मूंग से कई तरह के मजेदार पकवान अकसर सभी घरों में बनते हैं. इन में मूंग का हलवा सब से खास है. मूंग की दाल से दही बड़ा, लड्डू, खिचड़ी, नमकीन, कचौड़ी, पकौड़े, सलाद, चाट, खीर, सूप और सैंडविच वगैरह बनाए जाते हैं. मूंग सेहत के लिए काफी फायदेमंद है, क्योंकि खाने के बाद यह जल्दी हजम हो जाती है. मूंग की खेती किसानों के लिए काफी लाभदायक है.

मूंग की खेती खासकर भारत में की जाती है. मूंग को अकसर छिलके या बिना छिलके के साथ अंकुरित या उबाल कर खाया जाता है. मूंग का इस्तेमाल सलाद, सूप, सब्जी और दूसरे स्वादिष्ठ पकवान बनाने के लिए किया जाता है.

मूंग से मिले स्टार्च को निकाल कर इस से जैली और नूडल्स बनाए जाते हैं. इन तमाम खूबियों की वजह से मूंग सभी को काफी पसंद आती है.

दलहनी फसलों में मूंग दूसरी दालों से ज्यादा उपयोगी है. यदि पेट में दर्द या दस्त हो रहे हों तो डाक्टर मरीज को मूंग की खिचड़ी खाने की सलाह देता है. इस में प्रोटीन भरपूर पाया जाता है, जोकि सेहत के लिए काफी खास है.

मूंग में 25 फीसदी प्रोटीन, 60 फीसदी कार्बोहाइड्रेट, 13 फीसदी वसा और कुछ मात्रा में विटामिन ‘सी’ पाया जाता है. मूंग की खासीयत यह है कि इस में वसा काफी कम है, लेकिन विटामिन ‘बी’ कौंप्लैक्स, कैल्शियम और पोटैशियम भरपूर होता है.

वातावरण और जमीन

मूंग की खेती खरीफ और जायद दोनों ही मौसमों में आसानी से की जा सकती है. इस की फसल को पकते समय शुष्क जलवायु की जरूरत पड़ती है.

मूंग की खेती के लिए अच्छी जलनिकासी की व्यवस्था होना काफी जरूरी है, साथ ही दोमट और बलुई दोमट जमीन इस की पैदावार के लिए काफी अच्छी मानी जाती है, जिस का पीएच मान 7-8 हो.

जिन खेतों में दीमक का अंदेशा हो, उन की सुरक्षा के लिए एल्ड्रिन 5 फीसदी चूर्ण 8 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से आखिरी जुताई से पहले खेत में बिखेर दें और उस के बाद जुताई कर उसे मिट्टी में मिला दें. मूंग की फसल में सिंचाई की जरूरत कम पड़ती है, लेकिन जायद की फसल में ज्यादा सिंचाई की जरूरत पड़ती है.

खेत की पहली जुताई हैरो या मिट्टी पलटने वाले रिजर हल से करनी चाहिए. इस के बाद 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर से कर के खेत की मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा बना लें. जब आखिरी जुताई करनी हो तब लेवलर लगाना काफी जरूरी होता है, ताकि खेत में नमी ज्यादा समय तक बरकरार रह सके.

पहले किसान परंपरागत तरीके से खेतों की जुताई करते थे, लेकिन अब आधुनिक तकनीक आने से ट्रैक्टर, पावर टिलर और रोटावेटर जैसे यंत्रों से खेतों की तैयारी काफी जल्द हो जाती है.

बीज की मात्रा और बीजोपचार : खरीफ के मौसम में मूंग का बीज जायद की फसल के मुकाबले काफी कम लगता है. इस मौसम में 6 से 8 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज की जरूरत पड़ती है जबकि जायद की फसल में बीज की मात्रा 10-12 किलोग्राम प्रति एकड़ होनी चाहिए. 1 ग्राम कार्बंडाजिम, 2 से 3 ग्राम थायरम, फफूंदनाशक दवा से प्रति किलोग्राम बीज में मिला कर बोआई करने से बीज और जमीन की बीमारियों से फसल की सुरक्षा होती है. इस के बाद बीज को रायजोबियम कल्चर से उपचारित करें,

5 ग्राम रायजोबियम कल्चर प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें और बीज को छाया में सुखा कर जल्दी बोआई करनी चाहिए. इस के उपचार से राइजोबियम की गांठें ज्यादा बनती हैं और अच्छी फसल होती है.

बोने का समय और तरीका

खरीफ और जायद दोनों फसलों में अलगअलग बोआई की जाती है. खरीफ के मौसम में जुलाई के आखिरी हफ्ते से अगस्त के तीसरे हफ्ते तक बोआई करनी चाहिए. कूंड़ से कूंड़ की दूरी 30 से 35 सैंटीमीटर रखनी चाहिए और जायद में 10 मार्च से 10 अप्रैल तक बोआई करनी चाहिए. कूंड़ से कूंड़ की दूरी 25 से 30 सैंटीमीटर रखनी चाहिए. बीज की बोआई कूंड़ में 4 से 5 सैंटीमीटर की गहराई में करनी चाहिए, ताकि गरमी में जमाव अच्छा हो सके. जायद में या गरमी की फसल में बोआई के बाद लेवलर से खेत बराबर करना काफी जरूरी है, जिस से कि खेत की नमी न रहे.

खाद डालने का तरीका

किसानों की मुख्य समस्या यह है कि वह बिना मिट्टी जांच के अपने खेतों में ज्यादा पैदावार के लिए काफी ज्यादा उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं, जिस से उन की लागत बढ़ जाती है और खेतों की पैदावार आने वाले साल में घटने लगती है.

अनुमान के मुताबिक, 10 से 15 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर में इस्तेमाल करना चाहिए.

यदि किसान फसल की पैदावार ज्यादा लेना चाहते हैं तो इन्हें बोआई के समय कूंड़ों में बीज से 2 से 3 सैंटीमीटर नीचे देना चाहिए, जिस से अच्छी पैदावार हो.

मूंग की खेती (Moong Cultivation)

मूंग की प्रजातियां

मूंग में खासतौर पर 2 तरह की उन्नतशील प्रजातियां पाई जाती हैं. खरीफ की फसल में बोआई के लिए टाइप 44, पंत मूंग 1, पंत मूंग 2, पंत मूंग 3, नरेंद्र मूंग 1, मालवीय ज्योति, मालवीय जनचेतना, मालवीय जनप्रिया, सम्राट, मालवीय जाग्रति, मेहा, आशा और मालवीय जनकल्याणी ये सभी किस्में खरीफ की फसल के लिए हैं.

इसी तरह जायद की फसल के लिए पंत मूंग 2, नरेंद्र मूंग 1, मालवीय जाग्रति, सम्राट मूंग, जनप्रिया, मेहा, मालवीय ज्योति प्रजातियां काफी लाभकारी हैं.

कुछ प्रजातियां ऐसी हैं जो खरीफ और जायद दोनों में बोई जाती हैं और उन की पैदावार भी अच्छी होती है, जैसे कि पंत मूंग 2, नरेंद्र मूंग 1, मालवीय ज्योति, सम्राट, मेहा, मालवीय जाग्रति.

किसानों को इस बात का खासा ध्यान रखना चाहिए कि मूंग की खेती करते समय वह अपने राज्यों के हिसाब से मूंग की प्रजाति का चुनाव करें, जिस से ज्यादा उत्पादन हो सके.

सिंचाई : खरीफ की फसल में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन जब फूल आ जाएं और सूखने लगें, ऐसी हालत में सिंचाई करने से उपज में काफी बढ़ोतरी होती है. खरीफ की फसल में बारिश कम होने पर फलियां बनते समय सिंचाई की जरूरत पड़ती है और जायद की फसल में पहली सिंचाई बोआई के 30 से 35 दिन बाद और बाद में हर 10 से 15 दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए, जिस से अच्छी पैदावार मिल सके.

निराईगुड़ाई : पहली सिंचाई के 30 से 35 दिन बाद निराईगुड़ाई करनी चाहिए. इस से खरपतवार नष्ट होने के साथसाथ हवा भी बहती है, जिस से फसल की बढ़ोतरी तेजी से होती है.

खरपतवार की रोकथाम के लिए किसान पेंडीमेथिलीन 30 ईसी की 3.3 लिटर या एलाकोलोर 50 ईसी 3 लिटर को 600 से 700 लिटर पानी में घोल कर बोआई 2 से 3 दिन के भीतर जमाव से पहले प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. ऐसा करने से खेतों में खरपतवार का जमाव नहीं होता.

पौध का रखरखाव : हर फसल में कोई न कोई बीमारी जरूर लगती है, चाहे खरीफ की फसल हो या फिर रबी और जायद की. कीटों के प्रकोप से बचने के लिए किसान समयसमय पर कई तरह की कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, जिस से फसल की सुरक्षा की जा सके.

मूंग में पीला चित्रवर्ण मोजैक रोग लगता है. इस के विषाणु सफेद मक्खी के जरीए फैलते हैं. इस की रोकथाम के लिए समय पर बोआई करना काफी जरूरी है, दूसरा मोजेक अवरोधी प्रजातियों का इस्तेमाल बोआई में करना चाहिए. तीसरा, मोजेक रोग वाले पौधे को सावधानी से उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

मूंग की फसल में थ्रिप्स हरे फुदके वाला कीट और फलीछेदक कीट लगता है. इन से बचने के लिए किसानों को क्विनालफास 25 ईसी 1.25 लिटर मात्रा 600 से 800 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए, जिस से कीटों का असर न हो और फसल बरबाद न हो.

फसल की शुरुआती अवस्था में तनामक्खी, फलीबीटल, हरी इल्ली, सफेद मक्खी, माहू, जैसिड, थ्रिप्स आदि का हमला होता है. इन की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान 35 ईसी 400 से 500 मिलीलिटर क्विनालफास 25 ईसी 600 मिलीलिटर प्रति एकड़ या मिथाइल डिमेटान 25 ईसी, 200 मिलीलिटर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें. यदि दोबारा जरूरत पड़े तो 15 दिन बाद फिर छिड़काव करें.

जब पौधों में फूल लगने लगते हैं तो फलीछेदक, नीली तितली का ज्यादा असर होता है. क्विनालफास 25 ईसी का 600 मिलीलिटर या मिथाइल डिमेटान 25 ईसी का 200 मिलीलिटर प्रति एकड़ के हिसाब से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करने से इन की रोकथाम हो सकती है.

कई क्षेत्रों में कंबल कीड़े का ज्यादा असर होता है. इस की रोकथाम के लिए पेराथियान चूर्ण 2 फीसदी, 10 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें.

फसल की कटाईमड़ाई : जब फसल की फलियां पक कर सही तरीके से सूख जाएं, तब खेतों से फसल की कटाई करनी चाहिए. मूंग की फलियां पकने पर काली पड़ने लगती हैं. यदि थोड़ीबहुत नमी रहे तो फसल को खेतों में एकदो दिन के लिए छोड़ दें, ताकि सही तरह से सूख जाए. कटाई करने के बाद खलिहान में अच्छी तरह सुखा कर ही मड़ाई करें. इस के बाद ओसाई कर के बीज और भूसा अलगअलग कर लेना चाहिए.

उपज : यदि मूंग की फसल आधुनिक तकनीक से की जाए और सही वक्त पर फसल की सिंचाई और कीटनाशक दवा का छिड़काव किया जाए तो पैदावार ज्यादा होती है.

चूंकि मूंग की फसल साल में 2 मौसम में की जाती है, तो दोनों की पैदावार में भी थोड़ाबहुत फर्क रहता है. खरीफ की फसल में 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ तक पैदावार होती है और जायद की फसल में तकरीबन 4 क्विंटल प्रति एकड़ तक की पैदावार हो जाती है.

भंडारण : किसी भी फसल का भंडारण करने से पहले कुछ सावधानियां बरतनी जरूरी हैं, तभी ज्यादा समय तक बीज सुरक्षित रहेगा, वरना उस में कीड़े पड़ जाते हैं. बीज भंडारण से पहले सही तरीके से सुखा लेना चाहिए. बीज में 8 से 10 फीसदी से ज्यादा नमी नहीं रहनी चाहिए.

मूंग के भंडारण में सूखी नीम की पत्ती का इस्तेमाल करने से कीड़ों से बचाव किया जा सकता है. कुछ किसान कीड़ों से अनाज बचाने के लिए सल्फास का इस्तेमाल करते हैं जो काफी नुकसानदायक है.

सल्फास काफी जहरीला होता है, इस के इस्तेमाल से सेहत पर बुरा असर पड़ता है. इसलिए किसानों को चाहिए कि वह अनाज की सुरक्षा के लिए परंपरागत तरीके अपनाएं, इस में सब से ज्यादा लाभदायक नीम की पत्तियां होती हैं, जिन से सालभर बीज सुरक्षित रहता है और सेहत के लिए किसी तरह का नुकसान भी नहीं होता.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...