दुनिया में भारत धान की पैदावार करने में चीन के बाद दूसरा सब से बड़ा देश है. देश में लगभग 50 फीसदी से ज्यादा लोग चावल का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन धान की कटाई से ले कर उस का सही ढंग से रखरखाव करने तक लगभग 10 फीसदी धान का नुकसान किसानों को होता है. इस की सब से बड़ी वजह किसानों को सही जानकारी न होना है.
फसल की कटाई और इस के बाद होने वाले नुकसान को कम करने की जरूरत आज के समय में पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बेहद जरूरी है. आमतौर पर देखा जाता है कि कटाई, मड़ाई, सुखाना और फिर फसल को रखने के दौरान नुकसान ज्यादा होता है. इस नुकसान से बचने के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाना जरूरी है. इन्हीं कुछ तरीकों के बारे में हम आप को बता रहे हैं, जिस से आप की मेहनत की कमाई बेकार न जाए.
धान की कटाई
धान की कटाई किसान खुद करते हैं या फिर मजदूरी दे कर फसल को कटवाते हैं. इस के अलावा अब कई तरह की मशीनें भी लोगों के पास आ गई हैं, जिन से फसल कटवाना आसान हो गया है. मशीनों से समय भी काफी कम लगता है. रीपर, कंबाइन व हारवेस्टर आदि ऐसी ही मशीनें हैं. मजदूरों से फसल की कटाई कराने में इसलिए ज्यादा समय लगता है, क्योंकि मजदूर धान की कटाई पारंपरिक तरीके यानी हंसियां से करते हैं. इस में समय ज्यादा लगता है, लेकिन फायदा ज्यादा होता है.
हंसिया से कटाई में फसल का काफी कम नुकसान होता है और धान का पुआल भी किसानों को मिल जाता है, जो पशुओं को खिलाने के काम आता है. इस के अलावा ईंधन और रसायन निर्माण में पुआल का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही पुआल बेच कर किसान अपनी आय भी बढ़ा सकते हैं. लेकिन हंसिया से कटाई कराने में काफी समय लगता है, जिस से कटाई का खर्च ज्यादा आता है.
मशीनों में रीपर और ट्रैक्टर चालित कंबाइनर का इस्तेमाल धान की कटाई में किया जाता है. मशीन धान काट कर लाइन में लगा देती है, जिसे बाद में इकट्ठा करने में आसानी रहती है. कंबाइनर से धान की कटाई जमीन से काफी ऊपर से की जाती है और कटाई के साथसाथ मड़ाई और औसाई भी हो जाती है. कटाई की कंबाइनर मशीनें कई तरह की आती हैं, कुछ सस्ती और कुछ महंगी भी. कंबाइनर से धान की कटाई में पुआल का नुकसान होता है और काफी धान टूट भी जाता है.
धान टूटने से किसानों को उस की सही कीमत नहीं मिल पाती, जिस से बाजार कीमत से कम में धान बेचना किसानों की मजबूरी बन जाती है, लेकिन कंबाइनर से कटाई काफी जल्दी होती है, जिस से समय की बचत होती है साथ ही लागत भी कम आती है.
कटाई के समय निम्न बातों का ध्यान रखें :
* फसल की कटाई उचित नमी और सही समय पर ही करनी चाहिए. धान की कटाई के लिए 20-22 फीसदी नमी सही रहती है. इस से ज्यादा नमी होने पर चावल कम मिलता है और कच्चे, टूटे और कम गुणवत्ता के दाने ज्यादा मात्रा में होते हैं. कम नमी पर कटाई करने से मिलिंग के दौरान धान टूट कर गिरने लगता है.
* फसल की कटाई देर से करने पर फसल जमीन पर गिर सकती है, जिस से चूहों, चिडि़यों और कीटों से फसल को नुकसान हो सकता है.
* यदि खेत में पानी भरा हो तो कटाई से 7-10 दिन पहले पानी निकाल देना चाहिए, जिस से कटाई आसानी से हो सके.
* कटाई के समय धान की सभी बालियों को एक दिशा में रखना चाहिए ताकि मड़ाई में दिक्कत न हो.
* कटाई के बाद धान को बारिश और ओस से बचाना चाहिए.
* धान को कटाई के बाद ज्यादा सुखाने से बचना चाहिए.
* धान की किस्मों के अनुसार कटाई करवानी चाहिए, जैसे अगेती किस्में 110-115 दिनों बाद, मध्यम किस्में 120-130 दिनों बाद और देर से पकने वाली किस्में लगभग 130 दिनों के बाद काटने लायक हो जाती हैं.
धान की मड़ाई
धान की बालियों यानी पुआल से बीजों को अलग करना मड़ाई कहलाता है. मड़ाई का काम मजदूरों, पशुओं और मशीनों से भी किया जाता है. मड़ाई का काम फसल कटाई के बाद जितनी जल्दी हो सके कर लेना चाहिए. मजदूरों द्वारा मड़ाई लकड़ी या लोहे के पाइप से की जाती है. 2-3 बार लकड़ी या लोहे से कूटने से धान के बीज पौधों से अलग हो जाते हैं. मड़ाई के लिए तारों से बने ड्रम का भी इस्तेमाल होता है. धान के पौधों को ड्रम पर इस तरह रखा जाता है कि बालियां तार को छूती रहें और ड्रम को पैर से घुमाया जाता है.
इस तरीके से मजदूरों की मड़ाई क्षमता बढ़ जाती है. मड़ाई का काम बैलों से भी किया जाता है. धान की बालियों को जमीन पर फैलाया जाता है और इस के ऊपर बैलों को घुमाया जाता है. उन के पैर के दबाव से धान पौधों से अलग हो जाता है.
इस के अलावा थ्रेसर से भी धान की मड़ाई की जाती है. मड़ाई में किसी वजह से देरी हो रही हो, तो धान का बंडल बना कर सूखी और छायादार जगह पर रखना चाहिए.
ओसाई
मड़ाई के बाद धान के बीजों के साथ भूसा, धूल के कण, बदरा और पुआल के टुकड़े रह जाते हैं. इसे हटाने के लिए धान की ओसाई की जाती है. ओसाई का काम उस समय भी किया जाता है, जब हवा चल रही हो. यदि हवा बंद हो जाए, तब 2 लोग चादर को तेजी के साथ झलते हैं, जिस से हवा निकलती है और ओसाई हो जाती है. आजकल बाजार में ओसाई के लिए बिना बिजली के बड़े पंखे आते हैं, जिन्हें हाथों से चलाया जाता है और ओसाई हो जाती है.
धान की सुखाई
धान की कटाई 20-22 फीसदी नमी पर की जाती है, लेकिन इतनी नमी में धान को रखा नहीं जा सकता है और न ही मिलिंग की जा सकती है. इसलिए धान की नमी कम करना बहुत जरूरी है. इस के लिए धान को पहले धूप में रख कर सुखाया जाता है. इस के लिए घर की छतों के फर्श, चटाई, तिरपाल, प्लास्टिक शीट आदि पर फैला कर कई दिनों तक धान के बीजों को सुखाया जाता है. धान को ज्यादा तेज धूप में नहीं सुखाना चाहिए. सुखाने के लिए सीमेंट के फर्श और तिरपाल का इस्तेमाल करना चाहिए.
कटाई के बाद जितनी जल्दी हो सके धान को सुखा लेना जरूरी है.
सुखाते समय धान को पक्षियों, चूहों और कीटपतंगों से बचाना चाहिए, क्योंकि इस से काफी नुकसान हो जाता है.
धान का भंडारण
घर में पूरे साल धान मौजूद रहे, इस के लिए जरूरी है कि उसे रखने के लिए घर में अच्छी व्यवस्था हो. भंडारण के पहले धान में नमी की मात्रा देख लेनी चाहिए. यदि आप को अधिक समय के लिए भंडारण करना है, तो नमी की मात्रा 12 फीसदी और कम समय के लिए 14 फीसदी होनी चाहिए.
भंडारण से पहले या बाद में धान का कीटों से बचाव करना भी जरूरी है. भंडारण लिए कई तरह के ड्रम या कोठी इस्तेमाल किए जाते हैं. ये मिट्टी, लकड़ी, बांस, जूट की बोरियों, ईंटों व कपड़े आदि से बनाए जाते हैं, लेकिन इस तकनीक से ज्यादा समय तक भंडारण करना संभव नहीं है, क्योंकि इन में हवा जाने की कोई जगह नहीं होती.
ज्यादा समय तक भंडारण के लिए पूसा कोठी, धात्विक बिन व साइलो आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है. फसल खराब न हो, इस के लिए समयसमय पर ऐसा बंदोबस्त करना चाहिए, जिस से कि हवा जाती रहे वरना धान खराब हो सकता है.