समीक्षा दल के अध्यक्ष डा. वीएन शारदा, पूर्व निदेशक, भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, भुवनेश्वर एवं भूतपूर्व सदस्य एएसआरबी ने सिंचाई जल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए विभिन्न नदी, नहर एवं जलाशयों के संयुक्त अनुसंधान की महती जरूरत के बारे में बताया. उन्होंने आईडब्ल्यूएम पर एआईसीआरपी के उद्देश्यों को फिर से तैयार करने और कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों के आधार पर काम को सिंक्रनाइज करने का सुझाव दिया. सिंचाई जल प्रबंधन के सभी एआईसीआरपी केंद्रों को अपने कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों में समस्याओं की पहचान करनी चाहिए और फिर विषयों के आधार पर प्रयोग की योजना बनानी चाहिए. प्रयोगों या परियोजनाओं की योजना बनाते या तैयार करते समय कृषि पारिस्थितिकी क्षेत्र के संबंधित केंद्र की सिंचाई और जल संसाधनों के दशकवार आधारभूत डेटा की आवश्यकता होगी.
उन्होंने यह भी बताया कि प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता कम हो रही है, इसलिए उपलब्ध पानी का विवेकपूर्ण उपयोग और विभिन्न क्षेत्रों के बीच पानी का वितरण बहुत महत्वपूर्ण है.
डा. अरविन्द वर्मा, अनुसंधान निदेशक ने समीक्षा दल के सदस्यों एवं विभिन्न अनुसंधान केंद्रों से पधारे हुए परियोजना प्रभारियों एवं वैज्ञानिकों का स्वागत करते हुए कहा कि कृषि के लिए जल एक महत्वपूर्ण इनपुट है. इस के राजस्थान के परिपेक्ष में विवेकपूर्ण उपयोग के बारे में विस्तार से बताया. सिंचाई जल प्रबंधन (आईडब्ल्यूएम) परियोजना द्वारा तैयार किया गया वाटर बजट राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया.
अनुसंधान निदेशक डा. अरविंद वर्मा ने राजस्थान के परिपेक्ष में परियोजना की उपलब्धता को साझा किया एवं जल प्रबंधन पर किसान उपयोगी सिफारिशों की उपयोगिता एवं फसल जल उपलब्धता पर बताया. साथ ही उन्होंने बताया कि परियोजना के प्रभारी डा. पीके सिंह ने अनुसंधान आलेख को आस्ट्रेलिया में पढ़ा और डा. केके यादव ने आस्ट्रेलिया एवं वियतनाम में अनुसंधान आलेखों को पढ़ा.
परियोजना के वैज्ञानिक डा. मनजीत सिंह को परियोजना के अंतर्गत छाली गांव में एनिकट निर्माण के लिए उपराष्ट्रपति से सेगी अवार्ड प्राप्त हुआ.
डा. एसएन पांडा, सदस्य, क्यूआरटी ने अपने परिचयात्मक भाषण में कहा कि पानी की गुणवत्ता में गिरावट के साथ प्राकृतिक संसाधन तेजी से घट रहे हैं, जो आजकल एक गंभीर चिंता का विषय है. उन्होंने सुझाव दिया कि सतही जल और भूजल संसाधनों से संबंधित समस्याओं को अलगथलग करने के बजाय समग्रता में निबटाया जाना चाहिए.
उन्होंने जल संसाधन प्रबंधन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग और सैंसर के अनुप्रयोग पर भी जोर दिया. उन्होंने जोन और क्षेत्र के अनुसार समस्याओं की पहचान करने का भी सुझाव दिया.
डा. पीके सिंह, पूर्व अधिष्ठाता एवं परियोजना प्रभारी, सिंचाई जल प्रबंधन ने बताया कि यहां से विकसित प्लास्टिक लाइनिंग पौंड की अनुशंसा राष्ट्रपति द्वारा की गई और इस को देश के सभी कृषि विज्ञान केंद्रों पर लागू करने की सिफारिश की गई.
इस अवसर पर मध्य एवं पश्चिमी क्षेत्र में संचालित परियोजनाओं के परियोजना समन्वयकों ने अपनी अनुसंधान परियोजनाओं का संक्षिप्त प्रतिवेदन प्रस्तुत किया. कार्यक्रम के दौरान अतिथियों द्वारा भूमि जल एटलस एवं दो तकनीकी बुलैटिन का विमोचन किया गया. डा. केके यादव, विभागाध्यक्ष एवं परियोजना प्रभारी ने पधारे हुए अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों का धन्यवाद प्रेषित किया. कार्यक्रम का संचालन डा. एससी मीणा, आचार्य, मृदा विज्ञान विभाग ने किया.