भारत में मुरगीपालन कारोबार को बढ़ावा देने के लिए बेहद माकूल बाजार व खाने वालों की अच्छी तादाद मौजूद है. इस वजह से चिकन मीट व अंडों दोनों की मांग में कमी आने की उम्मीद नहीं है, बल्कि मांग लगातार बढ़ रही है. चिकन मीट व अंडों की मांग को पूरा करने के लिए देशविदेश की बहुत सी कंपनियां लगी हुई हैं, जो अंडा व चिकन खाने वालों की जेब ढीली कर रही हैं और मोटा मुनाफा कमा रही हैं.

मुरगीपालन में 70 फीसदी खर्चा दाने पर आता है. दाना बनाने में देशीविदेशी कंपनियां लगी हुई हैं और इस में इस्तेमाल होने वाला अनाज व दूसरी चीजें किसान पैदा करते हैं. कंपनियां किसानों से ये समान सस्ती दरों पर खरीद कर दाना तैयार करती हैं और अच्छे मुनाफे के साथ किसानों को बेचती हैं.

अगर किसान खुद मुरगीदाना तैयार कर के बेचें व अपने फार्म में इस्तेमाल करें तो वे मुरगीपालन के कारोबार में ज्यादा फायदा कमा सकते हैं.

मुरगीपालन (Poultry Farming)

मुरगीपालन शुरू करने के लिए कम पूंजी की जरूरत होती है. अच्छा उत्पादन करने और ज्यादा फायदा हासिल करने में कम समय का लगना व स्थापित बाजार जैसी बातें इस कारोबार की खासीयतें हैं. इस कारोबार को शुरू करने के लिए किसी खास तकनीक की जरूरत नहीं होती है. इसे कम पैसा लगा कर एक छोटी यूनिट से शुरू किया जा सकता है.

मुरगीपालन पर देश में बहुत रिसर्च हो चुकी है और अच्छी कामयाबी भी हासिल हुई है. देश में मुरगीपालन 2 तरह से किया जाता है यानी बैकयार्ड मुरगीपालन और कारोबारी तौर पर मुरगीपालन. वैज्ञानिकों ने बैकयार्ड व कारोबारी दोनों की ही अलगअलग नस्लें ईजाद की हैं.

बैकयार्ड मुरगीपालन के लिए नस्लें : वनराजा, ग्रामप्रिया, कैरीगोल्ड, कैरीश्याम, कैरीनिर्भीक गिरिराज, कैरीब्रो, कैरी देवेंद्रा और कैरीलेयर. इन के अलावा कुछ देशी नस्लें असील, कड़कनाथ, घाघस, नैक्डनैक और ब्राऊनदेशी वगैरह हैं, जिन को बैकयार्ड मुरगीपालन में पाला जा सकता है.

कारोबारी नस्लें : कारोबार अंडा और मीट का होता है, इसलिए दोनों की नस्लें भी अलगअलग हैं.

अंडे वाली नस्लें : सफेद लेगहार्न, आईएलआई 80, एचएस 280, वीएच 78, पंजाब सफेद लेयर और रोड आइलैंड रेड वगैरह ऐसी किस्में हैं, जिन से सालाना तकरीबन 180 से 270 अंडे मिल जाते हैं.

मुरगीपालन (Poultry Farming)

मीट वाली नस्लें : ब्रायलर पालन के लिए हमेशा तेजी से बढ़ने की कूवत रखने वाले ब्रायलर चूजों का चुनाव करना चाहिए. चूजे हमेशा किसी मान्यताप्राप्त प्राइवेट कंपनी जैसे वैंकीज इंडिया लिमिटेड, सुगना पोल्ट्री फार्म लिमिटेड वगैरह या सरकारी संस्था से खरीदने चाहिए. आजकल ब्रायलर की कई बढि़या नस्लें जैसे वेनकाब 300 व 400 और सिंथेटिक कलर ब्रायलर वगैरह मौजूद हैं, जिन की बढ़वार बहुत अच्छी होती है. हमेशा ऐसी ही नस्ल के चूजे खरीदें, जिन का 25 से 30 दिनों के बीच 900 से 1300 ग्राम वजन हो जाए.

मांस व अंडा उत्पादन के लिए अच्छी नस्ल के चुनाव के साथसाथ बढि़या दाने, विटामिन, फीड एडिटिव मिनरल मिक्सचर, सही दवा व वैक्सीन वगैरह का भी इंतजाम होना चाहिए. अगर मुरगीपालक ने किसी अच्छी हैचरी से चूजे, दाना व दवा वगैरह खरीदी है और सही तरह से यह कारोबार शुरू किया है, तो अच्छे नतीजों व बढि़या उत्पादन की उम्मीद की जा सकती है. मुरगीपालन व्यवसाय में उचित आवास व्यवस्था का होना भी बहुत जरूरी होता है. आवास व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जो मुरगियों को आबोहवा के बुरे असर से बचाते हुए ज्यादा से ज्यादा उत्पादन में मददगार हो ताकि ज्यादा फायदा हासिल हो सके.

ट्रेनिंग : मुरगीपालन पर भारत सरकार के केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर बरेली, उत्तर प्रदेश व तकरीबन देश के हर कृषि विश्वविद्यालय में ट्रेनिंग देने का खास इंतजाम है. मुरगीपालन का कारोबार शुरू करने से पहले किसी संस्थान या किसी कृषि विश्वविद्यालय से ट्रेनिंग लेना अच्छा रहता है.

देश में बहुत सी कंपनियां मुरगीपालन में इस्तेमाल होने वाले सभी सामान बना रही हैं और बाजार में बेच रही हैं. इन में से कुछ खास कंपनियों का ब्योरा यहां दिया जा रहा है.

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