लगातार बढ़ रही कृषि उत्पादन लागत एवं जलवायु परिवर्तन को देखते हुए किसानों को चाहिए कि वे कृषि में विविधीकरण अपनाएं, जिस से कि वे टिकाऊ खेती, औद्यानिकीकरण, पशुपालन, दुग्ध व्यवसाय, मधुमक्खीपालन, मुरगीपालन सहित अन्य लाभदायी उद्यम को करते हुए अपने परिवार की आय को बढ़ाने के साथसाथ स्वरोजगार भी कर सकें.

कृषि विविधीकरण का उद्देश्य

कृषि विविधीकरण का उद्देश्य कृषि के साथसाथ वे सभी कामों के करने से है, जिन से पर्यावरण सुरक्षित रहे और किसानों को लाभ  हो. हवा, जमीन, जानवर, जंगल, जो कि हमारी प्राकृतिक संपदाएं हैं, उन में गुणवत्ता बनी रहे और किसान इन से लगातार अच्छा उत्पादन लेते रहें. जैसे कि मिट्टी की सेहत को बनाए रखने के लिए मिट्टी जांच की संस्तुतियों के अनुसार जैविक विधियों से ज्यादा से ज्यादा आवश्यक पोषक तत्त्वों का भूमि में प्रयोग करें, जिस से कि मिट्टी में जीवांश पदार्थ की मात्रा बढ़ सके.

उचित फसल चक्र अपनाएं, कम दिनों की फसलें एवं उन की प्रजातियां उगाएं, आवश्यकतानुसार उचित मात्रा में बौछारी एवं टपक विधि से फसलों की सिंचाई करें. बाजारोन्मुखी औद्यानिक फसलों एवं पौध को पौलीहाउस या शैडनैटहाउस द्वारा समय की मांग के अनुसार उत्पादन करें. साथ ही, उत्पादन में मूल्य संवर्धन कर के बेच कर अधिक लाभ लें.

वर्तमान समय की मांग को देखते हुए शीतकालीन गन्ने के साथसाथ मसूर, चना, दाल वाली मटर, सब्जी की मटर जैसी दलहनी और तिलहन में पीली सरसों का उत्पादन भी करें.

वसंतकालीन गन्ने में अंत:फसली के रूप में लोबिया, उड़द, मूंग भी ले सकते हैं. गन्ने से गुड़, शीरा, सिरका बना कर बेचने से निश्चित रूप से लाभ होता है.

कृषि विविधीकरण (Agricultural diversification)

प्रत्येक किसान के पास गृहवाटिका अवश्य होनी चाहिए, जिस से मौसम के अनुसार लहसुन, प्याज, धनिया, मेथी, मूली, भिंडी, कद्दू, लौकी, पालक, मिर्च, शिमला मिर्च, अदरक, बैगन, टमाटर, सब्जी मटर इत्यादि पैदा करें. फलस्वरूप, गुणवत्तायुक्त ताजी सब्जियों को खाएं, जिस से उन का स्वास्थ्य अच्छा रहे और पैसे की भी बचत हो. केले में धनिया, मेथी, बरसीम की अंत:फसल ले कर प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है.

कृषि से संबंधित अन्य व्यवसाय

शहरीकरण के चलते पशुपालन को बढ़ावा देने की जरूरत है, क्योंकि समय की मांग है कि किसान दूध बेचने के बजाय उस का घी, मक्खन, दही, पनीर, छाछ इत्यादि बना कर बेचें, जिस से कि उन को अधिक लाभ हो व उन्नत नस्ल की भैंस मुर्रा, भदावरी, गाय हरियाणा, साहीवाल, थारपारकर, बकरियों में जमुनापारी एवं बरबरी को पालें.

मछलीपालन के लिए रोहू, कतला, सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प और कौमन कार्प का प्रयोग करें. औद्योगिक फसलों में बटन मशरूम का उत्पादन करें, क्योंकि इस का बाजार उपलब्ध है.

आवागमन के अच्छे साधन होने की वजह से गेंदा, गुलाब, जरबेरा, ग्लैडिओलस, रजनीगंधा इत्यादि फूलों की खेती करें एवं इत्र के लिए पामारोजा, लैमनग्रास, गुलाब, खस जैसे सगंधीय पौधों की खेती भी कर सकते हैं.

बैकयार्ड मुरगीपालन भी एक कम लागत का लाभदायी घरेलू उद्यम है. वनराजा, कैरीप्रिया, ग्रामप्रिया, कड़कनाथ की उत्पादन क्षमता अधिक है. इन से तकरीबन 200 अंडे हर साल लिए जा सकते हैं. इन के ब्रायलर 40 दिन पर एक से डेढ़ किलो तक के हो जाते हैं.

मधुमक्खीपालन भी कम लागत का एक अच्छा उद्यम है. 50 बक्सों के साथ यह व्यवसाय शुरू किया जा सकता है, जिस से 5 क्विंटल तक शहद हर साल लिया जा सकता है.

इस के अतिरिक्त बटेरपालन भी एक अच्छा व्यवसाय है. किसान संबंधित विभागों से नियमित संपर्क करते रहें, जिस से कि योजनाओं की समय पर जानकारी ले कर उस का उपयोग कर सकें.

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