नई दिल्ली : फास्फेटिक और पोटाशिक (पीएंडके) उर्वरकों में पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के अंतर्गत प्रमुख उर्वरकों और कच्चे माल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों को ध्यान में रखते हुए सब्सिडी तय की जाती है. पीएंडके उर्वरकों के लिए एनबीएस दरों को सालाना/अर्धवार्षिक रूप से तय करते समय उतारचढ़ाव को शामिल कर लिया जाता है.

खरीफ 2024 के दौरान डीएपी के संबंध में प्रति मीट्रिक टन सब्सिडी 21,676 रुपए थी. रबी 2024-25 के दौरान डीएपी के संबंध में प्रति मीट्रिक टन सब्सिडी 21,911 रुपए तय की गई है. इस के अलावा किसानों को सस्ती कीमतों पर डीएपी की सुचारू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने जरूरत के आधार पर एनबीएस सब्सिडी दरों के अलावा डीएपी पर विशेष पैकेज प्रदान किए हैं.

वर्ष 2024-25 में सरकार ने 1 अप्रैल, 2024 से 31 दिसंबर, 2024 तक की अवधि के लिए डीएपी की वास्तविक पीओएस (बिक्री के बिंदु) बिक्री पर एनबीएस दरों से परे डीएपी पर एकमुश्त विशेष पैकेज को मंजूरी दी है. यह पैकेज पीएंडके उर्वरक कंपनियों को 3,500 रुपए प्रति मीट्रिक टन की दर से दिया जाएगा. इस पैकेज पर लगभग 2,625 करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ पड़ेगा. इस का उद्देश्य किसानों को किफायती मूल्य पर डीएपी की सतत उपलब्धता सुनिश्चित करना, कृषि क्षेत्र और संबंधित गतिविधियों को समर्थन देना और देश में खाद्य सुरक्षा परिदृश्य को मजबूत करना है. किसानों को यूरिया उत्पादन लागत पर ध्यान दिए बिना वैधानिक रूप से अधिसूचित अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) पर उपलब्ध कराया जाता है.

यूरिया के 45 किलो बैग का सब्सिडी वाला एमआरपी 242 रुपए प्रति बैग है (नीम कोटिंग और लागू करों के शुल्क को छोड़ कर). खेत पर यूरिया की वितरित लागत और यूरिया इकाइयों द्वारा शुद्ध बाजार प्राप्ति के बीच का अंतर भारत सरकार द्वारा यूरिया निर्माता/आयातकर्ता को सब्सिडी के रूप में दिया जाता है. सभी किसानों को रियायती दरों पर यूरिया उपलब्ध कराया जा रहा है.

यूरिया के संबंध में सरकार ने 2 जनवरी, 2013 को नई निवेश नीति (एनआईपी) 2012 की घोषणा की थी और 7 अक्तूबर, 2014 को इस में संशोधन किया गया था. इस से यूरिया क्षेत्र में नए निवेश को बढ़ावा दिया जा सके और भारत को यूरिया क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जा सके.

एनआईपी 2012 के अंतर्गत कुल 6 नई यूरिया इकाइयां लगाई गई हैं, जिन में नामित सार्वजनिक उपक्रमों की संयुक्त उद्यम कंपनियों (जेवीसी) के माध्यम से स्थापित 4 यूरिया इकाइयां और निजी कंपनियों द्वारा स्थापित 2 यूरिया इकाइयां शामिल हैं.

जेवीसी के माध्यम से स्थापित इकाइयां तेलंगाना में रामागुंडम फर्टिलाइजर्स एंड कैमिकल्स लिमिटेड (आरएफसीएल) की रामागुंडम यूरिया इकाई और उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार में हिंदुस्तान उर्वरक और रसायन लिमिटेड (एचयूआरएल) की गोरखपुर, सिंदरी और बरौनी नामक 3 यूरिया इकाइयां हैं.

वहीं निजी कंपनियों द्वारा लगाई गई इकाइयां पश्चिम बंगाल में मैटिक्स फर्टिलाइजर्स एंड कैमिकल्स लिमिटेड (मैटिक्स) की पानागढ़ यूरिया इकाई और राजस्थान में चंबल फर्टिलाइजर्स एंड कैमिकल्स लिमिटेड (सीएफसीएल) की गडेपन-III यूरिया इकाई हैं. इन में से प्रत्येक इकाई की स्थापित क्षमता 12.7 लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष (एलएमटीपीए) है. ये इकाइयां अत्यधिक ऊर्जा कुशल हैं, क्योंकि ये नवीनतम तकनीक पर आधारित हैं. इसलिए इन इकाइयों ने मिल कर 76.2 एलएमटीपीए की यूरिया उत्पादन क्षमता जोड़ी है, जिस से कुल स्वदेशी यूरिया उत्पादन क्षमता (पुनर्मूल्यांकित क्षमता) 2014-15 के दौरान 207.54 एलएमटीपीए से बढ़ कर वर्तमान में 283.74 एलएमटीपीए हो गई है.

इस के अलावा, कोयला गैसीकरण मार्ग पर 12.7 एलएमटीपीए का नया ग्रीनफील्ड यूरिया संयंत्र स्थापित कर के तालचेर फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (टीएफएल) नामक सार्वजनिक उपक्रमों के संयुक्त उद्यम के माध्यम से एफसीआईएल की तालचेर इकाई के पुनरुद्धार के लिए एक विशेष नीति को भी मंजूरी दी गई है. इस के अलावा सरकार ने स्वदेशी यूरिया उत्पादन को अधिकतम करने के उद्देश्यों से एक के साथ मौजूदा 25 गैस आधारित यूरिया इकाइयों के लिए 25 मई, 2015 को नई यूरिया नीति (एनयूपी) 2015 को भी अधिसूचित किया है.

एनयूपी-2015 के कारण साल 2014-15 के दौरान उत्पादन की तुलना में 20-25 एलएमटीपीए अतिरिक्त यूरिया उत्पादन हुआ है. इन कदमों से साल 2024 के दौरान यूरिया उत्पादन 225 एलएमटी प्रति वर्ष से बढ़ कर साल 2023-24 के दौरान 314.07 एलएमटी हो गया है.

फास्फेटिक और पोटाशिक उर्वरकों (पीएंडके) के मामले में कंपनियां अपने व्यवसाय की गतिशीलता के अनुसार उर्वरक कच्चे माल, बिचौलियों और तैयार उर्वरकों का आयात/उत्पादन करने के लिए स्वतंत्र हैं. अनुरोधों के आधार पर नई विनिर्माण इकाइयों या मौजूदा इकाइयों की विनिर्माण क्षमता में वृद्धि को एनबीएस सब्सिडी योजना के अंतर्गत मान्यता दी गई है/रिकौर्ड में लिया गया है, ताकि विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा सके और देश को उर्वरक उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया जा सके.

इस के अलावा 100 फीसदी स्वदेशी रूप से निर्मित उर्वरक गुड़ से प्राप्त पोटाश (पीडीएम) को बढ़ावा देने के लिए, इसे 13 अक्तूबर, 21 से पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) व्यवस्था के अंतर्गत अधिसूचित किया गया है. साथ ही, स्वदेशी रूप से निर्मित उर्वरक एसएसपी पर माल ढुलाई सब्सिडी खरीफ 2022 से लागू की गई है, ताकि मिट्टी को फास्फेटिक या “पी” पोषक तत्व प्रदान करने के लिए एसएसपी के उपयोग को बढ़ावा देने में मदद मिल सके. इन कदमों से पीएंडके उर्वरकों का उत्पादन साल 2014-15 में 159.54 एलएमटी से बढ़ कर साल 2023-24 में 182.85 एलएमटी हो गया है.

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