जनवरी के महीने में अनेक इलाकों में कड़ाके की सर्दी होती है. ऐसे में खेतीकिसानी के काम करना थोड़ा मुश्किल भरे जरूर होते है, लेकिन खेती के लिए फायदेमंद रहते है. गेहूं फसल में अच्छे फुटाव के लिए अधिक ठंड का होना फायदेमंद है तो पाला पड़ना फसल को नुकसान देते है. ऐसे में अगर कहीं प्राकृतिक आपदा के चलते ओलावृष्टि हो जाए तो फसल को काफी नुकसान भी होता है. कुछ ऐसी जरूरी बातें हैं जिन को ध्यान में रख कर हम खेतीकिसानी के काम करे तो वह हमारे लिए फायदेमंद साबित होते है.
आइए डालते हैं एक नजर जनवरी के दौरान किए जाने वाले खेती के कामों पर :
* जनवरी में गेहूं के खेतों पर खास ध्यान देने की जरूरत होती है. इस दौरान करीब 3 हफ्ते के अंतराल पर गेहूं के खेतों की सिंचाई करते रहें.
* गेहूं के खेतों में अगर खरपतवार या अन्य फालतू पौधे पनपते नजर आएं, तो उन्हें फौरन उखाड़ दें. चौड़े पत्ते वाले खरपतवार ज्यादा हों, तो 2-4 डी सोडियम साल्ट दवा का इस्तेमाल करें. यह दवा काफी कारगर होती है.
* अगर गेहूं की बालियों में अनावृत कंडुआ रोग का असर नजर आए, तो उन पौधों को देखते ही उखाड़ कर नष्ट कर दें.
इस के अलावा अगर खेत में काली गेरुई रोग का प्रकोप दिखाई दे, तो मैंकोजेब दवा की ढाई किलोग्राम मात्रा को करीब 700 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
* यदि चने के खेतों में फलीछेदक कीड़े का का हमला दिखाई पड़े, तो फलियां बनना शुरू होते ही इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की 2 लीटर मात्रा को करीब 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
* यदि चने के खेतों में फलीछेदक कीड़े का हमला दिखाई पड़े, तो फलियां बनना शुरू होते ही इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की 2 लीटर मात्रा को करीब 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. छिड़काव के असर से फलियां बेहतरीन होंगी.
* मटर व मसूर के खेतों में उगे खरपतवारों को खरपतवारनाशी दवा का इस्तेमाल कर के नष्ट करें.
* चना, मटर व मसूर के खेतों में इस दौरान निराईगुड़ाई जरूर करें. इस से पौधों को खुराक ढंग से मिल सकेगी और खरपतवार भी नहीं पनपेंगे.
* चने और मटर के खेतों में फूल आने से पहले सिंचाई करें, मगर फूल बनने के दौरान सिंचाई न करें. फूल बनने के बाद फिर सिंचाई करें.
* मटर व चने की फसलों में अगर रतुआ बीमारी का प्रकोप नजर आए, तो रोकथाम के लिए जिंक मैंगनीज कार्बानेट दवा की ढाई किलोग्राम मात्रा करीब 700 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
* नए साल का यह पहला महीना ताजे गुड़ व गन्ने के लिए खास माना जाता है. इस दौरान गन्ने की पेड़ी फसल की कटाई का काम करें. कटाई का काम फसल की हालत व हालात के मुताबिक करें.
* कटाई के दौरान निकली गन्ने की पत्तियों को हरगिज नहीं जलाएं, क्योंकि फसल अवशेष जलाना न सिर्फ गुनाह है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी घातक है. गन्ने की सूखी पत्तियों को जमा कर के कंपोस्ट खाद बनाने में इस्तेमाल करें.
* गन्ने की सूखी पत्तियों को मवेशियों के बेड के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है, इन पत्तियों को अगली पेड़ी फसल में पलवार के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं, इस से खेत में काफी समय तक नमी बनी रहती है. ऐसा करने से खरपतवार भी कम निकलते हैं.
* जौर की फसल को बोए हुए अगर 4-5 हफ्ते हो रहे हों तो खेत की सिंचाई करें. सिंचाई के बाद हलकी निराईगुड़ाई भी करें ताकि खरपतवार न पनप सकें.
* अगर राई व सरसों की फसलों में फूल व फलियां निकल रही हों, तो खेत की सिंचाई करें. सिंचाई के बाद निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकालें.
* अगर सरसों में तनासड़न बीमारी का प्रकोप दिखाई दे, तो रोकथाम के लिए बिनोमाइल दवा की आधा किलोग्राम मात्रा या थाइरम की डेढ़ किलोग्राम मात्रा करीब 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
* अगर सरसों या राई की फसल पर बालदार सूंडी़ का हमला नजर आए, तो बचाव के लिए इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की 1.25 लीटर मात्रा करीब 700 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
* तोरिया के खेतों का मुआयना करें. अगर करीब 75 फीसदी फलियां गोल्डन रंग की हो चुकी हों, तो फसल की कटाई करें. कटाई के बाद फसल को अच्छी तरह सुखा कर मड़ाई करें.
* नए साल के पहले महीने यानी जनवरी में सोंधे व स्वादिष्ठ लगने वाले नए आलू का इंतजार सभी को होता है. आलू की अगेती फसल जनवरी में खुदाई लायक हो जाती है, लिहाजा यह काम निबटाएं. खुदाई के लिए आलू खोदने वाली मशीन का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. मशीन से आलू की खुदाई तेजी से होती है और आलू नष्ट भी नहीं होते.
* अगर आलू की मध्यम व पछेती फसलों पर झुलसा बीमारी के लक्षण नजर आएं, तो रोकथाम के लिए मैंकोजेब दवा का इस्तेमाल करें.
* प्याज की रोपाई का काम भी जनवरी में ही निबटा देना चाहिए. प्याज की रोपाई करने से पहले खेत में नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश जरूर डालें और रोपाई के बाद हलकी सिंचाई करें.
* जनवरी में तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी, करेला और भिंडी आदि की बोआई के लिए ढंग से जुताई कर के खेत तैयार करें. खेत में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खद भरपूर मात्रा में डालें.
* जनवरी के ठंडे महीने में पाले का खतरा बहुत ज्यादा रहता है, लिहाजा पाले से बचाव के लिए छोटे फलों वाले पौधों व सब्जियों की नर्सरियों को टाट या घासफूस के छप्परों से अच्छी तरह ढक दें.
* पाला गिरने वाली रात में बाग या खेत की सिंचाई करना न भूलें. इस से पाले का असर घट जाता है.
* जनवरी महीने के दौरान अकसर आंवले में फलीविगलन रोग लग जाता है. ऐसी हालत में बचाव के लिए ब्लाइटाक्स 58 दवा का इस्तेमाल करें.
* माल्टा, किन्नू, संतरा व नीबू आदि के पेड़ों में गमोसिस बीमारी से बचाव के लिए पेड़ों के रोगग्रस्त भागों को काट कर जला दें, पेड़ों के काटे गए हिस्सों पर रिटोमिल व अलसी के तेल का पेस्ट तैयार कर के लगाएं. यह पेस्ट तैयार करने के लिए 1 लीटर अलसी के तेल में 20 ग्राम रिडोमिल दवा अच्छी तरह मिलाएं.
* इस महीने आड़ू, नीबू, संतरा, किन्नू और माल्टा आदि पेड़ों की छंटाई का काम भी करें. इन पेड़ों में कृषि वैज्ञानिक से सलाह ले कर जरूरी खादें भी डालें.
* इसी तरह अंगूर की बेलों की काटछांट का काम भी महीने के अंत तक जरूर निबटा लें. इसी दौरान नई बेलें भी लगाई जा सकती हैं. अगर नई बेले लगाएं, तो लगाने के फौरन बाद सिंचाई जरूर करें.
* आमतौर पर आम के पेड़ों की देखभाल की याद आम के मौसम में ज्यादा आती है, मगर यह अच्छी बात नहीं है. इन पेड़ों की नियमित देखभाल करना जरूरी है. अमूमन दिसंबर में आम के पेड़ों के तनों पर अल्काथीन शीट लगाई जाती है. जनवरी में इस शीट की कायदे से सफाई करें, क्योंकि बगैर सफाई के शीट का पूरा फायदा नहीं मिलता.
* आम के पेड़ों में भुनगा व मित्र कीड़ों के बचाव के लिए मोनोक्रोटोफास 50 ईसी दवा की डेढ़ मिलीलीटर मात्रा 1 लीटर पानी में घोल कर पेड़ों में बौर आने के तुरंत बाद छिड़कें. अगर जरूरी लगे तो 2-3 हफ्ते बाद दोबारा छिड़काव करें.
* अपने महंगे मवेशियों यानी गायभैंसों वगैरह को जनवरी की कड़ाके की ठंड से बचाने के पूरे इंतजाम करें, क्योंकि थोड़ी सी लापरवाही से लाखें रुपए के मवेशी ठंड के शिकार हो सकते हैं.
* पशुओं को दिन के दौरान धूप में बांधें और रात के वक्त आग जला कर गरमी का बंदोबस्त करें. गौशाला के दरवाजे बंद रखें या टाट के मोटे परदे लगाएं. रोशनी का भी पूरा इंतजाम करें.
* जनवरी की सर्दी मुरगेमुरगियों के लिए भी खतरनाक साबित होती है, लिहाजा उन के बचाव का भी पूरा खयाल रखें. जब मुरगियां स्वस्थ होंगी तभी महंगे अंडों का उत्पादन होगा.
* जब घना कोहरा पड़ रहा हो, उस दौरान गौशाला की चौकसी बढ़ा दें, क्योंकि कोहरे का फायदा उठा कर चोरउचक्के अपना कारनामा दिखा देते हैं.
* अपने इलाके के पशुचिकित्सकों के मोबाइल नंबर डायरी में लिखने के साथसाथ अपने मोबाइल में भी दर्ज कर के रखें ताकि आड़े वक्त पर यानी पशुओं के बीमार होने पर उन से फौरन बात की जा सके.