खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यत: खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है. इन सब के साथसाथ कुछ खरपतवार ऐसे भी होते हैं, जिन के पत्तों और जड़ों से मिट्टी में हानिकारक पदार्थ निकलते हैं. इस से पौधों की बढ़वार पर बुरा असर पड़ता है, जैसे गाजरघास (पार्थेनियम) एवं धतूरा आदि न केवल फार्म उत्पाद की गुणवत्ता को घटाते हैं, बल्कि इनसान और पशुओं की सेहत के प्रति भी नुकसानदायक हैं.

गेहूं की फसल भारत की खेती का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. इस के सफल उत्पादन के लिए खरपतवार नियंत्रण एक अनिवार्य प्रक्रिया है. खरपतवार न केवल फसल की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं, बल्कि फसल की वृद्धि और उपज को भी बाधित करते हैं.

गेहूं की भरपूर और स्वस्थ उपज लेने के लिए सही समय पर खरपतवार का नियंत्रण करना बहुत ही जरूरी होता है. अकसर खरपतवार कई हानिकारक कीड़े और रोगों का भी घर बन जाता है. इस के साथसाथ ये फसलों के नुकसानदायक कीटों व रोगों को भी आश्रय दे कर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं.

अगर सही समय पर खरपतवारों का नियंत्रण नहीं किया जाता है, तो फसल उत्पादन में 50 से 60 फीसदी तक की कमी हो सकती है और किसानों को माली नुकसान भी उठाना पड़ता है. पर इन का नियंत्रण भी एक कठिन समस्या है.

इन खरपतवारों को नियंत्रित करने से फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार हो सकता है. इन खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग किया जा सकता है, जैसे कि यांत्रिक विधियां, सस्य क्रियाएं, भूपरिष्करण क्रियाएं, कार्बनिक खादों का प्रयोग, जैव नियंत्रण उपाय और रासायनिक विधियां.

गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए विभिन्न तरीकों की विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है :

weeds in wheat

यांत्रिक विधियां

* हाथों से खरपतवार निकालना : यह सब से पुरानी और प्रभावी विधि है, लेकिन इस में समय और मेहनत अधिक लगती है.

* खुरपी, हंसिया, कुदाल आदि से खरपतवार निकालना : इन उपकरणों का उपयोग कर के खरपतवार को निकाला जा सकता है.

* मशीन से खरपतवार निकालना : रोटरी वीडर, वीडर और हार्वेस्टर जैसी मशीनें खरपतवार निकालने में मदद करती हैं.

सस्य क्रियाएं

* फसलों का चुनाव : तेजी से वृद्धि करने वाली फसलें और जड़ें गहरी व फैलने वाली फसलें खरपतवारों को नियंत्रित करने में मदद करती हैं.

* फसल चक्र : विभिन्न फसलों को लगाने से खरपतवारों की वृद्धि रुक जाती है.

* फसल की सघनता : अधिक सघनता से खरपतवारों को वृद्धि करने का अवसर नहीं मिलता.

कार्बनिक खादों का प्रयोग

* कार्बनिक खाद सड़ने और गलने के बाद कार्बनिक अम्ल का निस्तारण करते हैं, जो खरपतवारों की वृद्धि को कम कर देता है.

* जैविक खादों का उपयोग कर के मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है और खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है.

जैव नियंत्रण के उपाय

* जैविक नियंत्रण एजेंट जैसे नेमाटोड, बैक्टीरिया और फंजाई खरपतवारों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं.

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रासायनिक विधियां

रासायनिक विधियों के जरीए खरपतवार नियंत्रण करना एक प्रभावी तरीका है, लेकिन इस के उपयोग से पहले कुछ सावधानियां बरतें.

शाकनाशी रसायन के प्रकार

संपर्क शाकनाशी : यह शाकनाशी रसायन पत्तियों पर लगाया जाता है और खरपतवार को मारता है. उदाहरण : ग्लाईफोसेट, 2,4-डी.

सिस्टैमिक शाकनाशी : यह शाकनाशी रसायन खरपतवार के पौधे में अवशोषित होता है और उस की वृद्धि को रोकता है. उदाहरण : डाइक्लोफेनाक, मैटोलाक्लोर.

पहले उगाया गया शाकनाशी : यह शाकनाशी रसायन मिट्टी में लगाया जाता है और खरपतवार की वृद्धि को रोकता है. उदाहरण : ट्राईफ्लुरेलिन.

बाद में उगाया गया शाकनाशी : यह शाकनाशी रसायन खरपतवार के उगने के बाद लगाया जाता है और उस की वृद्धि को रोकता है. उदाहरण : ग्लाइफोसेट, 2,4-डी.

शाकनाशी रसायन के उपयोग के तरीके

फसल के पहले : शाकनाशी रसायन को फसल के पहले लगाया जाता है, ताकि खरपतवार की वृद्धि को रोका जा सके.

फसल के साथ : शाकनाशी रसायन को फसल के साथ लगाया जाता है, ताकि खरपतवार की वृद्धि को रोका जा सके.

खरपतवार के ऊपर : शाकनाशी रसायन को खरपतवार के ऊपर लगाया जाता है, ताकि उस की वृद्धि को रोका जा सके.

शाकनाशी रसायन के फायदे

यह शाकनाशी रसायन खरपतवार की वृद्धि को रोकता है और फसल की उत्पादकता को बढ़ाता है.

फसल की सुरक्षा : शाकनाशी रसायन फसल को खरपतवार से बचाता है और उस की सुरक्षा करता है.

समय और मेहनत की बचत : शाकनाशी रसायन का उपयोग करने से समय और मेहनत की बचत होती है.

शाकनाशी रसायन के नुकसान

पर्यावरण पर प्रभाव : शाकनाशी रसायन पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डाल सकता है और जीवजंतुओं को नुकसान पहुंचा सकता है.

फसल को नुकसान : शाकनाशी रसायन फसल को नुकसान पहुंचा सकता है, अगर उस का उपयोग सही तरीके से नहीं किया जाए.

मिट्टी का प्रदूषण : शाकनाशी रसायन मिट्टी का प्रदूषण कर सकता है और उस की उर्वरता को कम कर सकता है.

इन विधियों को अपना कर गेहूं की फसल में खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है.

किसानों को इन विभिन्न उपायों को अपना कर अपनी फसल की गुणवत्ता और उत्पादकता को बनाए रखना चाहिए.

वर्तमान में उपलब्ध नई तकनीकें और उन्नत विधियां खरपतवार नियंत्रण को अधिक प्रभावी और स्थायी बनाने में मददगार साबित हो रही हैं, जो कृषि की चुनौतियों का सामना करने में मददगार हैं.

गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय

कंडाली : कंडाली एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-60 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं.

सरसों : सरसों एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-90 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल पीले रंग के होते हैं, जो अप्रैलमई माह में खिलते हैं.

खूबकला : खूबकला एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 20-50 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल पीले रंग के होते हैं, जो अप्रैलमई माह में खिलते हैं.

मटर के परिवार की खरपतवार

मटरी : मटरी एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-60 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल बैगनी रंग के होते हैं, जो अप्रैलमई माह में खिलते हैं.

फूली मटर : फूली मटर एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 20-40 सैंटीमीटर तक होती है.

काली मटर : पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल बैगनी रंग के होते हैं, जो अप्रैलमई माह में खिलते हैं. यह एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-60 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं. इन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल बैगनी रंग के होते हैं, जो अप्रैलमई माह में खिलते हैं.

गंदेरी परिवार की खरपतवार

गंदेरी : गंदेरी एक बहुवर्षीय खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-100 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल हरे रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं. इस की जड़ें गहरी होती हैं और मिट्टी में पानी को सोख लेती हैं.

बांस घास : बांस घास एक बहुवर्षीय खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 100-200 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल हरे रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं.

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खरपतवार की पहचान

खरपतवार की पहचान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि विभिन्न प्रकार के खरपतवारों की विशेषताएं और नियंत्रण की विधियां भिन्न होती हैं. गेहूं की फसल में सामान्य रूप से उगने वाले खरपतवार निम्नलिखित हैं :

मकोय : मकोय एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-100 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. मकोय गेहूं की फसल में तेजी से वृद्धि करता है और फसल की उत्पादकता को कम कर देता है.

हिरनखुरी : हिरनखुरी एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-100 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल पीले रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं.

ककमाची : ककमाची एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-100 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल सफेद रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं.

बथुआ : बथुआ एक वार्षिक खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-100 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल हरे रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं. बथुआ गेहूं की फसल में तेजी से वृद्धि करता है और फसल की उत्पादकता को कम कर देता है.

चौलाई : इस की पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल हरे रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं.

जंगली गाजर : जंगली गाजर एक द्विवर्षीय खरपतवार है, जिस की ऊंचाई 30-100 सैंटीमीटर तक होती है. पत्तियां आकार में लंबी और चौड़ी होती हैं, जिन के किनारे दांतेदार होते हैं. फूल सफेद रंग के होते हैं, जो जूनजुलाई माह में खिलते हैं.

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