हमारे देश के कुछ राज्यों में कपास की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. साथ ही, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में कम इलाके में किसान कपास की खेती कर रहे हैं. कपास की खेती से किसानों को उन की लागत के मुकाबले मुनाफा कम होता था. इस की खास वजह यह है कि कपास की फसल में सिंचाई काफी करनी पड़ती है. जितना ज्यादा पानी लगेगा, उतनी ही लागत बढ़ जाएगी. अगर फसल में कम पानी है तो सूखने के साथ ही उस में कई तरह के कीड़े लग जाते हैं.

यही वजह है कि कपास की खेती के तैयार होने में लगने वाले ज्यादा समय और पानी की कमी की वजह से इस का रकबा घट रहा है. किसानों को इन समस्याओं से बचाने के लिए केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान, नागपुर ने कपास की एक ऐसी किस्म तैयार की है जो 100 दिनों में तैयार हो जाती है.

कपास की इस नई किस्म का नाम ‘युगांक’ रखा गया है. कृषि वैज्ञानिकों की 9 साल की रिसर्च के बाद इन की मेहनत रंग लाई है और वे कपास की कम समय में तैयार होने वाली किस्म को ईजाद करने में कामयाब रहे हैं जो सिर्फ 100 दिनों में तैयार हो जाएगी.

अभी तक कपास को तैयार होने में 230 से ले कर 260 दिन लगते हैं. किसानों के लिए राहत की खबर है कि कपास की इस किस्म से सूखे की मार झेल रहे विदर्भ और तेलंगाना के किसानों के साथ ही उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के किसान इस की अच्छी खेती कर के ज्यादा मुनाफा कमा पाएंगे.

पूरी दुनिया के कपास उत्पादक देश आस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन और रूस में भी कपास की फसल 150 दिन में तैयार होती है, लेकिन भारत में इस की खेती में बहुत समय लगता था. ऐसे में किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ती थी. एक तरफ ज्यादा समय और दूसरी तरफ ज्यादा लागत. ऐसे में कपास की नई किस्म यहां के किसानों के लिए वरदान साबित होगी.

कपास की पूरी दुनिया में बढ़ती खपत के चलते इसे सफेद सोना के नाम से जाना जाता है. कपास एक नकदी फसल है, जिस की खेती कर के किसान माली तौर पर मजबूत होंगे लेकिन पिछले कुछ समय से कपास पैदा करने वाले राज्यों में सूखे से फसल का नुकसान और लागत बढ़ने से कपास की खेती लगातार घट रही है. उत्तर प्रदेश में एक समय किसान 5 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती करते थे, जो घट कर अब महज 14 हजार हेक्टेयर ही रह गई है.

उत्तर प्रदेश की आबादी सभी राज्यों से काफी ज्यादा है. ऐसे में तकरीबन 5 लाख रुई गांठ की जरूरत हर साल होती है, इसलिए प्रदेश में कपास की पैदावार को बढ़ावा देने की जरूरत है. नई किस्म ‘युगांक’ प्रदेश के साथसाथ देश में मील का पत्थर साबित हो सकती है.

variety of cotton

देश के कुछ राज्यों में पिछले कई सालों से सूखा, बेमौसम बारिश, पानी का घटता लैवल, लागत में बढ़ोतरी और सरकारी अनदेखी के चलते कपास की खेती से किसानों का मोह भंग हो रहा है. अगर सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाती तो वह दिन दूर नहीं जब महंगे दामों में विदेशों से कपास खरीदनी पड़ेगी.

कृषि वैज्ञानिकों की इस नई खोज ने कपास के किसानों के लिए नई राह खोल दी है. कपास की खेती में जहां पहले तकरीबन 230 दिन लगते थे, वहीं अब महज 100 दिन में फसल पक कर तैयार हो जाएगी. इतनी जल्दी फसल तैयार होने से किसानों को कई फायदे होंगे. एक फायदा यह होगा कि समय कम लगेगा, जिस का सीधा सा मतलब है कि उन की लागत कम आएगी और मुनाफा ज्यादा होगा.

‘युगांक’ की नई किस्म आने से किसानों को कपास की खेती के बाद दूसरी फसल तैयार करने में मदद मिलेगी, जबकि अब तक ऐसा नहीं हो पाता था. इस नई किस्म में पानी कम लगता है और कीड़े भी नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे. इस तरह से नई किस्म हर तरह से किसानों के लिए माकूल है.

अगर इस के नतीजे अच्छे रहते हैं तो एक बार फिर से किसान कपास की फसल उगाने का जोखिम उठाने को तैयार हो जाएंगे.

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