उदयपुर : 21 फरवरी, 2025 को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी से संबद्ध सभी कृषि विज्ञान केंद्रों (Agricultural Science Centers) को आईएसओ 9001: 2015 प्रमाणपत्र मिलने के साथ ही प्रसार शिक्षा निदेशालय को भी इस उपलब्धि से नवाजा गया. अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आईएसओ) प्रमाणपत्र मिलने से वैश्विक स्तर पर प्रसार सेवाओं को न केवल बढ़ावा मिलेगा, बल्कि किसानों का और अधिक जुड़ाव होगा.
कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने यह जानकारी देते हुए बताया कि एमपीयूएटी के इतिहास में यह उपलब्धि मील का पत्थर साबित होगी. आईएसओ प्रमाणपत्र मिलने से एमपीयूएटी की देशविदेश में ख्याति बढ़ेगी. साथ ही, केवीके की प्रतिष्ठा, विश्वसनीयता, कर्मचारी सहभागिता, कानून व नियमों की अनुपालना और वैश्विक व्यापार में भी बढ़ोतरी होगी.
इन केवीके को मिला आईएसओ प्रमाणपत्र
कृषि विज्ञान केंद्र – बोरवट फार्म- बांसवाड़ा, रिठोला- चित्तौड़गढ़, फलोज- डूंगरपुर, बसाड़- प्रतापगढ़, धोइंदा- राजसमंद और सियाखेड़ी- उदयपुर द्वितीय. सुवाणा- भीलवाड़ा प्रथम और अरणियाघोड़ा- भीलवाड़ा द्वितीय को पहले ही आईएसओ प्रमाणपत्र मिल चुका है. इस तरह प्रसार शिक्षा निदेशालय को भी यह प्रमाणपत्र दिया गया है.
ये गतिविधियां बनीं मुख्य आधार
प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्रों पर हालांकि किसान हित से जुड़ी अनेकों गतिविधियां संचालित होती हैं, लेकिन भीलवाड़ा की तर्ज पर सभी आईएसओ प्राप्त केवीके में विभिन्न प्रदर्शन इकाईयां जैसे सिरोही बकरी, प्रतापधन मुरगी, डेयरी, चूजापालन, वर्मी कंपोस्ट, वर्मीवाश, प्राकृतिक खेती इकाई, नर्सरी, नेपियर घास, वर्षा जल संरक्षण इकाई, बायोगैस, मछलीपालन, कम लागत से तैयार हाइड्रोपौनिक, हरा चारा उत्पादन इकाई, आंवला, अमरूद एवं नीबू का मातृवृक्ष बगीचा, बीजोत्पादन एवं क्राप केफैटेरिया आदि के माध्यम से किसान समुदाय के लिए समन्वित कृषि प्रणाली के उद्यम स्थापित कर, स्वरोजगार पैदा कर एवं आजीविका को सुदृढ कर आत्मनिर्भर किया जा रहा है.
ऐसे में किसानों का गांव से शहरों की ओर पलायन कम हुआ है. यही नहीं, किसान समुदाय के फसल उत्पादन और अन्य कृषि उत्पादों का समय पर विपणन होने से आमदनी में भी इजाफा हुआ है. इस के अलावा कृषि विज्ञान केंद्रों में समयसमय पर किसान मेलों, किसानवैज्ञानिक संवाद, किसान गोष्ठी, जागरूकता कार्यक्रम, महत्वपूर्ण दिवस, प्रदर्शन आदि प्रसार गतिविधियों का आयोजन कर कृषि नवाचार की सफल तकनीकियों का हस्तांतरण किया जा रहा है.