गरमियों में नींबू की शिकंजी की मांग खूब रहती है. नींबू एक ऐसा फल है, जो काफी खट्टा होता है, लेकिन आप की सेहत के लिए फायदेमंद भी होता है. अभी तक आप बाजार से जो नीबू खरीदते हैं, उन में बीज जरूर रहते होंगे. आज हम आप को ऐसे नींबू के बारे में बताने जा रहे हैं, जो बीजरहित होता है.
सुन कर आप को ताज्जुब जरूर हुआ होगा, लेकिन यह बात वाकई सच है. बीजरहित नींबू को फारसी में ‘ताहिती नीबू’ के नाम से भी जाना जाता है. इस का वानस्पतिक नाम साइट्रस लैटिफोलिया है, जो कि रुटेसी परिवार से संबंध रखता है.
बीजरहित नीबू संकर मूल का होता है. इस जाति के पौधे मध्यम आकार के होते हैं, जिन में कांटे नाममात्र के ही रहते हैं. यह पौधा काफी फैला हुआ होता है. इस की शाखाएं झालरदार होती हैं, जिस वजह से यह एकदम घना दिखता है.
‘ताहिती नीबू’ के पौधे ज्यादा बड़े नहीं होते हैं. इन के फूल हलके बैगनी रंग के साथ सफेद रंग लिए होते हैं. फल अंडाकार या आयताकार होते हैं, जो 1.5 से 2.5 इंच चौड़े और 2 से 3 इंच लंबे होते हैं. आमतौर पर इस किस्म के फलों में बहुत कम बीज होता है या बिलकुल भी नहीं रहता है, इसीलिए इसे बीजरहित नीबू का नाम दिया गया है.
आमतौर पर इस किस्म के नीबू को तभी तोड़ कर बेचा जाता है, जब हरा रहता है. लेकिन जब फल पूरी तरह से पक जाते हैं, तब वह पीलापन लिए हुए हरा या फिर बिलकुल पीले रंग के हो जाते हैं. इस के फल का गूदा रसदार होने के साथ ही साथ मनभावन खुशबू लिए रहते हैं. फलों की खुशबू मसालेदार और इस का जायका तीखा होता है. यही वजह है कि इस किस्म का नीबू लोगों को काफी पसंद आता है.
बीजरहित नीबू की सब से बड़ी खूबी यह है कि किसानों को इस की खेती से दूसरे किस्म के नीबू की खेती से ज्यादा लाभ होता है, क्योंकि दूसरे नीबू की तुलना में कई तरह के फायदे हैं, जैसे बड़ा आकार, कम बीज या बीजरहित, प्रतिकूल वातावरण में रहने की कूवत, झाडि़यों पर कांटों का न होना और लंबे समय तक फलों को स्टोर करना. कुल मिला कर ये सारी खूबियां बीजरहित नीबू के पौधों को खेती करने के लिए किसानों को अपनी तरफ लुभाती है.
बीजरहित नींबू को पहली बार दक्षिणी इराक और ईरान में कारोबार करने के लए उगाया गया था. इराक और ईरान से इस का सफर शुरू हो कर कई मुल्कों में अपना सिक्का जमा चुका है. इस की पैदावार मैक्सिको में काफी होती है, जहां से अमेरिकन बाजार, यूरोपीय बाजार और एशियाई बाजारों में बीजरहित नीबू भेजा जाता है. मैक्सिको इस का प्राथमिक उत्पादक और निर्यातक देश बना हुआ है.
सेहत के लिहाज से अहम
यह रूसी का इलाज करने के लिए काफी अच्छी तरह से जाना जाता है, जो विटामिन सी की कमी के चलते अकसर लोगों में हो जाती है. इस के अलावा रूखी त्वचा का सफाया कर के चमकदार बनाता है और इसे संक्रमण से बचाता है. इस के अंदर मौजूद अम्ल त्वचा की मृत कोशिकाओं को साफ करते हैं. रूसी, चकत्ते और घावों का इलाज करते हैं.
इस की एक अनूठी सुगंध है जो खाना पचाने में सहायक होती है. घुलनशील फाइबर होने की वजह से यह खाना पचाने में मददगार है. इस से शुगर कंट्रोल करने में मदद मिलती है. यह दिल के मरीजों के लिए भी मुफीद रहता है.
जलवायु की जानकारी
इस की फसल के लिए गहरी और उचित जलनिकास वाली बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी गई है. बीजरहित नीबू की खेती तीनों ही मौसम में आसानी से की जा सकती है. खेती के लिए अधिकतम तापमान 25-30 डिगरी सैल्सियस होना बेहतर रहता है.
अगर मौसम का तापमान 13 डिगरी सैल्सियस से नीचे या 38 डिगरी सैल्सियस से ऊपर है, तब पौधों की बढ़वार रुक जाती है, जिस से उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ता है.
बीजरहित नीबू को ऐसे रोपें
पेड़ों को 16 इंच यानी तकरीबन 40.5 सैंटीमीटर गहरे कटे हुए खाइयों के चौराहे पर या पिसा चूना पत्थर और मिट्टी के ढेर पर लगाया जाता है. पेड़ लगाते समय नमी वाली जगहों से बचें. बाढ़ या पानी जहां जमा होता है, उस जगह से बचें, क्योंकि पेड़ जड़सड़न बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं.
पेड़ों के बीच का अंतराल 20 फुट यानी 6 मीटर की अलगअलग पंक्तियों में 10 या 15 यानी तकरीबन फुट 3 से 4.5 मीटर के करीब हो सकती है, जिस से प्रति एकड़ में 150-200 पेड़ आसानी से लगाए जा सकें. पेड़ों के बीच ज्यादा दूरी भी ठीक नहीं रहती, क्योंकि इस से उत्पादन पर असर पड़ता है.
कटाईछंटाई का हो प्रबंधन
जब पेड़ ज्यादा बड़े हो जाते हैं तो उन्हें मशीन या आरी की मदद से बड़ी शाखाओं को काटना जरूरी हो जाता है. अगर ऐसा नहीं किया गया तो पौधे ज्यादा बड़े हो जाते हैं. इस वजह से उन में लगने वाले रोगों की देखभाल करने में किसानों को परेशानी उठानी पड़ती है. इस के लिए किसानों को चाहिए कि वह 2-3 साल के अंतराल पर कटाई और छंटाई करें. पेड़ों को 20 फुट यानी 6 मीटर की दूरी पर लगाने से अधिक पैदावार मिल सकती है.
समयसमय पर करें सिंचाई
रोपते समय नए पेड़ों में पानी देना चाहिए और पहले हफ्ते में हर दूसरेतीसरे दिन और फिर पहले कुछ महीनों बाद सप्ताह में 1 या 2 बार सिंचाई करनी चाहिए.
शुरुआत में सिंचाई का खास ध्यान रखना चाहिए, वरना पौधों की बढ़वार रुक जाती है. नए लगाए गए पेड़ों में पहले 3 साल तक हफ्ते में 2 बार अच्छी तरह से सिंचाई करनी चाहिए. बागों में जमीन के ऊपर छिड़काव कर के सिंचाई की जाती है. इस विधि से सिंचाई करने में ज्यादा खर्च नहीं आता और बाग में नमी भी बनी रहती है.
उर्वरक का इस्तेमाल
पहले साल के दौरान हर 2 से 3 महीनों के अंतराल पर में नए पेड़ों में उर्वरक का इस्तेमाल करना चाहिए. 114 ग्राम उर्वरक के साथ शुरुआत कर के प्रति पौधा 455 ग्राम तक बढ़ाना चाहिए. इस के बाद पौधों के बढ़ते आकार के अनुपात में हर साल वर्ष 3 या 4 बार उर्वरक के इस्तेमाल करने में बढ़ोतरी सही होती है, लेकिन हर साल प्रति पौधा उर्वरक 5.4 किलोगाम से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.
उर्वरक मिश्रण में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा 6-10 फीसदी और मैग्नीशियम 4-6 फीसदी रहने से युवा पेड़ों में अच्छे नतीजे मिलते हैं. जिन पेड़ों में फल लगे हों, उन के लए पोटाश को 9-15 फीसदी तक बढ़ाया जाना चाहिए और फास्फोरस को 2-4 फीसदी तक कम किया जाना चाहिए.
घासपात से ढकना
यह प्रक्रिया मिट्टी की नमी को बरकरार रखने में मदद करती है. पेड़ के नीचे जंगली घास की समस्याओं को कम करने देता है और सतह के पास मिट्टी में सुधार में मदद करता है. छाल या लकड़ी के टुकड़े की 2-6 इंच यानी 5-15 सैंटीमीटर परत के साथ पेड़ों की सतह को ढका जा सकता है. इस आवरण को पेड़ के तने से 8-12 इंच यानी 20-30 सैंटीमीटर दूर प्रयोग करना चाहिए, वरना पेड़ का तना सड़ सकता है.
फलों का उत्पादन
इस के पेड़ में फूल फरवरी से अप्रैल माह तक बहुत गरम इलाकों में, कभीकभी सालभर में 5 से 10 फूलों के समूहों में खिलते हैं और फल उत्पादन 90-120 दिन की अवधि के भीतर होते हैं.
फल लगते समय गिबेलिलिक एसिड (10 पीपीएम) के छिड़काव से फलों के आकार अच्छे होते हैं और गूदेदार भी रहते हैं. नए पौधे, जो पहले साल के होते हैं, उन में रोपण के बाद पहले साल 3.6-4.5 किलोग्राम और दूसरे साल 4.5-9.1 किलोग्राम का फल उत्पादन कर सकते हैं.
अच्छी तरह से देखभाल किया गया पेड़ सालाना 9.1-13.6 किलोग्राम तक फल 3 साल में दे सकता है, जो कि 4 साल में 27.2-40.8 किलोग्राम, 5 साल में 49-81.6 किलोग्राम और 6 साल में 90.6-113.4 किलोग्राम दे सकता है.
नीबू के कीट और रोग
नीबू फसल में भी कई तरह के रोग लगते हैं, जिन की देखभाल जरूरी है, वरना फसल खराब हो सकती है और उत्पादन में कमी आ जाती है.
बीजरहित नीबू में निम्न प्रकार के रोग लगते हैं:
डायफोरिना साइट्री
यह पत्तियों और युवा तने पर हमला करता है और पेड़ को गंभीर रूप से कमजोर कर देता है. यह जीवाणु रोग को फैलाता है, जिसे पीला तना रोग के नाम से जाना जाता है. नीबू के पेड़ों के लिए घातक है.
फाइलोकनिस्टिस साइट्रला
इस कीड़े के बच्चे आमतौर पर पत्ती की ऊपरी सतह पर हमला करते हैं. इस वजह से संक्रमित पत्तियां खराब होने लगती हैं और पौधों की बढ़वार रुक जाती है. उत्पादन भी कम होता है.
घुन का हमला
आमतौर पर साइट्रस लाल घुन पत्ती की ऊपरी सतह पर हमला करता है, नतीजतन, वहां पर भूरा, परिगलित क्षेत्र बन जाते हैं. अधिक हमला होने पर पत्ते गिरना शुरू हो जाते हैं. जंग घुन और चौड़ा घुन पत्तियों, फल और तने पर हमला कर सकते हैं. इन कीड़ों से फल का छिलका भूरे रंग का हो जाता है. अधिक प्रकोप की दशा में पत्ते पर सल्फर के छिड़काव से कीड़ों को नियंत्रण किया जा सकता है.
लाल शैवाल कीट से बचें
यह कीड़ा छाल विभाजन और शाखाओं के मरने का कारण बनता है. यह सेफालेउरास विरेसेंस के कारण होता है. मध्य गरमी से बाद की गरमियों तक 1-2 तांबा आधारित कैमिकल का छिड़काव द्वारा शैवाल का नियंत्रण किया जा सकता है.
कोलेटट्रिचम एकुटाटम
इस बीमारी की उपस्थिति सब से ज्यादा बरसात के मौसम में प्रचलित है. इस रोग के शुरुआती लक्षणों में भूरे रंग से, फूलों की पंखुड़ी पर पानी के लथपथ घाव शामिल हैं. उस के बाद पंखुडि़यां नारंगी रंग में बदल जाती हैं और सूख जाती हैं.
प्रमुख कीट रोग
नीबू का तेला : नीबू जाति के पौधों को नीबू का तेला रस चूस कर मार्चअप्रैल माह और बारिश के मौसम के बाद नुकसान पहुंचाता है.
लीफ माइनर: पत्तियों की दोनों सतहों पर चांदी की तरह चमकीली और टेढ़ीमेढ़ी सुरंग बनाती है.
सफेदमक्खी: मार्च से सितंबर माह तक सक्रिय रहने वाला यह कीट भी पत्तियों से रस चूस कर नुकसान पहुंचाता है.
रोकथाम : नीबू का तेला व लीफ माइनर के नियंत्रण के लिए अप्रैल माह में 750 मिलीलिटर मैटासिस्टाक्स 25 ईसी या 625 मिलीलिटर रोगोर 30 ईसी या 500 मिलीलिटर मोनोक्रोटोफास 36 एसएल को 500 लिटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ की दर से छिड़कें.
नीबू की तुड़ाई
फल पकने पर एकएक फल को हाथ से तोड़ा जाता है, लेकिन एक टमटम भी इस्तेमाल किया जा सकता है. सालाना तकरीबन 8-12 बार फल की तुड़ाई होती है. इस का सटीक समय जुलाई से सितंबर माह तक है. 70 फीसदी फसलें मई में तैयार होती हैं. तकरीबन 40 फीसदी फसलों का इस्तेमाल केवल रस के गाढ़ा बनाने के लिए किया जाता है. अपरिपक्व फल रस का उत्पादन नहीं करता है, इसलिए इसे उस समय नहीं तोड़ा जाना चाहिए. बेहतर परिणाम के लिए तभी तोड़ें जब फल एकदम पक जाएं.
फलों की पैदावार
पौधों में सालभर फूल और फल लगते हैं, पर गरमियों के अंत की ओर एक विशिष्ट फलने का उच्चतम स्तर दिखाई देता है. 41 किलोग्राम फलों की पैदावार 2 मीटर लंबे पेड़ों से हासिल की गई है, जबकि साइट्रस जंभूरी पर कलम बांधने से बराबर आकार के पेड़ों में 21 किलोग्राम की पैदावार होती है.
फल का भंडारण
फलों में किसी उपचार की जरूरत नहीं होती है. ताजा फल 6 से 8 हफ्ते के लिए अच्छी स्थिति में रहते हैं. इसलिए इस के रखरखाव में ज्यादा खर्च नहीं आता, लेकिन इस से ज्यादा दिनों तक स्टोर करने के लिए कोल्डस्टोरेज की जरूरत पड़ती है.