आज देशभर में मछली की काफी मांग है और दिनोंदिन इस में इजाफा हो रहा है. आंकड़ों के मुताबिक मछलीपालन कारोबार तकरीबन 15 फीसदी की तेजी से बढ़ रहा है, जो लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा कर रहा है. दुनियाभर में भारत मछली उत्पादन में दूसरे स्थान पर है.

मछलीपालन में तालाबों का प्रबंधन सब से ज्यादा खास होता है. मछलीपालन के लिए तालाबों की तैयारी बरसात से पहले कर लेनी चाहिए. मछलीपालन के लिए तालाबों के प्रबंधन को 3 भागों में बांटा जाता है:

पानी इकट्ठा करने से पहले का प्रबंधन, इकट्ठा करते समय का प्रबंधन और इकट्ठा करने के बाद का प्रबंधन.

पानी इकट्ठा करने से पहले तालाब का प्रबंधन : मछली के बीज संचयन से पहले तालाब का प्रबंधन यानी तालाब तैयार करना होता है. तालाब की तैयारी करते समय पहले तालाब में जो खरपतवार उगे हैं उन्हें हटा दें. इस के लिए आप मजदूरों की भी मदद ले सकते हैं या खरपतवारों को तालाब में जाल बिछा कर निकाल सकते हैं.

तालाब में मांसाहारी मछलियां अधिकतर पालतू मछलियों को खा जाती हैं, इसलिए उन की रोकथाम करनी चाहिए. इस के लिए आप जाल का इस्तेमाल कर सकते हैं या 2500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से महुआ की खली का इस्तेमाल कर उन पर काबू पा सकते हैं. इस के अलावा ब्लीचिंग पाउडर का 300 से 350 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन ध्यान रहे कि यदि आप ब्लीचिंग पाउडर का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो उस में क्लोरीन की मात्रा 30 फीसदी होनी चाहिए और सूर्यास्त के बाद ही उस का इस्तेमाल करना चाहिए.

इस से तालाब के कीड़ेमकोड़ों पर काबू पाया जा सकता है. इस के लिए आप 300 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से तालाब में चूना डालें. ऐसा करने से सभी कीड़ेमकोड़े मर जाते हैं.

यह सब करने के बाद फर्टिलाइजर का प्रबंधन करना चाहिए. इस के लिए सब से पहले सवा सौ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से चूने का इस्तेमाल करें. इस के बाद 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सरसों की खली, 5000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर, 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सिंगल सुपर फास्फेट और सवा सौ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया और 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पोटाश का इस्तेमाल कर के तालाब के पानी को 1 हफ्ते के लिए ऐसे ही छोड़ देना चाहिए.

1 हफ्ते बाद तालाब में खाली जाल चलाएं. खाली जाल चलाने के बाद 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पोटेशियम परमैगनेट का छिड़काव करें. इस के बाद दूसरे चरण की तैयारी करें.

इकट्ठा करने के समय का प्रबंधन : इस के तहत मछली की प्रजाति, मछली की संख्या, मछली का वजन, मछली की लंबाई और किस समय मछली के बीज डालें, ये बातें बहुत खास हैं, जिन का बहुत ध्यान रखना होगा.

मछली की प्रजाति : मछलियों की 6 प्रजातियां हैं- कतला, रेहू, मिगल, ग्रास कौर्प, सिल्वर कौर्प और कामन कौर्प.

मछली की ये सभी प्रजातियां पानी की अलगअलग सतहों में रहती हैं. नीचे रहने वाली मछलियां मिगल और कामन कौर्प हैं, जबकि ऊपर रहने वाली मछलयां कतला और सिल्वर कौर्प हैं. बीच में रहने वाली रेहू मछली को इकट्ठा करना चाहिए. 10 फीसदी ग्रास कौर्प का संचय पूरे तालाब में करना चाहिए.

इस तरह से तालाब की तीनों सतहें पूरी तरह बराबर हो जाती हैं और किसान को ज्यादा उत्पादन मिलता है.

मछली का आकार और वजन : इकट्ठा करने के दौरान मछली के बीज का आकार कम से कम 6 से 8 सेंटीमीटर होना चाहिए और उस का वजन 50 ग्राम होना चाहिए. इस साल का जो बीज है, उस को अगले साल तक ईयर लिंक बना कर बीज बैंक में रखें और फिर उस का इस्तेमाल करें.

बीज डालने का समय : अगर आप 2 क्रौप की प्लानिंग करते हैं तो उस के लिए बीज डालने का सही समय फरवरी से जून और जुलाई से नवंबर तक का होता है. अगर आप की प्लानिंग 1 क्रौप की है, तो उस के लिए जून से अप्रैल तक का समय सही रहता है.

बीज डालने से पहले इस बात का खयाल रखें कि यदि आप बीज बाहर से ला रहे हैं, तो उस का अंकुरण सही होना चाहिए. अगर आप बाहर से बीज लाते हैं, तो जितना पानी बीज वाले पौलीथिन बैग में है उस में उतना ही तालाब का पानी भी मिलाएं. अब 10 मिनट तक उस का अंकुरण करें उस के बाद तालाब में बीज उलट दें.

मछलीपालन (Fish Farming)

बीज डालने के बाद का प्रबंधन : बीज के बाद आप उस की देखभाल किस तरह करते हैं उसी पर आप का उत्पादन निर्भर करता है, इस के लिए आप को तमाम बातों पर खास ध्यान देना होगा.

ऊपरी आहार प्रबंधन और उर्वरक प्रबंधन : वैज्ञानिक तरीके से मछलीपालन करने में ऊपरी आहार का खास रोल है. आहार के रूप में आप चावल की भूसी और सरसों की खली को बराबर मात्रा में मिला कर उस का इस्तेमाल कर सकते हैं या फिर मार्केट में मिलने वाले फीड का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. महीने में हम अगर मछलियों को 5 फीसदी की दर से खाना खिलाते हैं तो 25 किलोग्राम दाना रोजाना खर्च होगा.

इसी तरह 2 महीने में अगर 4 फीसदी की दर से खिलाएंगे, तो 30 से 35 किलोग्राम दाने की जरूरत पड़ेगी. इसी तरह 3 महीने में 4 फीसदी की दर से तकरीबन 55 किलोग्राम, 4 महीने में 90 किलोग्राम और 5 महीने में 108 किलोग्राम दाना रोजाना चाहिए. इस तरह 1 क्रौप में हमें कम से कम 9 से 10 टन आहार की जरूरत होती है.

मछली जल्दी बढ़े इस के लिए हमें प्रोबायोटिक्स का इस्तेमाल करना होगा. 5 से 10 ग्राम फीड में प्रोबायोटिक्स डालें.

उर्वरक प्रबंधन : बीज डालने के बाद महीने में 2 बार उर्वरक का इस्तेमाल करना चाहिए. अगर किसी महीने पहली तारीख को आप ने गोबर का इस्तेमाल 1000 से 1500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर किया है, तो फिर 15 तारीख को 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सिंगल सुपर फास्फेट और डीएपी का इस्तेमाल करें.

उर्वरक के इस्तेमाल से 2 दिन पहले कम से कम 10 से 15 किलोग्राम कैल्शियम कार्बोनेट जो एग्रीकल्चर लाइमस्टोन है, का इस्तेमाल करें.

उर्वरक डालने से 2 दिन पहले खेत में चूने का इस्तेमाल करना चाहिए. उस के बाद हर 15 दिन में एक बार जैविक खाद और उस के 15 दिन बाद रासायनिक खाद देनी चाहिए. जिस महीने में तालाब का पानी ज्यादा हरा हो जाए, उस महीने रासायनिक खाद का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए.

मछलीपालन से जुड़ी ज्यादा जानकारी के लिए लेखक के मोबाइल नंबर 9792218242 पर बात कर सकते हैं.

मछलीपालन के फायदे

मछलीपालन के कई फायदे हैं, जो आर्थिक मदद से ले कर हर तरह की मदद करते हैं. मछली को छोटे तालाब या पोखर में पाला जा सकता है. यदि आप के पास बड़ा तालाब नहीं है, तो वैज्ञानिक तरीके से भी छोटे आकार की सीमेंट की गोलाकार हौद बना कर उन में मछलीपालन किया जा सकता है.

यदि आप ने सही जानकारी हासिल कर ली है तो मछलीपालन के काम में आप को आसानी होगी. नस्ल के हिसाब से मछलियों का 4 से 7 महीने के अंदर 1 किलोग्राम से ले कर 5 किलोग्राम तक वजन बढ़ जाता है. मछली के मांस में अच्छी मात्रा में प्रोटीन होता है. इस व्यवसाय के लिए बैंक लोन भी आसानी से मिल जाता है. आज मछलीपालन के मामले में आंध्र प्रदेश पहले स्थान पर है, उस के बाद पश्चिम बंगाल और फिर गुजरात व केरल का नंबर आता है.

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