मवेशी कभी किसानों की आय का एक जरीया होते थे. जब भी किसान को अपनी जरूरत के लिए पैसा चाहिए होता था, तो वह पशुओं को बेच कर अपना काम चला लेता था. किसान तब गाय और बछड़े में कोई अंतर नहीं समझता था.

बैल और भैंसा खेत में काम करने के लिए होते थे. जरूरत न होने पर बैल को बेचा भी जाता था, लेकिन आज खेत की जुताई से ले कर बाकी कामों के लिए मशीनों का ही इस्तेमाल होने लगा है.

ऐसे में खेत से बैल का काम गायब होता जा रहा है. अब बैल और बछड़े किसानों के लिए बेकार हो गए हैं, इसलिए अब ये छुट्टा जानवरों की तरह किसानों की फसलों को चौपट कर रहे हैं. यही नहीं, जब किसान इन्हें अपने खेत में जाने से रोकते हैं, तो ये हिंसक हो कर गांव के लोगों पर हमला करने लगते हैं. शहरों के भी ऐसे ही हालात हैं. गाय यहां सड़कों पर घूमती मिल जाती है. सड़क दुर्घटना का यह सब से बड़ा कारण बनती जा रही है.

पहले तो ये छुट्टा जानवर खेतों में खड़ी फसल को ही नुकसान पहुंचाते थे, लेकिन अब लोगों को भी घायल करने लगे हैं. यही नहीं, फसलों को जानवरों से बचाने के लिए किसान अब खेतों के चारों तरफ तार की बाड़ लगाने लगे हैं. किसानों को रात में अब खेतों में सोना पड़ रहा है, जिस से उन्हें कई तरह की दुर्घटनाओं का शिकार होना पड़ रहा है.

शहर के जानवर पहुंच रहे हैं गांव : कई इलाकों में तो नीलगाय खेतों को नुकसान पहुंचाती थी. इस वजह से किसान फसलों की बोआई नहीं कर पा रहे थे. कुछ किसानों ने तो मटर, आलू और सरसों जैसी फसलों की बोआई ही बंद कर दी थी, लेकिन अब किसानों के सामने नीलगाय से ज्यादा परेशानी इन छुट्टा जानवरों से है.

गाय के नाम पर गौरक्षक पूरे देश में तांडव मचा चुके हैं. ऐसे में यह कारोबार बंद हो चुका है. लिहाजा, लोग अब अपने जानवरों को छुट्टा छोड़ देते हैं. पहले हर गांव में पशुओं के चारागाह के नाम पर काफी सरकारी जमीन खाली पड़ी होती थी, लेकिन अब यह जमीन खत्म हो गई है. गांव के किनारे बने जंगल भी खत्म हो गए हैं, इसलिए जानवर चरने के लिए अब खेतों में जाने लगे हैं.

यह समस्या पूरे देश की है खासकर उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब इस से ज्यादा प्रभावित हैं. ये ऐसे प्रदेश हैं, जहां खेती के लिए जानवरों का इस्तेमाल होता था.

नाम की गौरक्षा : जानवरों की खरीदबिक्री की यह दिक्कत गौरक्षा से शुरू हुई. गौरक्षा के नाम पर हिंदुत्व वोट बैंक को भावनात्मक तरीके से जोड़ा गया. गाय के साथ लोग जुड़ते गए, लेकिन यह भूल गए कि देश में गाय और उस की नस्ल के जानवरों को रखने के लिए कोई इंतजाम नहीं हैं. पहले तहसील स्तर पर जानवरों को रखने के लिए कैदखाने बनाए जाते थे, जिस का भी जानवर छुट्टा पाया जाता था, उसे वहां बंद कर दिया जाता था.

जब उस का मालिक उसे लेने जाता था, तो उसे जानवर को रखने पर आने वाला खर्च देना पड़ता था. अब ऐसे कैदखाने बंद हो गए हैं. शहरों में भी छुट्टा जानवरों को पकड़ने और रखने के इंतजाम होते थे. अब ऐसे प्रयोग बंद हो गए हैं.

सड़कों पर भी ऐसे जानवरों को घूमते, टहलते और आराम फरमाते देखा जा सकता है. सरकार बारबार कह रही है कि ऐसे जानवरों को रखने के लिए सरकारी इंतजाम किए जा रहे हैं, पर इन का असर कहीं नहीं दिख रहा है.

गौरक्षा के नाम पर वोट हासिल करने वाली सरकार भी इस तरफ कोई रुचि नहीं दिखा रही है. इस वजह से शहर से ले कर गांव तक अब छुट्टा जानवरों का आतंक है. इस से यदि जल्द नजात नहीं मिली तो समस्या ज्यादा गंभीर हो जाएगी.

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