आजकल का मौसम तेज चटकदार धूप, चलती लू और धूल भरी आंधी वाला है. ऐसे में किसानों को सुबह 11 बजे से ले कर शाम 4 बजे तक खेत में काम करने से बचना चाहिए. खेती के कामों को सुबहशाम के समय ही निबटाना चाहिए.

अब बात करते हैं फसलों की. जायद की खड़ी फसल में जरूरत के मुताबिक हलकी सिंचाई करें. रबी फसल के बाद खाली हुए खेतों में गहरी जुताई करें और खेत को खुला रखें, ताकि मिट्टी में मौजूद सभी खरपतवार के बीज, कीट और रोग नष्ट हो जाएं.

कीटनाशकों और खरपतवारनाशी रसायनों के लिए उपकरणों को साफ पानी से धोएं और उन्हें अलग से इस्तेमाल करें. हवा के रुख के खिलाफ कीटनाशकों और खरपतवारनाशी रसायनों का छिड़काव न करें. छिड़काव सुबह या शाम को करना चाहिए. छिड़काव के तुरंत बाद हाथों को अच्छी तरह से साबुन या हैंडवाश से धोना चाहिए और कपड़े धोने के बाद नहाना चाहिए, जिस से कृषि रसायनों का असर आप के शरीर पर नुकसान न दे.

धान की खेती के लिए :

धान के खेतों की तैयारी के लिए गहरी जुताई कर मेडबंदी करें. धान की नर्सरी डालने के 15 दिन पूर्व खेत की हलकी सिंचाई करें, ताकि खेत में निकलने वाले खरपतवार खेत तैयार करते समय नष्ट हो जाएं.

उड़द की खेती के लिए :

उड़द की फसल फूल से फली की ओर बढ़ रही है, जो नमी की कमी के प्रति संवेदनशील है. इसलिए आवश्यकतानुसार हलकी सिंचाई करते हुए उचित नमी बनाए रखें.

उड़द की फसल में फली बेधक कीट का प्रकोप दिखाई देने की संभावना है. अतः इस की रोकथाम के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5 फीसदी एसजी 220 ग्राम प्रति हेक्टेयर या डाईमेथोएट 30 फीसदी ईसी 1.0 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लिटर पानी में घोल बना कर आसमान साफ होने पर छिड़काव करें.

मूंग की खेती के लिए :

मूंग की फसल में आवश्यकतानुसार 10-12 दिन के अंतराल पर हलकी सिंचाई करते हुए उचित नमी बनाए रखें. मूंग की फसल में थ्रिप्स या हरा फुदका कीट लगने की संभावना होती है, इसलिए इस की रोकथाम के लिए औक्सीडेमेटन-मिथाइल 25 फीसदी ईसी या डाईमेथोएट 30 फीसदी ईसी 1.0 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

मक्का फसल :

इन दिनों मक्का की फसल जीरा निकलने/भुट्टे के बनने/दाने भरने की अवस्था में चल रही है, जो नमी की कमी के प्रति संवेदनशील है. इसलिए आवश्यकतानुसार हलकी सिंचाई कर उचित नमी बनाए रखें.

मक्के की फसल में तना छेदक/प्ररोह मक्खी कीट के प्रकोप की संभावना रहती है, अत: इस की रोकथाम के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5 फीसदी एसजी 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर या डाईमेथोएट 30 फीसदी ईसी 1.0 लिटर प्रति हेक्टेयर की 600-700 लिटर पानी में मिला कर स्प्रे करें.

हरी खाद के लिए :

रबी फसल की कटाई के बाद उस खेत में हरी खाद की फसल बोने के लिए पलेवा करें. हरी खाद के लिए ढेंचा अथवा सनई बोई जा सकती है. बोआई करते समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है.

बोआई के समय नत्रजन 15 किलोग्राम और फास्फोरस 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिए. इस की बोआई के लिए बीज दर 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. बोआई के 45-50 दिन बाद खेत में इस की पलटाई करने पर 20 से 25 टन हरा पदार्थ और 80 से 100 किलोग्राम नत्रजन मिट्टी को प्राप्त होता है.

बागों के लिए :

नए बागों की रोपाई के लिए गड्ढों की खुदाई करें. आम, अमरूद, नींबू, बेर, अंगूर, पपीता और लीची आदि के बागों में सिंचाई का काम करें.

आम के फल को गिरने से बचाने के लिए बगीचों की सिंचाई करें या एसिटिक एसिड के 15 पीपीएम या 4 मिली. प्लेनोफिक्स प्रति 9 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

आम के फलों में कोयलिया विकार या आतंरिक सड़न रोग से बचाव के लिए 0.8 फीसदी बोरेक्स 0.8 ग्राम प्रति लिटर पानी में मिला कर 10 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें.

सब्जियों की खेती :

सब्जियों की खड़ी फसल में निराईगुड़ाई करें और शाम को 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें. गरमी में बोई जाने वाली कद्दू, लौकी, तोरई, करेला, खीरा, तरबूज, खरबूजा आदि की तैयार फसलों को काट कर बाजार में भेज दें.

कद्दूवर्गीय सब्जियों में फल मक्खी कीट की संख्या जानने एवं उस के नियंत्रण के लिए कार्बरिल 0.2 फीसदी + प्रोटीन हाईड्रोलाइसेट या सीरा 0.1 फीसदी अथवा मिथाइल यूजीनाल 0.1 फीसदी + मैलाथियान 0.1 फीसदी के घोल को डब्बे में डाल कर ट्रैप लगाएं.

अनाज भंडारण :

भंडारण से पहले अनाज को अच्छी तरह साफ कर लें और इसे नमी की मात्रा के संस्तुति स्तर तक सुखा लें. पिछली फसल के सभी अनाज और अन्य भंडारण सामग्री को हटा कर गोदामों की अच्छी तरह सफाई करें. दीवारों की दरारों की मरम्मत कर लें और दीवारों की सफेदी का काम निबटा लें. इस के अलावा सलाह दी जाती है कि 0.5 फीसदी मैलाथियान घोल का छिड़काव करें और चेंबर को 7-8 दिनों के लिए बंद रखें.

अनाज भरने वाली बोरियों को 5 फीसदी नीम के घोल से उपचारित करें. बोरियों को धूप में सुखाना चाहिए, ताकि अंडे और कीड़े और साथ ही रोगों के इनोकुलम नष्ट हो जाएं.

पशुपालन:

तेज गरमी को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे पशुओं को रात के समय खुले में बांध दें. दिन में पशुओं को छाया वाले स्थान पर बांध दें. अगर संभव हो, तो पशुओं को पेड़ के नीचे न बांधें, क्योंकि तेज हवा के चलते पेड़ों की टहनियां गिरने की संभावना अधिक रहती है.

पशुओं को हरा चारा या फिर आसानी से पचने वाला खनिज मिश्रण और नमक खिलाएं. पशुओं को दिन में 3-4 बार साफ व ठंडा पानी पिलाना चाहिए. पेट में कीड़े की रोकथाम के लिए पशुओं को कृमिनाशक दवा देने का उपयुक्त समय है. पशुओं में खुरपका रोग और लंगड़िया बुखार से बचाव के लिए एफएमडी और वीक्यू का टीका अवश्य लगवाएं. पशुओं को हरे व सूखे चारे के साथ पर्याप्त मात्रा में अनाज दें. गर्भवती पशुओं को ढलान वाली जगह पर न बांधें. पशुओं को सुबहशाम जरूर नहलाएं.

– डा. वसीम खान, विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केंद्र, फतेहपुर

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...