अच्छे बाग को तैयार करने में पौधशाला का बहुत ही महत्त्व है. रोपने के लिए फलपौधे पौधशाला से ही मिलते हैं. इसलिए जरूरी हो जाता है कि आदर्श पौधशाला से ही निरंतर सेहतमंद और प्रमाणित पौधे रोपने के लिए उपलब्ध होते रहें. यदि शुरू में ही रोगग्रस्त, कम उत्पादन देने वाले मातृ पौधे से बाग लगाया गया हो तो बाद की देखरेख सब बेकार होगी. आदर्श पौधशाला की स्थापना में इन बातों का ध्यान रखना चाहिए:
जगह का चयन :
बगीचे में जो जगह स्थित हो, जिस में सही मात्रा में रोशनी हो, सिंचाई की सुविधा और पानी के निकलने की समुचित व्यवस्था हो, का चयन किया जाना चाहिए. स्थान विशेष में आवागमन की सुविधा का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए.
मिट्टी :
पौधशाला के लिए जीवांशयुक्त दोमट मिट्टी, जिस का पीएच मान 6.5 से 7.5 हो, सही होती है. अधिक बलुई मिट्टी में पौधा खोदते समय गाची नहीं बन पाती और भारी चिकनी मिट्टी में हवा की कमी के चलते पौधों की बढ़वार अच्छी नहीं होती. उसरीली और कंकरीली मिट्टी का चयन भी पौधशाला के लिए नहीं करना चाहिए.
पर्वतीय इलाकों में थोड़ी गहराई पर पत्थर होने या जमीन में ज्यादा ढाल होने पर जमीन का चयन पौधशाला के लिए नहीं करना चाहिए.
पौधशाला की स्थापना से पहले स्थान विशेष के सभी पेड़ों और झाडि़यों को साफ कर देना चाहिए. जमीन की अच्छी तरह खुदाई कर के सभी जड़ें निकाल दें. पूरे पौधशाला क्षेत्र की गुड़ाई कर के 15-20 दिनों तक गरमी में खुला छोड़ दें, ताकि सभी कीड़ेमकोड़े खत्म हो जाएं. जमीन को ज्यादा दिनों तक खाली न छोड़ें.
जमीन करें तैयार :
रोगरहित व सेहतमंद पौध तैयार करने के लिए क्यारियों की मिट्टी और मिट्टी के मिश्रण को रोगाणुरहित करना बेहद जरूरी है. इस की निम्न विधियां हैं:
मिट्टी सौर्यन/आतपन द्वारा:
यह पौधशाला के निजर्मीकरण की सब से सस्ती विधि है. इस विधि में क्यारियां बीजाई से 6-7 हफ्ते पहले ही तैयार कर ली जाती हैं और इन में पानी पूरी तरह से भर कर नम कर देते हैं. इस के बाद 200-300 गेज मोटी व पारदर्शी प्लास्टिक की शीट से क्यारियों को चारों तरफ से ढक कर मिट्टी से दबा दिया जाता है. इस से क्यारियां वायुरोधित हो जाती हैं.
इस प्लास्टिक शीट को 6-7 हफ्ते बाद व नर्सरी की बीजाई से 2-3 दिन पहले हटा लिया जाता है. यह विधि उस दशा में पूरी तरह से प्रभावकारी है, जब दिन का तापमान 30-40 डिगरी सैल्शियम या इस से ज्यादा हो, मौसम शुष्क और सूरज चमकदार हो.
वाष्पन द्वारा :
इस विधि में बायलर की जरूरत होती है जिस से दबाव में भाप बनाई जाती है. एक हौर्सपावर का बायलर 5 से 6 घंटे के अंदर 50 सैंटीमीटर की गहराई तक 200 वर्गफुट में भाप बना देता है. यह विधि ज्यादा लागत के कारण केवल व्यावसायिक नर्सरी उत्पादकों के लिए उपयोगी है.
उष्मा प्रज्वलन द्वारा :
इस विधि में गन्ने की सूखी पुआल या पत्ती को नर्सरी की जगह पर रख कर जला देते हैं. इस से जो गरमी पैदा होती है, उस से नर्सरी की जगह का निजर्मीकरण तय हो जाता है.
रसायन विधि द्वारा :
नर्सरी की जमीन को उपचारित करने के लिए विभिन्न रसायनों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जो इस तरह से है:
फार्मल्डीहाइड द्वारा :
इस विधि में नर्सरी की जमीन का निजर्मीकरण करने के लिए व्यावसायिक फार्मल्डीहाइड 40 फीसदी का इस्तेमाल किया जाता है. नर्सरी के 1 वर्गमीटर क्षेत्र में 250 मिलीलिटर से 300 मिलीलिटर फार्मल्डीहाइड को 10 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव किया जाता है. इस के बाद नर्सरी को काली पौलीथिन से ढक कर चारों तरफ गीली मिट्टी का लेप कर जमीन को वायुरोधित कर देते हैं.
उपचार करने के 6 से 8 दिन बाद और बीजाई के 3 दिन पहले पौलीथिन को नर्सरी से हटा दिया जाता है. नर्सरी की फिर हलकी गुड़ाई कर देते हैं, जिस से नर्सरी फार्मेलीन गैस से मुक्त हो जाए और उस के बाद नर्सरी में बीजाई करनी चाहिए.
कवकनाशी द्वारा :
यदि किसी कारणवश जमीन का निजर्मीकरण संभव न हो तो ऐसी स्थिति में जमीन को किसी कवकनाशी जैसे केप्टान, थीरम का 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में मिला कर घोल बना लें और बीजाई से 2 दिन पहले जमीन को इस से उपचारित करें. कवकनाशी जमीन में 20-25 सैंटीमीटर तक पहुंच जाना चाहिए. इस के लिए जमीन को नम बनाए रखना जरूरी है.
पानी का इंतजाम :
पौधशाला में सिंचाई के लिए पानी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए. पानी प्रयोगशाला से पानी का परीक्षण कराना जरूरी है. सिंचाई वाला पानी खारा नहीं होना चाहिए. बरसात का पानी मृदु होता है. इस पानी को इकट्ठा कर सिंचाई के लिए प्रयोग काफी अच्छा होता है.
पौधशाला में सभी जगह पानी पहुंचे, एलुमीनियम या प्लास्टिक के पाइप लगा कर पानी पहुंचाने की व्यवस्था करें. साथ ही, यह भी ध्यान रखें कि किसी एक जगह पर पानी इकट्ठा न हो.
पौधशाला की स्थापना के पहले जगह की उपलब्धता, प्रवर्धित पौधों की तादाद व अन्य सुविधा के मुताबिक एक रूपरेखा बना लेनी चाहिए.
पौधशाला में नीचे दिए गए कामों के लिए जगह रखें:
* बीज बोने की क्यारी.
* मातृ पौधे लगाने की जगह.
* गमला प्रक्षेत्र.
* क्यारी चल के लिए खाली जगह.
* कायिक विधियों से प्रवर्धित पौधों को रखने का स्थान.
* विशेष कायिक विधियों द्वारा प्रवर्धन के लिए प्रक्षेत्र.
* पैकिंग प्रक्षेत्र.
* कार्यालय, कार्यशाला और भंडार.
* रास्ते, सड़क, कुआं और खाद केगड्ढे होने चाहिए.
* नामपत्र और उन का रेखांकन भी उपलब्ध रहना चाहिए. नामपत्र पर किस्म का नाम, पौधे की उम्र, हर साल फलोत्पादन की मात्रा, फलों के गुण, कीट व रोगों का ब्योरा वगैरह का उल्लेख रखना चाहिए.
हरितगृह/पौधघर (ग्रीनहाउस) :सुविधानुसार विभिन्न आकार के पौधघर बनाए जाते?हैं. सब से साधारण पौधघर में कंकरीट और सीमेंट की चारदीवारी पर लोहे के खंभों द्वारा संरचना बना कर तार की जाली से चारों तरफ घरनुमा जाल बिछा दिया जाता है.
पौधघर के चारों ओर आरोही लता के पौधे इस तरह चढ़ा दिए जाते?हैं कि पूरी संरचना पर अच्छी तरह फैल जाएं और अंदर छाया हो जाए. सुविधानुसार पौधघर के अंदर नलों द्वारा सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था कर दी जाती है. कभीकभी पौधघर के अंदर नमी बढ़ाने के लिए कुहांसानुमा (धुंध) सिंचाई की व्यवस्था भी कर दी जाती है. बड़ेबड़े पौधघरों में पौध और सामान ले जाने के लिए टन्नली की व्यवस्था रहती है. छोटे आकार के पौधघर लकड़ी और तार की जाली द्वारा बनाए जा सकते हैं, पर इन की उपयोगिता कुछ ही सालों तक रहती है.
पौधघर का इस्तेमाल शाकीय पौधों से कलम द्वारा प्रवर्धन, नए गुटी द्वारा प्रवर्धित और नए आयात किए गए पौधों की स्थापना और परिस्थिति अनुकूलन के लिए किया जाता है.
ऐसे बनाएं प्लास्टिकघर :
छोटी पौधशालाओं में आजकल प्लास्टिकघर का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है, अपेक्षाकृत मोटी पौलीथिन का इस्तेमाल करने पर संरचनाओं का इस्तेमाल 3-4 सालों तक किया जा सकता?है.
बाजार में आजकल विभिन्न प्रकार के पदार्थ जैसे पौलीथिन फिल्म वगैरह मौजूद?हैं, जिन का इस्तेमाल विभिन्न आकार की संरचना बनाने में किया जाता?है. लोहे के खंभों या सुविधानुसार बनाए गए बांस की संरचना के?ऊपर सही मोटाई की पौलीथिन फैला दी जाती?है. ऐसी संरचनाओं में दिन में तापमान बढ़ने की आशंका रहती है इसलिए दोनों किनारों से इन को थोड़ा खोल दिया जाता है.
ऐसी संरचनाओं में दिन में आंशिक छायादार जगह भी बनाई जाती है. जरूरत के मुताबिक दिन में पानी का छिड़काव कर के नमी और तापमान को नियंत्रित रखा जाता?है.
कुहासाघर (मिस्ट हाउस) :
कुहासा विधि बारबार पानी छिड़काव करने का संशोधित रूप है. इस में पत्तियों के पास कुहासे के रूप में हलके पानी का छिड़काव होता रहता?है. इस के फलस्वरूप पत्तियों में वाष्पोत्सर्जन और श्वसन की गति धीमी हो जाती?है. नतीजतन, पौधों को छाया में रखने की जरूरत नहीं होती. दिन में सही मात्रा में रोशनी मौजूद होने के चलते प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया चलती रहती?है, जिस के कारण कार्बोहाइडे्रट और दूसरे विशिष्ट पदार्थों का निर्माण होता रहता है, जो जड़ निकलने में सहायक होता?है. कुहासे की व्यवस्था कांच या पौलीथिन द्वारा बनाई गई संरचनाओं के अंदर की जा सकती है. आजकल कुहासे के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरण इस्तेमाल किए जा रहे हैं.
हमारे किसानों और बागबानी के काम में लगे उद्यमियों को पौधशाला से सेहतमंद पौधे हासिल हो सकते हैं. बताई गई विधि से उत्पादन कर पेड़ का निर्माण होगा और उस के द्वारा मिलने वाले फलों से अच्छी आमदनी होगी. गुणवत्ता वाले उत्पादन से हम फलों को दूसरे देशों में भेज कर अपनी और देश में विदेशी पैसा बढ़ाने में मदद कर सकते हैं.