मशरूम का बीज यानी स्पान फफूंद का एक जाल होता है, जो अपने आधार यानी भूसे वगैरह पर उगता है और मशरूम पैदा करने के लिए तैयार किया जाता है. बोलचाल की भाषा में यह एक ऐसा माध्यम है जो कि मशरूम कवक जाल से घिरा होता है और मशरूम उत्पादन के लिए बीज का काम करता है.

वैसे तो मशरूम की पौध नहीं होती है, फिर भी इस की फसल तैयार करने या कह सकते हैं कि बीज तैयार करने की कई तकनीकें हैं यानी स्पान उत्पादन कई तरह से किया जा सकता है.

एक बीजाणु तकनीक

एक बीजाणु से बीज तैयार करने के लिए ये काम किए जाते हैं:

अच्छे बंद मशरूम का चुनाव करना, साफ रुई से धूल हटाना, 70 फीसदी अल्कोहल से इसे साफ करना और मशरूम के तने के निचले हिस्से को तेज धारदार चाकू से काटना.

उपचारित पेट्रीप्लेट में तार की मदद से तैयार किए गए स्टैंड पर मशरूम खड़ी अवस्था में रख देते हैं. इसे एक गोल मुंह वाले बीकर से ढक दिया जाता है.

इस मशरूम वाली पेट्रीप्लेट को 30 मिनट तक सामान्य तापमान पर रखने के बाद, लेमिनारफलो चैंबर के अंदर रख कर पेट्रीप्लेट से मशरूम फलकायन (स्टैंड सहित) व बीकर को हटाया जाता है. पेट्रीप्लेट को दोबारा दूसरी पेट्रीप्लेट से ढक दिया जाता है.

इस से इकट्ठा बीजाणुओं की संख्या को धीरेधीरे कम किया जाता है जब तक बीजाणुओं की गिनती 10 से 20 फीसदी मिलीलीटर तक नहीं पहुंच जाती है. इस के बाद इसे पिघले हुए सादे माध्यम के साथ पेट्रीप्लेट में उड़ेला जाता है.

पेट्रीप्लेटों को 3-4 दिनों तक बीओडी इनक्यूबेटर में तकरीबन 32 डिगरी सैल्सियस तापमान पर गरम किया जाता है. एकल बीजाणु का चयन बीजाणुओं की बढ़वार को सूक्ष्मदर्शी द्वारा देख कर किया जाता है.

एकल बीजाणु संवर्धन का चयन कर के इसे माल्ट एक्सट्रेक्ट यानी एमईए माध्यम पर फैलाया जाता है और 7 से 10 दिनों तक बीओडी इनक्यूबेटर में गरम किया जाता है.

बहुबीजाणु तकनीक

इस तकनीक में स्पोर प्रिंट से स्पोर उठाने के लिए निवेशन छड़ का छल्ला इस्तेमाल किया जाता है.

छल्ला, जिस में हजारों की तादाद में बीजाणु होते हैं, को पेट्रीप्लेट, जिस में माल्ट एक्सट्रेक्ट या कोई दूसरा कवक माध्यम होता है, के ऊपरी धरातल पर स्पर्श करा दिया जाता है. इन पेट्रीप्लेटों को 4-5 दिनों के लिए बीओडी इनक्यूबेटर में 32 डिगरी सैल्सियस तापमान पर गरम किया जाता है.

फफूंद बढ़ाने की तकनीक

फफूंद उगाने वाली जगह और हाथों को कीटाणुनाशक से और बंद मशरूम को 70 फीसदी एल्कोहल से साफ करना चाहिए.

उपचारित की हुई अंडाकार मशरूम को तेजधार और उपचारित चाकू से 2 बराबर भागों में काट दिया जाता है.

इन कटे टुकड़ों के उस स्थान से, जहां तना व छत्रक एकदूसरे से जुड़े होते हैं, ऊतक के छोटेछोटे टुकड़े निकालते हैं और इन टुकड़ों को माल्ट एक्सट्रेक्ट अगर की प्लेट पर रखा जाता है.

इन प्लेटों को 4-5 दिनों तक 32 डिगरी सेल्सियस तापमान पर बीओडी इनक्यूबेटर या कमरे में सामान्य तापमान पर गरम किया जाता है.

कवक जाल फैले इस माध्यम से छोटेछोटे टुकड़े काट कर इन्हें दूसरे माल्ट एस्सट्रेक्ट अगर पर रख दिया जाता है. इस के बाद इन्हें इनक्यूबेटर में 32 डिगरी सेल्सियस तापमान पर 4-5 दिनों के लिए गरम किया जाता है.

इन तकनीकों को सीधे स्पान माध्यम में इस्तेमाल किया जाता है.

मशरूम (Mushroom)माध्यम तैयार करना

बीज तैयार करने के आधार में बहुत से ऐसे माध्यम हैं, जिन पर मशरूम का बीज बनाया जाता है. ऐसे माध्यमों को तैयार करने की विधियां इस तरह हैं:

पीडीए माध्यम : इसे आलू ग्लूकोज अगर कहते हैं. इस के लिए  200 ग्राम आलुओं को धोने, छीलने व काटने के बाद 1000 मिलीलीटर पानी में खाने लायक नरम होने तक उबाला जाता है.

इसे साफ कपड़े से छान लिया जाता है और इस छने पानी को एक सिलेंडर में इकट्ठा किया जाता है. इस में ताजा उबाला पानी मिला कर 1000 मिलीलीटर तक बना लिया जाता है.

बाद में इस में 20 ग्राम शर्करा और 20 ग्राम अगर मिलाया जाता है और अगर के पूरी तरह से घुल जाने तक उबाला जाता है.

इस माध्यम को 10 मिलीलीटर क्षमता वाली परखनली या ढाई सौ मिलीलीटर क्षमता के फ्लास्क में रख दिया जाता है और पानी न सोखने वाली रुई से उन के मुंह को बंद कर दिया जाता है.

इस के बाद इन्हें 121 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है.

गरम टैस्ट ट्यूब को टेढ़ा रखा जाता है और इन्हें अगले 24 घंटों तक ठंडा होने के लिए रखा जाता है.

माल्ट एक्सटे्रेक्ट अगर माध्यम : जौ का अर्क 35 ग्राम, अगर 20 ग्राम, पेप्टोन 5 ग्राम होना चाहिए.

इन चीजों को 1000 मिलीलीटर गरम पानी में मिलाना चाहिए. अब इसे लगातार एक समान आंच पर रख कर अगर के पूरी तरह घुलने तक हिलाएं.

इस माध्यम को परखनली या फ्लास्कों में डाला जाता है और पानी नहीं सोखने वाली रुई से उन के मुंह को बंद कर दिया जाता है.

अब इन्हें 121 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है.

गरम परखनलियों को तिरछा रखा जाता है या माध्यम को उपचारित पेट्रीप्लेटों में डाल दिया जाता है. अब इन्हें कमरे में सामान्य तापमान पर ठंडा किया जाता है.

स्पान माध्यम

बहुत से पदार्थ अकेले या सभी को मिला कर स्पान माध्यम तैयार किया जाता है. धान का पुआल, ज्वार, गेहूं व राई के दाने, कपास, इस्तेमाल की हुई चाय की पत्तियां वगैरह इस के लिए इस्तेमाल की जाती हैं.

अनाज स्पान : इस में गेहूं, ज्वार, राई का इस्तेमाल किया जाता है. 100 किलोग्राम दानों को सब से पहले 150 लीटर पानी में 20-30 मिनट तब उबाला जाता है. इन उबले हुए दानों को छलनी पर फैला कर 12 से 16 घंटों तक छाया में सुखाया जाता है.

सूखे हुए दानों में 2 किलोग्राम चाक पाउडर व 2 किलोग्राम जिप्सम को अच्छी तरह मिला लें. दानों को ग्लूकोज की बोतलों में दोतिहाई हिस्से तक या फिर 100 गेज मोटे पौलीप्रोपेलीन के लिफाफों में भर दिया जाता है.

लिफाफों में भी दाने दोतिहाई भाग तक ही भरने चाहिए. अब इन के मुंह को पानी न सोखने वाली रुई के ढक्कन से बंद कर दिया जाता है. ढक्कन न ज्यादा ढीला और न ही ज्यादा कसा हुआ होना चाहिए.

स्पान माध्यम से भरी हुई ग्लूकोज की बोतलों या पौलीप्रोपेलीन के लिफाफों को 126 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है. अब इन्हें लेमिनार फ्लो में ताजा हवा में ठंडा होने के लिए रख दिया जाता है.

कवक जाल संवर्धन को निवेशन छड़ की सहायता से इन बोतलों में डाल दिया जाता है. बोतलों को 2 हफ्ते के लिए गरम किया जाता है. अब स्पान इस्तेमाल के लिए तैयार है.

पुआल स्पान : सब से पहले धान के पुआल को 2-4 घंटे तक पानी में भिगोया जाता है, फिर इसे साफ किया जाता है और ढाई से 5 सेंटीमीटर तक लंबे टुकड़ों में काटा जाता है.

इस में चाक पाउडर 2 फीसदी व चावल का चोकर 2 फीसदी की दर से मिलाया जाता है और इसे चौड़े मुंह वाली ग्लूकोज की बोतल या पौलीप्रोपेलीन के 100 गेज मोटाई वाले लिफाफों में भर दिया जाता है. बोतलों व लिफाफों के मुंह को रुई के ढक्कन से बंद कर दिया जाता है.

स्पान माध्यम से भरी बोतल या लिफाफों को 126 डिगरी सेल्सियस तापमान पर उपचारित किया जाता है या 22 पीएसआई दबाव पर 2 घंटे के लिए रखा जाता है.

स्पान माध्यम को ठंडा करने के बाद लेमिनार फ्लो चैंबर में रख कर निवेशन छड़ की सहायता से कवक जाल संवर्धन इन में डाला जाता है.

बोतलों या लिफाफों को 2 हफ्ते के लिए गरम करते हैं.

चायपत्ती का स्पान : इस्तेमाल की हुई चाय की पत्ती को इकट्ठा कर के धोया जाता है, ताकि इस में कोई मलवा वगैरह न रहे. फिर निथारा जाता है. इस में 2 फीसदी की दर से चाक पाउडर मिला दें.

इस के बाद सामग्री को बोतलों या पौलीप्रोपेलीन के लिफाफों में भरा जाता है. बाकी के काम अनाज स्पान व पुआल स्पान बनाने की तरह ही किए जाते हैं.

इस तरह कपास के कचरे से स्पान माध्यम तैयार किया जाता है.

खादभूसी स्पान : घोड़े की लीद व कमल के बीज का छिलका समान मात्रा में मिलाए जाते हैं. इस मिश्रण को पानी में भिगोया जाता है. खाद की ढेरी 1 मीटर ऊंचाई तक पिरामिड के आकार में बनाई जाती है. फिर इसे 4-5 दिनों के लिए छोड़ दिया जाता है. ढेरी को तोड़ा जाता है और जरूरत पड़ने पर पानी मिला कर फिर से ढेर बना दें.

मिश्रण को ग्लूकोज की बोतलों या एल्यूमिनियम के हवाबंद डब्बों में भर कर उपचारित किया जाता है.

मिश्रण ठंडा होने के बाद ही इस में मशरूम के कवक जाल को डाला जाता है और खाद को 2 हफ्ते के लिए गरम करते हैं या जब तक कि स्पान तैयार न हो जाए.

मशरूम (Mushroom)

बीज तैयार करते समय बरतें कुछ सावधानियां

*             माध्यम जैसे धान की पुआल या बेकार कपास वगैरह को इतना ज्यादा भी न भिगोएं कि पानी बोतलों या बैगों के तल पर इकट्ठा हो जाए. ऐसे में कवक जाल सही तरह से नहीं फैलेगा.

*             बोतलों या बैगों को इतना कस कर बंद नहीं करना चाहिए कि हवा बाहर न आ सके और भाप अच्छी तरह से अंदर न घुसे.

*             केवल साफ रुई से बने ढक्कनों, डाटों का ही इस्तेमाल करना चाहिए.

*             ढक्कन या डाट के नीचे स्तर व माध्यम के बीच कम से कम 3-4 सेंटीमीटर खाली जगह होनी चाहिए.

*             मेज व सामग्री को उपचारित करना चाहिए.

*             हाथों को साबुन से साफ करना चाहिए.

*             केवल शुद्ध स्पान का ही इस्तेमाल करना चाहिए.

*             कवक डालने के बाद बोतलों व बैगों के मुंह को एल्यूमिनियम फाइल से ढकना चाहिए.

स्पान का स्टोरेज

पुआल मशरूम की बढ़वार के लिए ज्यादातर तापमान 30-35 डिगरी सेल्सियस होना चाहिए. अगर तापमान 45 डिगरी सेल्सियस से बढ़ाया जाए या 15 डिगरी सेल्सियस तक घटाया जाए तो कवक जाल में इजाफा नहीं होता है. इस की ज्यादातर प्रजातियां 15 डिगरी तापमान पर जीवित रह सकती हैं.

स्पान माध्यम में वाल्वेरिएला वाल्वेसिया का कवक जाल पूरी तरह फैलने के बाद यह इस्तेमाल के लिए तैयार होता है. अगर इस का इस्तेमाल नहीं करना हो तो इसे इनक्यूबेटर से निकाल लिया जाता है और कम तापमान पर भंडारण किया जाता है ताकि बीज मर न पाए.

15-20 डिगरी सेल्सियस तापमान पर कवक जाल की बढ़वार रुक जाती है और कवक जाल को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता. इसे लंबे समय तक भंडारण किया जा सकता है.

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