वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.

हमारे देश में कचरे की लैंडफिलिंग कचरा निष्पादन का प्रमुख तरीका है, जो बिलकुल अवैज्ञानिक है. देश में हजारों लैंडफिल जगहें हैं, जहां हजारों टन ठोस कचरा जमा है, जिस में दिल्ली की गाजीपुर, ओखला, भलस्वा, मुंबई की मुलुंड, देवनार, नागपुर की भांडेवाड़ी, अहमदाबाद की पिराना और बैंगलुरु की मंदूर लैंडफिल साइट्स ऐसी डंपिंग साइट्स हैं, जहां कचरे के बड़ेबड़े पहाड़ बन चुके हैं.

एक अनुमान के मुताबिक, देशभर में मौजूद कचरे के पहाड़ों के नीचे तकरीबन 15,000 एकड़ जमीन दबी हुई है, जिस पर तकरीबन 16 करोड़ टन कचरा जमा है. देश में बढ़ते कचरे के पहाड़ पानी, हवा एवं मिट्टी को दूषित कर पर्यावरण एवं सेहत के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं.

कचरे के पहाड़ों को खत्म करने के लिए सरकार ने ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के तहत 10 साल में सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार महज 15 फीसदी ही कचरे के पहाड़ों को साफ एवं 35 फीसदी कचरे को निष्पादित किया जा सका है.

अगर इस गति और इतने खर्च से कचरे के पहाड़ों के निष्पादन का काम होगा, तो शायद ये कचरे के पहाड़ कभी भी खत्म नहीं हो पाएंगे. अगर कचरे के पहाड़ खत्म हो भी जाते हैं, तो उन को खत्म करने में जो खर्चा आएगा, वह शायद कचरे के पहाड़ों से होने वाले नुकसान से भी ज्यादा होगा, इसलिए मौजूदा कचरे के पहाड़ों को साफ करने की व्यवस्था के साथसाथ कचरे के पहाड़ों पर खेती करने की कार्ययोजना बनाई जाए, क्योंकि देश में मौजूद ज्यादातर कचरे के पहाड़ों में 50 फीसदी से अधिक जैव कचरा है, इसलिए कचरे के पहाड़ों पर खेती संभव हो सकती है.

कचरा खेती

कचरा खेती तकनीक पर्यावरण हितैषी, आर्थिक रूप से सस्ती और सामाजिक रूप से स्वीकार्य तकनीकी है. इस तकनीक में कचरे के पहाड़ों पर खेती करते हैं, जिस में सजावटी पौधों, फूलों, औषधीय पौधों और हरी खाद की खेती के साथसाथ बड़े पेड़पौधों और ?ाडि़यों को भी उगाते हैं.

कचरा खेती में अनाज, दलहन एवं तिलहन की फसलें, फल एवं सब्जियों की खेती नहीं करते हैं, क्योंकि कचरे के पहाड़ों में जहरीला कचरा भी मौजूद होता है जैसे भारी धातुएं और जैव रासायनिक प्रक्रिया से बहुत से जहरीले कैमिकल पैदा होते हैं, जो उगाए गए पौधों में चिपक जाते हैं.

यदि इन पौधों के किसी भी भाग का इस्तेमाल पशुओं या इनसानों द्वारा किया जाता है, तो ये जहरीले तत्त्व पौधों के माध्यम से इनसानों एवं पशुओं के शरीर में जा कर गंभीर सेहत संबंधी समस्याएं पैदा कर सकते हैं.

कचरे के पहाड़ों पर खेती करने के लिए सब से पहले कचरे के पहाड़ों को सीढ़ीनुमा खेत में बदलते हैं, जिस में सीढ़ी का ढाल अंदर की ओर रखते हैं. इस से कचरे के पहाड़ से निकलने वाला जहरीला तरल पदार्थ बह कर पहाड़ के बाहर न जाए.

इस के बाद सीढ़ीनुमा कचरे के खेत में न सड़ने वाला कचरा जैसे पौलीथिन, प्लास्टिक और धातु के कचरे को तकरीबन 30 सैंटीमीटर गहराई की परत से छांट कर निकाल देते हैं और बचे कचरे को महीन कर लेते हैं. इस के बाद खेत की उपजाऊ मिट्टी में जरूरत के मुताबिक गोबर या केंचुए या कंपोस्ट खाद और उर्वरकों को मिला कर सीढ़ीनुमा कचरे के खेत में अच्छी तरह मिला देते हैं.

यदि नमी न हो, तो पानी का छिड़काव कर कचरे को नम कर देते हैं. इस के बाद सीढ़ीनुमा खेत में नर्सरी में तैयार पौधों का रोपण करते हैं.

ध्यान रहे कि कचरा खेती में बीजों को सीधे खेत में नहीं बोते, क्योंकि कचरे में बीजों का जमाव ठीक से नहीं हो पाता है, इसलिए पौधों को नर्सरी में तैयार कर रोपण करते हैं. लेकिन जिन पौधों या फसलों की नर्सरी तैयार करना कठिन होता है, ऐसी फसलों के बीजों की बोआई करते हैं, जैसे हरी खाद की फसलें ढैंचा, सनई आदि.

कचरे के सीढ़ीनुमा खेतों में पेड़पौधों को लगाने के लिए चिह्नित जगहों पर एक मीटर लंबाई, चौड़ाई और गहराई के गड्ढे खोद कर उन का कचरा बाहर निकाल देते हैं और फिर उन में मिट्टी और सड़ी गोबर की खाद के तैयार मिश्रण को भर कर पौधों को रोप देते हैं.

पौधों का रोपण बारिश के मौसम में करते हैं, जिस से पौधों को पानी देने की जरूरत न पड़े और पौधों की बढ़वार भी अच्छी हो सके. पौधों की अच्छी बढ़वार एवं विकास के लिए जरूरत के मुताबिक ड्रोन, स्प्रिंकलर या ड्रिप विधि से सिंचाई करते हैं. साथ ही, कीट, रोग एवं खरपतवार प्रबंधन का भी काम करते रहते हैं.

Farming on mountainsकचरा खेती के लाभ

* कचरे के पहाड़ों पर खेती करने से कचरे के दुर्गंध वाले पहाड़ों को बिना खत्म किए हरित क्षेत्र में बदला जा सकता है.

* गरमियों के दिनों में कचरे के पहाड़ों में आग लगने की समस्या का भी समाधान हो जाएगा.

* कचरे के पहाड़ों से निकलने वाली दुर्गंध फूलों की सुगंध में परिवर्तित हो कर आसपास के वातावरण को शुद्ध करेगी.

* कचरे के पहाड़ों से उड़ने वाली धूल पर भी नियंत्रण होगा.

* कचरे के पहाड़ों पर खेती करने से आसपास का वातावरण स्वच्छ रहेगा, तो पहाड़ों के आसपास की बस्तियों के लोगों में बीमारियों का खतरा भी कम होगा.

* कचरा खेती से कचरे के पहाड़ों के आसपास के लोगों को रोजगार और आय सृजन के अवसर भी उपलब्ध होंगे.

* लंबे समय तक कचरे के पहाड़ों पर खेती करते रहने पर कचरे के पहाड़ धीरेधीरे अपघटित हो कर समतल खेत में बदल जाएंगे, क्योंकि कचरे के पहाड़ों पर खेती करने से पेड़पौधों की जड़ों के माध्यम से वर्षा एवं सिंचाई का पानी पहाड़ के अंदर तक कचरे को गीला रखेगा, जिस से कचरे का अपघटन तेज होगा और पेड़पौधों की जड़ों में उपस्थित असंख्य सूक्ष्म जीव कचरे को सड़ाने में मददगार होंगे.

* पेड़पौधों की जड़ों से निकलने वाले विभिन्न प्रकार के अम्ल कचरे को गलाने एवं सड़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, इसलिए कचरे के पहाड़ धीरेधीरे विघटित एवं अपघटित हो कर जमींदोज हो जाएंगे.

मौजूद कचरे के पहाड़ों को खत्म करने के काम के साथसाथ स्थानीय स्तर पर ही कचरे के निष्पादन की कार्ययोजना पर काम  किया जाए, जिस से भविष्य में नए कचरे के पहाड़ वजूद में न आ सकें.

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