उदयपुर. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत खरपतवार नियंत्रण पर विस्तार अधिकारियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम का सफल आयोजन किया गया. इस प्रशिक्षण का नेतृत्व महाराणा प्रताप कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी), उदयपुर के अनुसंधान निदेशक डा. अरविंद वर्मा सहित प्रतिष्ठित वक्ताओं ने किया. उन के साथ सहायक कृषि निदेशक, बडगांव, श्याम लाल सालवी, डा. हरि सिंह, डा. रविकांत शर्मा और डा. श्रवण भी शामिल थे, जिन्होंने विभिन्न विषयों पर अपने विशेष ज्ञान को साझा किया.

अपने उद्घाटन भाषण में डा. अरविंद वर्मा ने फसल उत्पादकता और स्थायी कृषि पद्धतियों को सुनिश्चित करने में प्रभावी खरपतवार प्रबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि फसलों के उत्पादन में खरपतवार एक गंभीर समस्या है. खरपतवारों का प्रकोप अकसर मृदा प्रकार, वर्षा, मौसम, फसल प्रणाली, इत्यादि कारणों द्वारा प्रभावित होता है. खरपतवारों की तीव्रता की वजह से कभीकभी फसल पूर्णत नष्ट हो जाती है, इसलिए विभिन्न प्रकार की फसलों का अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए खरपतवारों का कुशल एवं समय पर प्रबंधन आवश्यक है. गुणवत्तापूर्ण फसलोत्पादन में खरपतवार मुख्य रूप से बाधक होते हैं, जो कीट एवं बीमारियों की अपेक्षाकृत फसल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाते हैं. फसलों में खरपतवारों के प्रकोप से प्रत्येक वर्ष में अनुमानित 2,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है. अनुसंधानों एवं सर्वेक्षणों से ज्ञात है की फसल में खरपतवारों के प्रकोप द्वारा उपज में 37 प्रतिशत तक की गिरावट आती है.

खरपतवार वे अवांछित पौधे होते हैं जिन की निश्चित स्थान एवं समय पर आवश्यकता नहीं होती है और बिना बोए उग जाते हैं, जिस से लाभ की तुलना में हानि अधिक होती है, क्योंकि खरपतवार फसल के साथ पोषक तत्त्व, जल, स्थान, प्रकाश आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे फसलों के लिए पोषक तत्त्वों की उपलब्धता कम पड़ जाती है और फसलों से वंछित उत्पादन नहीं मिलता.

फसलों में खरपतवार प्रबंधन एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है. खरपतवारों के निवारण के लिए ऐसी प्रभावशाली पद्धति एवं तकनीक को उपयोग में लाना चाहिए जो वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित हो, जिस से किसानों को प्रति इकाई क्षेत्रफल से फसल उत्पादन वृद्धि के साथसाथ पर्यावरण भी सुरक्षित हो और आगामी कृषि भी प्रभावित न हो सके.

डा. हरि सिंह ने कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर इस के प्रभाव को रेखांकित करते हुए खरपतवार से आर्थिक नुकसान एवं उन की रोकथाम पर बोलते हुए कहा कि प्रशिक्षण में सामान्य और आक्रामक खरपतवार प्रजातियों की पहचान, मैनुअल और रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के सर्वोत्तम तरीकों और पर्यावरण के अनुकूल नवीनतम तकनीकों सहित कई विषयों को शामिल किया गया. कार्यशालाओं और व्यावहारिक प्रदर्शनों के माध्यम से, विस्तार अधिकारियों को वास्तविक परिस्थितियों में लागू करने योग्य व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया गया.

डा. रविकांत शर्मा ने देश के विभिन्न हिस्सों में लागू की गई फसल खरपतवार नियंत्रण रणनीतियों के अध्ययन प्रस्तुत किए.

श्यामलाल सालवी, सहायक कृषि निदेशक, बडगांव ने अपने क्षेत्रीय अनुभवों से व्यावहारिक चुनौतियों से निबटने के लिए उपयोगी सुझाव दिए. उन्होंने बताया कि आज के प्रशिक्षण कार्यक्रम में अधिकारियो ने व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया. इस ज्ञान को किसानों तक ले कर जाएंगे जिस से किसानों की आय व उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी.

डा. श्रवण ने सत्र का समापन करते हुए खरपतवार विज्ञान में भविष्य के रुझानों और सतत कृषि विकास के लिए निरंतर शिक्षा के महत्त्व पर चर्चा की. इस प्रशिक्षण में खरीफ और रबी की फसलों में खरपतवार प्रबंधन के साथ जैविक खेती में खरपतवारों के नियंत्रण पर व्याख्यान दिए गए. वर्तमान कृषि के परिपेक्ष्य में ड्रोन आधारित खरपतवारों के प्रयोग एवं उन की अनुशंसाओं के बारे में प्रशिक्षण दिया गया.

प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि प्राप्त ज्ञान उन के क्षेत्र के लिए एक महत्त्वपूर्ण संसाधन साबित होगा. कार्यक्रम में बडगांव व गिर्वा तहसील के 35 से अधिक सहायक कृषि अधिकारियों व कृषि पर्यवेक्षकों ने भाग लिया.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...