पंजाब में गायभैंसों के अलावा भेड़बकरियों, सूअरों, ऊंटों, घोड़ों, मुरगी और टर्की पालने का काम भी किया जाताहै. इसी तरह मुरगीपालन, ब्रायलरपालन और अंडों का उत्पादन का काम भी बड़े पैमाने पर किया जाता है.
पशुपालन विभाग द्वारा राज्य के पशुओं के लिए तकरीबन 1400 पशु अस्पताल और 1500 पशु डिस्पैंसरियां मौजूद हैं. इस के अलावा वैटनरी पौलीक्लिनिक जिला स्तर पर हैं. भेड़ों, बकरियों, सूअरों, खरगोश, मुरगी, टर्की वगैरह पालने के लिए भी फार्म चल रहे हैं.
इन फार्मों में किसानों को अच्छी नस्ल के बच्चे कम कीमतों पर दिए जाते हैं और पशुओं में होने वाली खास बीमारी पहचान प्रयोगशाला (आरडीडीएल) जालंधर में चल रही है और यहां अलगअलग बीमारियों की पहचान और खोज की जाती है.
पशुपालन विभाग और पंजाब पशुधन विकास बोर्ड द्वारा अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं, जो इस तरह हैं:
नस्ल सुधार संबंधी योजनाएं :
पशुओं का दूध बढ़ाने के लिए यहां पशु नस्ल सुधार की दिशा में खास काम हो रहा है. पशु में नस्ल सुधार होने से दूध की पैदावार भी काफी बढ़ी है और किसानों को फायदा हुआ है.
कृत्रिम गर्भाधान (एआई) :
पशुपालन विभाग ने देशी गायों की नस्ल सुधारने के लिए खास प्रयास किए हैं. क्रौस ब्रीडिंग और नस्ल सुधार प्रोग्राम के तहत एचएफ जर्सी और साहीवाल जैसी गायों को उन्नत नस्लों के सांड़ों के वीर्य द्वारा गाभिन किया जाता है. इस के लिए किसानों को केवल 50 रुपए प्रति स्ट्रा खर्च करना पड़ता है.
विदेशी सीमन (वीर्य) :
पशुओं की नस्ल को और बेहतर बनाने के लिए विदेशी सीमन अमेरिका और कनाडा से मंगाया जाता है. इस में भी भारी सब्सिडी दी जाती है.
केवल बछिया वाला सीमन :
इस को ‘सैक्स्ड सीमन’ कहा जाता है और इस को विशेष विधियों से तैयार किया जाता है. इस में केवल बछिया पैदा करने वाले शुक्राणु होते हैं. इस स्कीम पर भारी सब्सिडी दी जाती है.
भ्रूण तबादला विधि :
इस के अंतर्गत बहुत उम्दा नस्ल के तैयार भ्रूण विदेशों से मंगवा कर अच्छी क्वालिटी के सांड़ पैदा करने की कोशिश की जा रही है, ताकि आने वाले समय में उच्च नस्ल के सांड़ों के टीके यहीं पर तैयार किए जा सकें. इन के अलावा गांवों की पंचायतों के लिए डेढ़ से 2 साल के मेहरू कटडे़ भी किसानों के लिए भारी सब्सिडी पर दिए जाते हैं.
बीमारियों से बचाव के टीके :
विभाग की तरफ से पशुओं को आम बीमारियों के अलावा छूत की बीमारियों से बचाव के लिए टीके समयसमय पर लगाए जाते हैं, जो इस तरह हैं:
मुंहपका और खुरपका के टीके :
ये टीके विभाग की तरफ से साल में 2 बार मुफ्त लगाए जाते हैं यानी इस की कोई भी कीमत पशुपालक से नहीं ली जाती.
गलघोंटू के टीके :
बरसात में होने वाली यह एक भयानक बीमारी है और इस से बचाव के लिए ये टीके नाममात्र की कीमत पर लगाए जाते हैं. इन के अलावा पशुओं में जांघ में सूजन और ब्रुसीलोसिस के टीके भी लगाए जाते हैं.
भेड़बकरियों के लिए इंटैरोटोकसीमिया बीमारी, मुरगियों के लिए रानीखेत, सूअर के लिए स्वाइन फीवर और कुत्तों के लिए हलकने से बचने के टीके सब्सिडी पर दिए जाते हैं.
पशुओं की प्रजनन संबंधी और दूसरी बीमारियों से बचाव और इलाज के लिए समयसमय पर विशेष पशु भलाई कैंप लगाए जाते हैं और इन कैंपों पर दवा और सलाह मुफ्त दी जाती है.
विभाग ओर से पशुपालन विभाग में सब्सिडी की योजनाएं निम्न हैं:
हरे चारे में योगदान :
दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए हरे चारे के योगदान को देखते हुए रबी और बरसात के हरे चारे के उन्नत बीज किसानों को दिए जाते हैं. किसानों को हरे चारे से साइलेज बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है और साइलोपिट बनाने के लिए अच्छीखासी सब्सिडी दी जाती है.
चारा काटने के लिए किसानों को चारा काटने की मशीन (पावर टोके) और हाथ टोके सब्सिडी पर दिए जाते हैं.
मिलती है ट्रेनिंग :
मुरगीपालन, भेड़पालन बकरीपालन, सूअरपालन और टर्कीपालन के लिए ट्रेनिंग देने का इंतजाम विभाग द्वारा किया जाता है. बैकयार्ड पौल्ट्री ट्रेनिंग के लिए चूजे और टर्की पालने के लिए बर्ड्स किसानों को दिए जाते हैं.
विभाग की तरफ से नाबार्ड की सहायता से पौल्ट्री कैपीटल वैंचर फंड स्कीम द्वारा मुरगी फार्म खोलने के लिए सब्सिडी और बाकी राशि बैंक से ऋण के रूप में दिलाई जाती है.
बैकयार्ड पौल्ट्री :
घर के अंदर सौ मुरगियों तक पालने को ‘बैकयार्ड मुरगीपालन’ कहा जाता है. किसानों को आरआईआर नस्ल के चूजे घरेलू मुरगीपालन के लिए सब्सिडी पर बेचे जाते हैं. यह चूजे बीमारीरहित होते हैं और इन के रखरखाव पर खर्चा भी कम आता है.
ब्रायलर फार्म :
चाबरो नस्ल के चूजे ब्रायलर फार्म के लिए किसानों को सब्सिडी पर दिए जाते हैं. ये काफी तेजी से बढ़ते हैं और इन में बीमारियां भी कम होती हैं.
पालें टर्की :
टर्की पालने में भी अनेक लोगों का अच्छा रुझान है. 6 हफ्ते के टर्की के चूजे 5 से 10 की यूनिटों में किसानों को सब्सिडी पर दिए जाते हैं.
बछड़ा खरीद की स्कीमें:
विभाग ओर से ज्यादा दूध देने वाली गाय और भैंसों के 6 महीने के ऊपर के बछड़े और कटडे़ खरीदे जाते हैं. ये बछड़े और कटड़े बेरोजगार नौजवानों को पालने के लिए सब्सिडी पर दिए जाते हैं.
इस से युवाओं को रोजगार तो मिलता ही है, वहीं दूध की पैदावार में बढ़ोतरी होती है.
सूअरपालन :
इस निजी उद्योग के लिए लोगों को उत्साहित करने की सूअरपालन की ट्रेनिंग दी जाती है. कम कीमत पर उन्नत नस्लों के सूअर के बच्चे भी किसानों को सब्सिडी पर दिए जाते हैं.
आरकेवीवाई स्कीम के तहत सूअर फार्म खोलने के लिए सब्सिडी और बैंकों की तरफ से कर्ज दिलाया जाता है. नस्ल को बेहतर बनाने के लिए वीर्य बाहर से मंगाया जाता है.
भेड़बकरीपालन :
विभाग की ओर से भेड़बकरीपालकों को उत्तम नस्ल के नर दिए जाते हैं, ताकि अच्छी नस्ल के बच्चे पैदा हो सकें.
आरकेवीवाई स्कीम के तहत बकरीपालन और भेड़पालन के लिए सब्सिडी और बैंक की तरफ से कर्ज भी दिलाया जाता है.
पशुधन मेलों का आयोजन :
लोगों में अच्छी नस्ल के बढि़या जानवर पालने के शौक को पैदा करने के लिए समयसमय पर जिला स्तर और राज्य स्तर पर पशु मेलों का आयोजन किया जाता है.
इन मेलों में जीतने वाले पशुपालकों को ट्रौफी, सर्टिफिकेट और नकद पुरस्कार दिए जाते हैं. जिलों के मुकाबले में जीतने वाले पशुपालकों को राज्य स्तर और राष्ट्रीय मुकाबले के लिए ले जाया जाता है. राष्ट्रीय पशु धन चैपिंयनशिप के दौरान बाहर वाले राज्यों से पशु भी हिस्सा लेते हैं.