Cluster Bean : ग्वार एक ऐसी फसल है जिस से बारानी इलाकों में भी उगा कर फायदा लिया जा सकता है. बारानी इलाके वे होते हैं जहां का इलाका शुष्क या असिंचित होता है यानी वहां की खेती बारिश पर आधारित होती है. जरूरत है केवल समय के साथ चलने की इसलिए आज के दौर में खेती के आधुनिक तौरतरीकों को अपना कर खेती करें.
ग्वार की फसल को पौष्टिक चारे के अलावा हरी खाद के लिए भी उगाया जाता है. हरियाणा के अनेक इलाकों में ग्वार की खेती ज्यादातर उस के दानों के लिए की जाती है.
ग्वार में गोंद होने की वजह से इस बारानी फसल का औद्योगिक महत्त्व भी बढ़ता जा रहा है. भारत से करोड़ों रुपए का गोंद विदेशों को बेचा जाता है. ग्वार की उन्नत किस्मों में 30 से 35 फीसदी तक गोंद की मात्रा होती है.
गंवई इलाकों में ग्वार की फलियों के साथसाथ फूलों का साग बना कर खाने में इस्तेमाल किया जाता है. अब तो शहरों में भी ग्वार की फलियों को सब्जी के रूप में बहुत से लोग पसंद करते हैं.
ग्वार की फली (Cluster Bean) का बाजार भाव भी अच्छा मिलता है, इसलिए किसानों को चाहिए कि वह ग्वार की खेती करते समय जागरूक रहें और अपने इलाके के मुताबिक उन्नत किस्मों के बीजों का इस्तेमाल करें, जिस से बेहतर पैदावार मिल सके.
ग्वार की अच्छी पैदावार के लिए रेतीली दोमट मिट्टी वाली जमीन अच्छी रहती है. हालांकि हलकी जमीन में भी इसे पैदा किया जा सकता है, परंतु कल्लर (ऊसर) जमीन इस के लिए ज्यादा ठीक नहीं है.
जमीन की तैयारी : सब से पहले 2-3 जुताई कर के खेत को तैयार करें. खेत की जमीन एकसार करने के साथसाथ खरपतवारों का भी खत्मा कर दें.
बोआई का समय : जल्दी तैयार होने वाली फसल के लिए जून के दूसरे पखवारे में बोआई करें. इस के लिए एचजी 365, एचजी 563, एचजी 2-20, एचजी 870 और एचजी 884 किस्मों को बोएं.
देर से तैयार होने वाली फसल के लिए एचजी 75, एफएस 277 की मध्य जुलाई में बोआई करें. अगेती किस्मों के लिए बीज की मात्रा 5-6 किलोग्राम प्रति एकड़ और मध्य अवधि के लिए बीज 7-8 किलोग्राम प्रति एकड़ की जरूरत होती है. बीज की किस्म और समय के मुताबिक ही बीज बोएं.
फसल बोने से पहले मिट्टी की जांच जरूर करा लें ताकि खाद व उर्वरक देने की मात्रा भी जरूरत के मुताबिक दी जा सके.
खरपतवारों की रोकथाम : बीज बोने के एक माह बाद खेत की निराईगुड़ाई करें. अगर बाद में भी जरूरत महसूस हो तो 15-20 दिन बाद दोबारा एक बार और खरपतवार निकाल दें.
गुड़ाई करने के लिए हाथ से चलने वाले कृषि यंत्र हैंडह्वील (हो) से कर देनी चाहिए. ‘पूसा’ पहिए वाला हो वीडर बहुत ही साधारण प्रकार का कम कीमत यंत्र है. इस यंत्र से खड़े हो कर निराईगुड़ाई की जाती है. इस का वजन तकरीबन 8 किलोग्राम है. इस यंत्र को आसानी से फोल्ड कर के कहीं भी लाया व ले जाया जा सकता है.
इस यंत्र को खड़े हो कर आगेपीछे धकेल कर चलाया जाता है. निराईगुड़ाई के लिए लगे ब्लेड को गहराई के अनुसार ऊपरनीचे किया जा सकता है. पकड़ने में हैंडल को भी अपने हिसाब से एडजस्ट कर सकते हैं. यह कम खर्चीला यंत्र है.
खेत में पानी : आमतौर पर इस दौरान मानसून का समय होता है और पानी की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन अगर बारिश न हो और खेत सूख रहे हों तो फलियां बनते समय हलकी सिंचाई जरूर करें.
फसल कटाई: जब फसल की पत्तियां पीली पड़ कर झड़ने लगें और फलियों का रंग भी भूरा होने लगे तो फसल की कटाई करें और कटी फसल को धूप में सूखने के लिए छोड़ दें. जब कटी फसल सूख जाए तो इस की गहाई करें और दानों को सुखा कर रखें.
अगर फसल में कीट बीमारी का हमला दिखाई दे तो कीटनाशक छिड़कें और कुछ दिनों तक पशुओं को खिलाने से परहेज करें.
चारे के लिए Cluster Bean की खास किस्में
ग्वार (एचएफजी 156) : ग्वार ( Cluster Bean ) एक पौष्टिक चारा फसल होने के साथसाथ मिट्टी की पैदावार कूवत भी बढ़ाती है. इस को अकेले या ज्वारबाजरा के साथ भी बोया जा सकता है.
चारे के लिए किस्म (एचएफजी 156) : यह एक लंबी अनेक शाखाओं वाली फसल है. पत्तियों के किनारे कटे हुए होते हैं. यह किस्म 70 दिन में तैयार हो जाती है. इस किस्म की बोआई अप्रैल से मध्य जुलाई तक करनी चाहिए.
अगेती फसल में सिंचित हालात में अच्छी बढ़त होती है. वर्षाकालीन फसल जो जुलाई में बोई जाती है, वह किस्म पर निर्भर होती है. एचएफजी 156 की बोआई में बीज की मात्रा 16 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से लगती है.
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, (हरियाणा) के चारा अनुभाग के जरीए कुछ उन्नत किस्मों की जानकारी
ये हैं ग्वार की कुछ खास उन्नत किस्में
एफएस 277 : यह किस्म बिना शाखाओं वाली सीधी व लंबी बढ़ने वाली है. साथ ही, देर से पकने वाली किस्म है. यह मिश्रित खेती के लिए अच्छी मानी गई है. इस की बीज की पैदावार 5.5-6.0 क्विंटल प्रति एकड़ है.
एचजी 75 : शाखाओं वाली यह किस्म रोग के प्रति सहनशील और देर से पकने वाली है. इस के बीज की पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ है.
एचजी 365 : यह कम शाखाओं वाली जल्दी पकने वाली किस्म है. यह किस्म 85-100 दिनों में पक जाती है और औसतन पैदावार 6.5-7.5 क्विंटल प्रति एकड़ है. इस किस्म के बोने के बाद आगामी रबी फसल आसानी से ली जा सकती है.
एचजी 563 : Cluster Bean की इस किस्म पकने में 85-100 दिन लेती है. इस के पौधों पर फलियां पहली गांठ व दूसरी गांठ से ही शुरू हो जाती हैं. इस का दाना चमकदार और मोटा होता है. इस किस्म की पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति एकड़ है.
एचजी 2-20 : ग्वार की यह किस्म पूरे भारत में साल 2010 में अनुमोदित की गई है. 90-100 दिन में पकने वाली इस किस्म की फलियां दूसरी गांठ से शुरू हो जाती हैं और इस की फली में दानों की तादाद आमतौर पर दूसरी किस्मों से ज्यादा होती है व दाना मोटा होता है. इस किस्म की औसत पैदावार 8-9 क्विंटल प्रति एकड़ है.
एचजी 870 : ग्वार की इस किस्म को साल 2010 में हरियाणा के लिए अनुमोदित किया गया. पकने का समय 85-100 दिन. दाने की पैदावार 7.5-8 क्विंटल प्रति एकड़. गोंद की औसत मात्रा 31.34 फीसदी तक.
एचजी 884 : ग्वार ( Cluster Bean) की इस किस्म को पूरे भारत के लिए साल 2010 में अनुमोदित किया गया था. यह 95-110 दिन में पकती है. मोटे दाने, दाने की पैदावार 8 क्विंटल प्रति एकड़ व गोंद की औसत मात्रा 29.91 फीसदी तक है.