सब्जी की रोपाई वाली फसलों में आमतौर पर कीटों का प्रकोप पौधशाला से ही शुरू हो जाता है या कुछ कीट विषाणुजनित रोगों को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं, जो आगे चल कर फसल को अच्छाखासा नुकसान पहुंचाते हैं. फसल को कैसे बचाएं कीटों से? कैसे करें फसल की देखभाल? इसी विषय पर डा. अखिलेश कुमार, कृषि विज्ञान केंद्र, रीवा (मध्य प्रदेश) और डा. तपन कुमार सिंह, कृषि महाविद्यालय, रीवा (मध्य प्रदेश) ने विस्तार से जानकारी दी.
अगर सब्जी का उत्पादन बढ़ाना है, तो पौधों को स्वस्थ व कीटों से मुक्त रखना जरूरी है. स्वस्थ एवं मुक्त कीट पौध की रोपाई के बाद फसल की बढ़त अच्छी होती है और पौधशाला से खेत में कीट के फैलने व इन के द्वारा विषाणुजनित रोग बहुत कम मात्रा में लगते हैं.
कीटों के प्रकोप की मुख्य वजह
* पौधशाला में पौधों की संख्या (घनत्व) अधिक होती है, जिस से कीटों के अंडे देने और खाने के लिए उपयुक्त वातावरण मिल जाता है. अधिक पासपास पौधों के होने से कीट एक पौधे से दूसरे पौधे पर आसानी से फैल जाते हैं और कम समय में ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं.
* पौधशाला की मिट्टी में पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में होते हैं, जिस से पौध ज्यादा लचीली एवं मुलायम हो जाती है और कीटों को ज्यादा आकर्षित करती है. सब्जी पौधशाला में लगने वाले प्रमुख कीट पौधशाला में मुख्य रूप से रस चूसने वाले कीट जैसे सफेद मक्खी, माहू, अष्टपदी कीट, थ्रिप्स, जैसिड (हरा तेला) के साथसाथ पर्ण सुरंग कीट, पत्ती भक्षक कीट और तना वेधक कीट का अधिकाधिक प्रकोप होता है.
कभीकभी दीमक व मिट्टी के भीतर पाए जाने वाले कीट भी पौधशाला को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. नुकसान पहुंचाने वाले कीटों का प्रबंधन सब्जियों की पौधशाला में कीटों द्वारा अत्यधिक नुकसान होता है. इस समय अगर हम कीटों से होने वाले नुकसान से बचाएं, तो सब्जियों का उत्पादन बढ़ा सकते हैं. किसी भी फसल की पौध पौधशाला में स्वस्थ हो, तो आगे चल कर पौधे का विकास अच्छा होता है.
स्वस्थ पौधों के विकास के लिए खास बातें
* गरमी में गहरी जुताई करें. पौधशाला की मिट्टी को कीटनाशी रसायनों या नीम की खली से उपचारित करें.
* पौधशाला की क्यारियों को खरपतवार से मुक्त रखें.
* बीजों को कीटनाशी रसायनों से उपचारित करें व उचित ढंग से पौधे पर छिड़काव करें.
* बीजों की लाइन में बोआई करें.
* पौधशाला को बारीक नायलौन या कपड़े की जाली से ढक कर रखें.
* पौधशाला में कीटों के अंडों, सूंड़ी व ककून (कृमि कोष) को नष्ट कर दें.
* 4 फीसदी नीम गिरी के सत प्रयोग करें.
* रोपाई से पूर्व पौध की जड़ों को कीटनाशी रसायनों से उपचारित करें.
बैगन का तना व फल बेधक कीट : पौधशाला में इस का प्रकोप केवल तने पर होता है, जिस में पौध के ऊपरी भाग मुरझा कर लटक जाते हैं. इस से पौधों का विकास नहीं हो पाता है. इस कीट की सुंडी क्षतिकारक होती है, जो गुलाबी रंग की होती है.
प्रबंधन : मिट्टी को फिप्रोनिल 0.3जी की 5 ग्राम मात्रा प्रति वर्गमीटर की दर से शोधित करना चाहिए. क्षतिग्रस्त तने को तोड़ कर सुंडी सहित मिट्टी में दबा देना चाहिए. एमामैक्टिन बेंजोएट 5 एसजी नामक दवा की 1 ग्राम मात्रा प्रति 2 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.
टमाटर सफेद मक्खी : इस मक्खी द्वारा पौधों के प्रत्येक भाग से रस चूस कर नुकसान पहुंचाया जाता है. यह एक विषाणु वाहक कीट है, जो आगे चल कर पर्ण कुंचन (लीफ कर्ल) नामक रोग फैलाता है, जिस से टमाटर की पैदावार काफी प्रभावित होती है.
प्रबंधन : पौधशाला की मिट्टी को कार्बोफ्यूरान 3जी की 5 ग्राम मात्रा प्रति वर्गमीटर की दर से उपचारित करना चाहिए.
* बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूपी नामक रसायन से 3 ग्राम मात्रा ले कर 1 किलोग्राम बीज को उपचारित कर के बोआई कर दें.
* इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल की 1 मिलीलिटर दवा 2 लिटर पानी में मिला कर या फिप्रोनिल 5 फीसदी एससी नामक दवा की मात्रा 1.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए. * सफेद नायलौन की जाली या एग्रोनैट का प्रयोग करना चाहिए.
पर्ण सुरंगक कीट :यह कीट पत्ती के अंदर सुरंग बना कर पत्ती के हरे भाग को नुकसान पहुंचाते हैं, जिस से पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं.
प्रबंधन : इस कीट का नियंत्रण 4 फीसदी नीम गिरी के सत का छिड़काव करने से हो जाता है यानी 40 ग्राम नीम गिरी का पाउडर 1 लिटर पानी के लिए पर्याप्त है.
गोभी हीरक पृष्ठ (पतंगा कीट) : यह हरे रंग की सूंड़ी होती है, जो पत्तियों की निचली सतह पर अधिक मात्रा में पाई जाती है. ये पत्तियों के हरे भाग को खुरचखुरच कर खाती हैं, जिस से पौधे कमजोर हो जाते हैं.
प्रबंधन : एमामैक्टिन बेंजोएट 5 एसजी की 1 ग्राम मात्रा को प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करने से फूलगोभी और पत्तागोभी के पौध को भी नुकसान होने से बचाया जा सकता है. 4 फीसदी नीम गिरी का सत लाभकारी होता है.
तंबाकू की सुंडी (स्पोडोप्टेरा लिटुरा एफ.) : इस कीट की सुंडी हरे रंग की होती है. इस के अगले भाग पर 2 काले धब्बे पाए जाते हैं, जो इस कीट की मुख्य पहचान है.
प्रबंधन : इंडोक्साकार्ब 15.8 ईसी नामक दवा की 1 मिलीलिटर मात्रा का प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.
प्याज थ्रिप्स : यह कीट छोटा व पीले रंग का होता है, जो पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियें पर सफेद धब्बा बन जाता है. प्याज की पौधशाला में इस कीट का प्रकोप अधिक होता है.
प्रबंधन : इस कीट के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 1 मिलीलिटर प्रति 2 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करने से नियंत्रण हो जाता है. चिपचिपी पीली पट्टी का प्रयोग करना चाहिए.
हड्डा बीटल (एपिलेकना भृंग) : इस कीट से पौधशाला में काफी क्षति होती है. इस के भृंग एवं प्रौढ़ दोनों अवस्थाएं क्षतिकारक होती हैं. इस के प्रकोप से पत्तियों में जालीनुमा शिराएं दिखाई देती हैं, जिस में हरा भाग कीट खा जाते हैं. इस वजह से आगे चल कर पत्तियां सूख जाती हैं और पौध रोपाई के लायक नहीं रहते.
प्रबंधन : सूखी पत्तियों को एकत्र कर जला देना चाहिए. इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1 मिलीलिटर दवा प्रति 2 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.
मिर्च थ्रिप्स : यह एक छोटा और नाव के आकार का कीट होता है, जो पत्ती से रस चूस कर नुकसान पहुंचाता है. अगर इस कीट का नियंत्रण पौधशाला में न किया जाए, तो आगे चल कर पर्ण कुंचन (गुरचा) नामक रोग लग जाता है.
प्रबंधन : इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूपी नामक दवा की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम की दर से बीज को उपचारित कर लेना चाहिए. पौध अवस्था में प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल की 1 मिलीलिटर दवा प्रति 2 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए. फल अवस्था में फिप्रोनिल 5 फीसदी एससी नामक दवा की 1.5 मिलीलिटर मात्रा प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.
पीली माइट : यह एक प्रकार का अष्टपदी कीट होता है, जो पत्तियों से रस चूस कर नुकसान पहुंचाता है. प्रबंधन : नीम के तेल का 50 से 60 एमएल प्रति 15 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए. प्रोपेरागाइट 57 फीसदी की 3 मिलीलिटर ईसी प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए