Poultry Farming| हमारे देश में अभी भी प्रति व्यक्ति अंडा सेवन व मांस सेवन अन्य विकासशील पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत ही कम है, इसलिए भारत में मुरगीपालन (Poultry Farming) से रोजगार की अपार संभावनाएं हैं.

मुरगीपालन (Poultry Farming) से देश के तकरीबन 6-7 लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है. मुरगीपालन (Poultry Farming) के बहुत से लाभ हैं. इस से परिवार को अतिरिक्त आमदनी, कम खर्च कर के ज्यादा मुनाफा लिया जा सकता है.

अंडे के उत्पादन के लिए ह्वाइट लैग हौर्न सब से अच्छी नस्ल है. इस नस्ल का शरीर हलका होता है और यह प्रजाति जल्दी ही अंडा देना शुरू कर देती है, वहीं मांस उत्पादन के लिए कार्निश व ह्वाइट प्लेमाउथ रौक नस्ल उपयुक्त हैं. ये कम उम्र में अधिक वजन प्राप्त कर लेती हैं. इस नस्ल में आहार को मांस में परिवर्तन करने की क्षमता होती है.

मुरगीपालन (Poultry Farming) के लिए और भी बहुत सी जरूरी बातें हैं, जिन्हें ध्यान में रख कर व्यवसाय करना चाहिए, जैसे मुरगीपालन (Poultry Farming) के स्थान से निकट बाजार की स्थिति व मुरगी उत्पादन की मांग प्रमुख है. मुरगीपालन (Poultry Farming) के स्थान पर मांस व अंडे की खपत जहां ज्यादा होती हो, वह जगह पास हो तो ठीक रहती है.

मुरगीबाड़ा ऊंचाई पर व शुष्क जगह पर बनाना चाहिए. मुरगीबाड़ा में आवागमन की सुविधा होनी चाहिए. मुरगीशाला में स्वच्छ व साफ पानी के साथ बिजली का उचित प्रबंध होना चाहिए. मुरगीबाड़े में अधिक नमी नहीं होनी चाहिए. वहां का तापमान 27 डिगरी सैंटीग्रेड के आसपास ठीक रहता है.

मुरगीशाला पूर्वपश्चिम दिशा में मुख करते हुए बनाना चाहिए. मुरगीशाला में 2 प्रकार की विधि प्रचलित है. पहली, पिंजरा विधि और दूसरी, डीपलिटर विधि.

मुरगीपालन (Poultry Farming) के लिए महत्त्वपूर्ण अंग है मुरगियों की छंटनी नियमित रूप से करते रहना.

मुरगी के उत्पादन रिकौर्ड को देख कर और उस के बाहरी लक्षणों को ध्यान में रखते हुए खराब मुरगियों को हटाया जा सकता है.

मुरगी के आहार में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा के साथसाथ खनिज पदार्थ और विटामिन प्रमुख होते हैं. आहार सामग्री में जरूरी पदार्थ को उचित मात्रा में मिला कर प्रयोग में लाया जाता है.

मुरगियों में होने वाले घातक रोगों में आंतरिक व बाह्य परजीवी प्रमुख हैं, जिन का समय पर ध्यान रखना आवश्यक है, वहीं विषाणु रोग भी अत्यंत घातक हैं. जैसे रानीखेत, चेचक, लिम्फोसाइट, मेरेक्स व इन्फैक्शंस, कोराइजा और ईकोलाई वगैरह.

इन सभी रोगों के अलावा खूनी पेचिश, जो कोक्सीडियोसिस कहलाती है, भी घातक है, इसलिए मुरगीपालन (Poultry Farming) के लिए लगातार विशेषज्ञों से संपर्क में बने रहना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है.

रोगों के बारे में जानकारी व बचाव और इलाज की व्यवस्था करना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. विषाणुजनित रोगों के लिए टीका लगवाएं.

पशुपालन विभाग की ओर से विभिन्न प्रकार के रोगों की रोकथाम के लिए और रोगों के निदान व जांच के लिए यह सुविधा उपलब्ध है.

वहीं दूसरी ओर मुरगी उत्पादन के विपणन के लिए कई सहकारी समितियां भी बनी हैं. उन समितियों के द्वारा भी विपणन किया जा सकता है. अंडों को बाजार में भेजते समय पैकिंग कर ट्रे में ठीक तरीके से भेजना चाहिए.

मुरगी के आवास में विभिन्न प्रकार के उपकरण काम में आते हैं. जैसे, ब्रूडर कृत्रिम प्रकार से गरमी पहुंचाने की पद्धति में लोहे के मोटे तार द्वारा बने हुए पिंजरों में दो या उस से ज्यादा मुरगियों को एकसाथ रखा जाता है.

वहीं डीपलिटर विधि में एक बड़े से मकान के कमरों में सब से पहले धान के छिलके, भूसा  या लकड़ी का बुरादा बिछा दिया जाता है और फिर दड़बा, को मुरगियों के अंडे देने के लिए बनाया जाता है. अन्य उपकरण, जैसे पर्च मुरगियों के बैठने के लिए विशेष लकड़ी या लोहे से बनाया जाता है. आहार व पानी के लिए बरतन आदि.

एक और महत्त्वपूर्ण उपकरण है ग्रीट बौक्स. यह आवश्यक रूप से अंडे देने वाली मुरगियों के लिए रखा जाता है. इस बक्से में संगमरमर के छोटेछोटे कंकड़ रखे जाते हैं.

मुरगीपालन (Poultry Farming) में नए चूजे लाने व उन की देखभाल के लिए कुछ आवश्यक बातों को ध्यान में रखना होता है :

* मुरगीघर को कीटाणुनाशक दवा डाल कर पानी से धोना चाहिए और आंगन पर साफसुथरा बिछावन बिछा कर मुरगीघर का तापमान हीटर से नियंत्रित करना चाहिए.

* चूजों के लिए साफ व ताजा पानी हर समय उपलब्ध रखना होगा.

* चूजों का स्टार्टर दाना रखना सब से महत्त्वपूर्ण है.

* चूजों को समयसमय पर टीके लगवाने चाहिए. पहले दिन ही मोरेक्स रोग का टीका लगवाना चाहिए. इस के साथ ही चेचक का टीका व रानीखेत का दूसरा टीका 6 से 8 सप्ताह में लगवाना होगा.

* कोई भी चूजा मरे, इस के लिए विशेषज्ञों को दिखा कर उचित राय लेनी चाहिए. 8 सप्ताह की उम्र के बाद ग्रोवर दाना देना आवश्यक है, वहीं 19वें सप्ताह से विशेष लकड़ी या लोहे का बना पर्च रखना चाहिए, ताकि मुरगी उस में जा कर अंडे दे सके.

मुरगीपालन (Poultry Farming)

मुरगियों (Poultry Farming) की गरमियों में देखभाल

गरमियों में मुरगी दाना कम खाती है और इस से प्राप्त ऊर्जा का बड़ा हिस्सा उन के शरीर की गरमी बरकरार रखने के लिए खर्च हो जाता है, इसलिए उन का अंडा उत्पादन कम हो जाता है. अंडों का आकार और वजन भी कम हो जाता है. अंडों का कवच यानी छिलका पतला हो जाता है. इन सब के कारण अंडों को बाजार में कम कीमत मिलती है.

सभी विपरीत प्रभाव गरमी के कारण होते हैं, इसलिए गरमी का असर कम करने के लिए ये उपाय करें :

* बाड़े में ज्यादा तादाद में मुरगियां न रखें. इतनी ही मुरगियां रखें, ताकि वहां ज्यादा भीड़ न हो.

* बाड़े के इर्दगिर्द घने, छायादार पेड़ लगाएं.

* मुरगीफार्म के चारों ओर बबूल या मेहंदी या पूरे साल ज्यादातर हरेभरे रहने वाली वनस्पति की बाड़ लगाएं. इस से गरम हवाओं के थपेड़ों की गति कम हो जाती है और मुरगीफार्म के आसपास का वातावरण ज्यादा गरम नहीं होता.

* अगर मुरगीफार्म के आसपास पेड़पौधे नहीं हैं, तो चारों ओर छत से सट कर कम से कम 10-12 फुट चौड़ा हरे रंग के जालीदार कपड़े का मंडप लगवाएं. इस से धूप की तीव्रता कुछ कम होगी और वहां का वातावरण ज्यादा गरम नहीं होगा.

* मुरगीघर की छत ज्यादा गरम नहीं होने वाली चीज से बनी हो, जैसे सीमेंट की चादर, घासफूस, बांस इत्यादि. अगर टिन की छत है, तो ऊपर की सतह पर सफेद रंग लगवाएं. इस से छत ज्यादा गरम नहीं होती और मुरगीघर के भीतरी तापमान में 4 डिगरी सैंटीग्रेड की कमी आती है.

* मुमकिन हो, तो छत के ऊपर टाट या बोरियां बिछा दें और उन को पानी की फुहार छोड़ कर गीला रखें. इस से छत का तापमान कम हो जाता है और मुरगीघर के भीतरी तापमान में 4 से 14 डिगरी सैंटीग्रेड तक कमी आ सकती है. इस का मतलब बाहरी वातावरण का तापमान अगर 44 डिगरी सैंटीग्रेड भी है, तो वह घट कर 30 डिगरी सैंटीग्रेड तक नीचे आ जाएगा.

आगे अगर मुरगीघर के भीतर पंखा या फौगर लगाया गया है, तो यह तापमान और भी 2 से 3 डिगरी सैंटीग्रेड कम किया जा सकता है. आखिर में 27 डिगरी सैंटीग्रेड तक तापमान आ गया, तो वह मुरगियों के लिए काफी हद तक बरदाश्त करने लायक हो जाएगा और मुरगियों को गरमी से तकलीफ नहीं होगी.

* बाड़े के इर्दगिर्द घास की क्यारियां लगवाएं और उन पर फुहार पद्धति से सिंचाई करें, तो आसपास के वातावरण का तापमान काफी कम होगा.

* बाड़े के बगलों पर टाट या बोरियों के परदे लगवाएं और छिद्रधारी पाइप द्वारा उन पर पानी की फुहार दिनभर पड़ती रहे, ऐसी व्यवस्था करें. इस के लिए छत के ऊपर एक पानी की टंकी लगवाएं और वह पाइप उस से जोड़ दें, तो गुरुत्वाकर्षण दबाव से पानी परदों पर गिरता रहेगा. इस से कूलर लगाने जैसा प्रभाव पड़ेगा और मुरगीघर का भीतरी तापमान काफी कम होगा, जो मुरगियों के लिए सुहावना होगा.

* अगर मुरगियां सघन बिछाली पद्धति में रखी हैं, तो भूसे को सुबहशाम उलटपुलट करें.

* मुरगियों को हमेशा ठंडा पानी ही पीने के लिए दें.

* पीने के पानी में इलैक्ट्रोलाइट पाउडर घोल कर दें.

* मुरगियों के दाने को मैश कर के पानी के हलके छींटे मार कर मामूली सा गीला करें. दाने में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाएं, ताकि मुरगियों के शरीर भार में, पोषण स्तर में और अंडों का आकार, छिलका व वजन सामान्य रहें.

* मुरगियों को पीने के पानी में विटामिन सी मिला कर दें.

यदि इस प्रकार प्रबंधन करेंगे, तो मुरगियों को गरमी के प्रकोप से काफी हद तक बचाया जा सकता है और इस से अंडा उत्पादन व आकार और वजन में कमी नहीं होगी. अंडों का छिलका पतला नहीं होगा और वे अनायास नहीं टूटेंगे. साथ ही, नुकसान कम होगा और अंडा उत्पादन व्यवसाय भी किफायती होगा.

अधिक जानकारी के लिए अपने जनपद के कृषि विज्ञान केंद्र और पशुपालन विभाग से संपर्क करें.

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