जून की तपती धूप में खेतों में काम करना वैसे तो बड़ा भारी काम लगता है, पर किसान ऐसा सोच भी नहीं सकते हैं क्योंकि उन्हें तो गरमी की तपन को नजरअंदाज कर के खेतों में काम करते रहना पड़ता है. आइए डालते हैं एक नजर इन खास कामों पर:
* धान की नर्सरी डालने के लिए धान की उम्दा प्रजाति को ही चुनें. अच्छी किस्म का चुनाव करने से फायदा भी ज्यादा होगा. प्रजाति का चयन करने में कृषि वैज्ञानिक की भी मदद ले सकते हैं.
* अगर आप ने धान की नर्सरी पिछले महीने यानी मई में ही डाल रखी हो, तो उस के पौधे 3-4 हफ्ते के होते ही रोपाई का काम करें. धान के पौधों की रोपाई 15-20 सैंटीमीटर के अंतर पर सीधी लाइन में करें. रोपाई के दौरान खयाल रखें कि एक जगह पर 2 या 3 पौधों की रोपाई करना सही रहता है.
* गन्ने के खेतों को सूखने नहीं देना चाहिए. जरूरत के मुताबिक गन्ने के खेतों की सिंचाई करते रहें, क्योंकि अच्छी फसल के लिए खेतों में नमी बराबर बनी रहनी चाहिए.
* सिंचाई के अलावा गन्ने के खेतों की निराईगुड़ाई भी जरूरत के मुताबिक करते रहें, ताकि खेतों में खरपतवार न पनपने पाएं.
*अपने गन्ने के खेतों की बाकायदा चैकिंग करें और देखें कि उन में रोगों या कीटों का हमला तो नहीं हुआ है. अगर ऐसा नजर आए, तो कृषि विज्ञान केंद्र के माहिर वैज्ञानिकों से सलाह ले कर मुनासिब दवाओं का इस्तेमाल करें.
* जून के गरमागरम महीने में ही अरहर की भी बोआई की जाती है. अरहर की बोआई में इस बात का खयाल रखें कि उस के बीजों को बोने से पहले कार्बंडाजिम से उपचारित करना जरूरी है. उपचारित करने से बीज महफूज रहते हैं और सही तरीके से समय पर अंकुरित होते हैं.
* हर इलाका बाजरा की खेती के लिए सही नहीं होता. अगर आप का इलाका बाजरा की खेती के लिए मुनासिब हो तो मौसम की पहली बारिश होने पर उस की बोआई करें.
* बाजरा बोने के लिए 5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. 50 सैंटीमीटर का फासला रखते हुए बोआई सीधी लाइन में करें.
* अगर ज्वार की बोआई करने का इरादा हो तो जून के आखिरी हफ्ते में करें.
* मूंगफली की बोआई भी जून माह के दौरान ही की जाती है. मूंगफली की बोआई के लिए 60-70 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगते हैं. मूंगफली की बोआई भी तकरीबन 50 सैंटीमीटर के फासले पर सीधी लाइन में ही करनी चाहिए.
* अगर आप का एरिया सोयाबीन की खेती के लिए मुनासिब हो, तो उम्दा प्रजाति का चयन कर के जून में ही उस की बोआई करें.
* सोयाबीन की बोआई के लिए तकरीबन 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से लगते हैं.
* सोयाबीन की बोआई भी तकरीबन 50 सैंटीमीटर के फासले पर सीधी लाइन में ही करनी चाहिए.
* अमूमन जून माह तक उड़द की फसल पक जाती है. अगर आप की उड़द की फसल पक कर तैयार हो, तो उस की कटाई का काम खत्म करें ताकि खेत को अगली फसल के लिए तैयार किया जा सके.
* अमूमन मूंग की फसल भी जून माह तक पक कर तैयार हो जाती है. मूंग की पकी हुई फलियां चुन कर तोड़ लें. यदि 80 फीसदी फसल पक चुकी हो तो बेहतर होगा कि उस की कटाई कर लें.
* जून का महीना सूरजमुखी की बोआई के लिए भी मुफीद रहता है. अगर सूरजमुखी बोने का मन हो, तो यह काम 15 तारीख तक निबटा दें. बोआई से पहले सूरजमुखी के बीजों को उपचारित करें, इस से फसल बेहतर होगी.
* आप ने अगर कपास लगा रखी हो, तो उस के खेतों का मुआयना करें. अगर जरूरत महसूस हो तो उस की सिंचाई करें. सिंचाई के बाद खेतों में नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा डालें.
* सिंचाई के अलावा कपास के खेतों की निराईगुड़ाई कर के खरपतवार निकालें. जरूरत के मुताबिक कीटों व रोगों के इलाज के लिए दवाओं का इस्तेमाल करें.
* पहले डाली गई तुरई की नर्सरी में पौधे तैयार हो चुके होंगे, लिहाजा उन की रोपाई करें. तुरई के पौधों की रोपाई 100×50 सैंटीमीटर के फासले पर करें.
* इसी महीने शरदकालीन बैगन की नर्सरी डालें. बोआई के लिए उम्दा प्रजाति के बीजों का इस्तेमाल करें. अच्छी प्रजाति का चयन करने से फसल बेहतर होती है और फायदा ज्यादा होता है.
* मिर्च के खेत सूखे दिखाई दें, तो उन की हलकी सिंचाई करें. सिंचाई के अलावा निराईगुड़ाई कर के खरपतवारों को निकाल दें.
* अगली फसल के लिए मिर्च की नर्सरी डालें. मिर्च की खेती में प्रति हेक्टेयर रोपाई के लिए डेढ़ किलोग्राम बीजों की जरूरत होती है.
* पकी मिर्चों की तोड़ाई कर के उन्हें मंडी भिजवाएं या सही तरीके से उन का भंडारण करें.
* आमतौर पर जून तक लहसुन की फसल तैयार हो जाती है. अगर आप के लहसुन की फसल भी तैयार हो चुकी हो, तो उस की खुदाई का काम खत्म करें.
* लहसुन की खुदाई के बाद फसल को 2-3 दिनों तक खेत में ही सूखने दें. सूखने के बाद लहसुन की गड्डियां बना कर उन्हें साफ व सूखी जगह पर स्टोर करें.
*अगर अदरक के खेत सूखे नजर आएं तो सिंचाई करें. इस के अलावा 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से डालें. यूरिया के इस्तेमाल से अदरक की फसल उम्दा होती है.
* हलदी के खेत भी अगर सूखे लगें, तो उन की भी सिंचाई करें. हलदी के खेतों में भी 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें, इस से फसल बेहतर होगी.
* जून महीने में ही रामदाना की भी बोआई की जाती है. इस फायदे वाली फसल की बोआई का काम 15 जून तक कर लेना चाहिए. इस की बोआई के लिए डेढ़ किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगते हैं.
* मक्का हर लिहाज से बेहद उपयोगी होता है. इनसानों के साथसाथ यह जानवरों का भी पसंदीदा भोजन होता है. लिहाजा, मवेशियों के दाने के लिहाज से इस महीने मक्के की भी बोआई करें.
* मवेशियों के चारे के लिहाज से तमाम चारा फसलों की बोआई जून महीने में ही कर देनी चाहिए. ऐसा करने से चारे का क्रम बना रहता है और पशुपालकों को हरे चारे के लिए परेशान नहीं होना पड़ता.
* अलबत्ता कौनकौन सी चारे की फसलें बोएं, इस का फैसला इलाके और आबोहवा के मुताबिक करना सही रहता है. इस में नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के पशु वैज्ञानिक की मदद ली जा सकती है.
* जून की आबोहवा इनसानों के लिए ही नहीं, बल्कि जानवरों के लिए भी खतरनाक होती है, लिहाजा इस महीने के दौरान अपने मवेशियों का खास खयाल रखें. उन्हें लू के कहर से बचा कर रखें.
* अपनी महंगी गायभैंसों को गरमी के कहर से बचाने का पूरा बंदोबस्त करें.
* पशुओं के लिए जरूरत के मुताबिक पंखों व कूलरों का इंतजाम करें.
* मवेशियों को दिन व दोपहर की कड़ी धूप से बचा कर रखें. रात के समय उन्हें खुले आसमान के नीचे बांधें.
* पशुओं को रात के दौरान खुले में बांधने से उन्हें ठंडीठंडी हवा का मजा तो जरूर मिलता है, मगर ऐसे में चोरों से सावधान रहना चाहिए. चोरों को रातोंरात मवेशियों को गायब करने में जरा भी दिक्कत नहीं होती.
* बेहतर यही होगा कि अपने पशुओं के आसपास आप खुद भी लाठी वगैरह ले कर सावधानीपूर्वक खुले में ही सोएं. हो सके तो पास में वफादार पालतू कुत्ता भी रखें.
* नाजुक परिंदों यानी मुरगेमुरगियों को भी गरमी व लू से बचाने के पूरे इंतजाम करें. जरूरत के मुताबिक पंखे या कूलर लगाएं.
* अपने तरीके से तमाम इंतजाम करने के बाद भी अगर मवेशी या मुरगामुरगी वगैरह बीमार व परेशान नजर आएं तो बगैर चूके जानवरों के डाक्टर की मदद लें यानी इलाज कराएं.