समुचित विकास के लिए पौधे में नाइट्रोजन एक जरूरी पोषक तत्त्व है. रासायनिक उर्वरकों के अलावा शैवाल और जीवाणुओं की कुछ प्रजातियां वायुमंडल में नाइट्रोजन (80 फीसदी) का स्थिरीकरण कर मिट्टी और पौधों को देती हैं और फसल की उत्पादकता में बढ़वार करती हैं. इस क्रिया को जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहते हैं. इन सूक्ष्म जीवाणुओं को ही जैव उर्वरक कहते हैं.
नीलहरित शैवाल एक विशेष प्रकार की काई होती है. इन की कई प्रजातियां होती हैं, जिस में आलोसाइरा, नास्टाक, एनाबीन, सिटोनिमा, टालिपोथ्रिक्स, वेस्टीवापसिस वगैरह प्रमुख हैं.
नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया शैवाल की संरचना में स्थित एक विशिष्ट प्रकार की कोशिका होती है, इसे हैटेरोसिस्ट कहते हैं. यह सामान्य कोशिकाओं से संरचना करने में अलग होती है. इस का निर्माण सामान्य कोशिकाओं में ही कोशिकाभित्ति मोटी होने और कुछ आंतरिक परिवर्तनों के फलस्वरूप होता है.
नीलहरित शैवाल यानी बीजीए धान के लिए महत्त्वपूर्ण जैव उर्वरक है. इस के प्रयोग से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (25 फीसदी) रासायनिक नाइट्रोजन की बचत और धान के उत्पादन में 8-10 फीसदी की बढ़ोतरी होती है. साथ ही, जमीन की उर्वरक क्षमता में बढ़ोतरी होती?है. धान के खेत का वातावरण नीलहरित शैवाल की बढ़वार के लिए मुफीद होता है. इस की बढ़ोतरी के लिए जरूरी तापमान, समुचित रोशनी, नमी और पोषक तत्त्व की मात्रा धान के खेत में मौजूद रहती है.
नीलहरित शैवाल द्वारा स्थिर किया गया नाइट्रोजन पौधों को शैवाल की जीवित अवस्था में ही मिल जाता है या शैवाल कोशिकाओं के मृत होने के बाद जीवाणुओं द्वारा विघटन होने पर मिलता है.
उत्पादन की विधि
नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक उत्पादन के लिए 5 मीटर लंबा, 1 मीटर चौड़ा और 8-10 इंच गहरा पक्का सीमेंट का टैंक बना लें. टैंक की लंबाई जरूरत के मुताबिक घटाई या बढ़ाई जा सकती है. टैंक ऊंची व खुली जगह पर होना चाहिए. सीमेंट के टैंक के स्थान पर कच्चा गड्ढा भी बना सकते हैं. कच्चे गड्ढ़े में तकरीबन 400-500 गेज मोटी पौलीथिन बिछा लें. खेत के स्थान पर खुली छतों पर भी 2 इंच ऊंचा गड्ढा व टैंक बना सकते हैं.
टैंक व गड्ढे में 4-5 इंच तक पानी भर लें और प्रति वर्गमीटर के हिसाब से एक किलोग्राम खेत की साफसुथरी भुरभुरी मिट्टी, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 10 ग्राम कार्बोफ्यूरोन डाल कर अच्छी तरह मिला कर 2-3 घंटे के लिए टैंक को छोड़ दें. मिट्टी बैठ जाने पर 100 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से उच्च गुणवत्ता का शैवाल र्स्टाटर कल्चर पानी के ऊपर समान रूप से बिखेर दें. 8-10 दिन में शैवाल की मोटी परत बन जाती है. साथ ही, पानी भी सूख जाता है. यदि तेज धूप या किसी दूसरी वजह से शैवाल परत बनाने से पहले ही पानी सूख जाए तब टैंक में और पानी सावधानीपूर्वक किनारे से धीरेधीरे डालें, जिस से शैवाल की मोटी परत टूटने न पाए. 8-10 दिन बाद काई की मोटी परत बनने के बाद भी अगर गड्ढे व टैंक में पानी भरा हो तो उसे डब्बे वगैरह से सावधानीपूर्वक बाहर निकाल दें. इस के बाद टैंक व गड्ढे को धूप में सूखने के लिए छोड़ दें. सूख जाने पर शैवाल कल्चर को इकट्ठा कर पौलीथिन बैग में भर कर खेतों में प्रयोग करने के लिए रख लें.
फिर उपरोक्त विधि से उत्पादन शुरू करें और स्टार्टर कल्चर के स्थान पर उत्पादित कल्चर का प्रयोग कर सकते हैं. यह उत्पादित कल्चर उच्च गुणवत्ता का होता है. एक बार में 5 मीटर साइज के टैंक या गड्ढे से 6.5-7.5 किलोग्राम शैवाल जैव उर्वरक हासिल होता है.
नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक के उत्पादन के लिए बलुई दोमट मिट्टी सब से अच्छी होती है. अप्रैल, मई, जून माह इस के उत्पादन के लिए सब से मुफीद होते हैं.
बरतें ये सावधानिया
* नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक के प्रयोग में लाई जाने वाली मिट्टी साफसुथरी और भुरभुरी होनी चाहिए.
* उत्पादन में प्रयोग की जा रही मिट्टी ऊसर जमीन की नहीं होनी चाहिए.
* मिट्टी में कंकड़, पत्थर और घास को छलनी से अच्छी तरह छान लें.
* जैव उर्वरक उत्पादन के लिए प्रयोगशाला द्वारा जांच किए गए उच्च गुणवत्ता वाले स्टार्टर कल्चर का ही प्रयोग करें.
* किसान अपने यहां उत्पादित जैव उर्वरक की गुणवत्ता की जांच परिषद के वैज्ञानिकों द्वारा करा लें.
* शैवाल जैव उर्वरक की परतों को नाइट्रोजन उर्वरकों और कीटनाशक रसायनों के साथ कभी न रखें.
* शैवाल जैव उर्वरक की थैलियों को नमी से दूर रखें.
* चूंकि शैवाल जैव उर्वरक के उत्पादन में कार्बोफ्यूरान का इस्तेमाल किया जाता है इसलिए ध्यान रखें कि टैंक के पानी कोजानवर न पी जाएं, वरना उन पर कार्बोफ्यूरान का जहरीला असर हो सकता है, इसलिए टैंक व गड्ढे को जानवरों से बचा कर रखें.
* यदि उत्पादन के समय बारिश हो तो टैंक व गड्ढे को पौलीथिन शीट से ढक दें और बारिश खत्म होने पर हटा दें.
प्रयोग की विधि
धान की रोपाई के एक हफ्ते बाद स्थिर पानी में 12.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से शैवाल कल्चर बिखेर दें और शैवाल जैव उर्वरक प्रयोग करने के 4-5 दिन बाद तक खेत में पानी भरा रहने दें.
खेतों में यदि खरपतवारनाशक जैसे ब्यूटाक्लोर वगैरह रसायनों का इस्तेमाल कर रहे हों तो खरपतवारनाशक डालने के 3-4 दिन बाद जैव उर्वरक का इस्तेमाल करें वरना शैवाल की बढ़ोतरी प्रभावित होगी.
खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग रोपाई के 2 दिन बाद जरूर कर लें और अन्य सभी खेती के काम और निराईगुड़ाई सामान्य तरह ही करते रहें.
खेत में नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक का प्रयोग पहली व दूसरी टौप ड्रेसिंग के दौरान जरूर कर दें. बेसल ड्रेसिंग में रासायनिक नाइट्रोजन का प्रयोग कम मात्रा में करें. धान के पूर्व जिस खेत में हरी खाद के रूप में ढैंचा लगाया गया हो, उस खेत में उपरोक्त विधि से नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक का प्रयोग करने से बेसल ड्रेसिंग में भी संस्तुत रासायनिक नाइट्रोजन की मात्रा में 50 फीसदी की कमी कर दें. ध्यान रखें, नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक का प्रयोग जिस खेत में करना हो, उस की मेंड़बंदी अच्छी तरह कर लें, जिस से उर्वरक के प्रयोग के बाद पानी बाहर न निकले.
प्रयोग से लाभ
कृषक प्रक्षेत्र पर नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक की 12.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन देती है इसलिए रासायनिक नाइट्रोजन की मात्रा 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (66 किलोग्राम यूरिया) की बचत हो सकती है. इस के प्रयोग से धान की उपज में औसतन 2-4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की बढ़ोतरी होती है. साथ ही, पर्यावरण को साफ रखने में सहायक है.
शैवाल जैव उर्वरक इस्तेमाल करने से मिट्टी की भौतिक दशा में सुधार होता है और उपजाऊ ताकत बढ़ती है. मिट्टी में नाइट्रोजन और मौजूद फास्फोरस की मात्रा में बढ़ोतरी होती है.
कार्बनिक तत्त्वों की बढ़ोतरी से मिट्टी की जलधारण कूवत में भी बढ़ोतरी होती है.
अम्लीय जमीन में लोहे वगैरह तत्त्वों की विषाक्ता कम करता है.
शैवाल जैव उर्वरक के प्रयोग से ऊसर जमीन में सुधार होता है.
नीलहरित शैवाल जैव उर्वरक बढ़ोतरी नियंत्रक, विटामिन बी12, अमीनो अम्ल वगैरह भी छोड़ते हैं, जिस से पौधों की अच्छी बढ़ोतरी होती है और दानों की गुणवत्ता भी बढ़ती है.