Mango Orchards : आम की बागबानी में स्वस्थ्य और अच्छी उपज लेने के लिए कीटरोगों की रोकथाम समय रहते कर देनी चाहिए अन्यथा आम की मिठास कड़वाहट में बदलने में समय नहीं लगेगा.

कीड़ों की रोकथाम

भुनगा: इस कीट के बच्चे व वयस्क दोनों ही मुलायम टहनियों, पत्तियों व फूलों का रस चूसते हैं. इस की वजह से फूल सूख कर गिर जाते हैं. यह कीट एक प्रकार का मीठा पदार्थ निकालता है, जो पेड़ों की पत्तियों, टहनियों आदि पर लग जाता है. इस मीठे पदार्थ पर काली फफूंदी पनपती है, जो पत्तियों पर काली परत के रूप में फैल कर पेड़ों के प्रकाश संश्लेषण पर खराब असर डालती है.

इलाज : बाग से खरपतवार हटा कर उसे साफसुथरा रखें. घने बाग की कटाईछंटाई दिसंबर में करें. बौर फूटने के बाद बागों की बराबर देखभाल करें. पुष्पगुच्छ की लंबाई 8-10 सेंटीमीटर होने पर भुनगे का प्रकोप होता है. इस की रोकथाम के लिए 0.005 फीसदी इमिडा क्लोप्रिड का पहली बार छिड़काव करें. 0.005 फीसदी थायामेथोक्लाज या 0.05 फीसदी प्रोफेनोफास का दूसरा छिड़ाकाव फल लगने के बाद करें.

गुजिया: इस के बच्चे और वयस्क पत्तियों व फूलों का रस चूसते हैं. जब इन की तादाद ज्यादा हो जाती है, तो इन के द्वारा रस चूसे जाने के कारण पेड़ों की पत्तियां व बौर सूख जाते हैं और फल नहीं लगते हैं. इस कीट का हमला दिसंबर से मई महीने तक देखा जाता है.

इलाज : खरपतवारों और अन्य घासों को नवंबर में जुताई द्वारा बाग से निकालने से सुप्तावस्था में रहने वाले अंडे धूप, गरमी व चीटियों द्वारा नष्ट हो जाते हैं. दिसंबर के तीसरे हफ्ते में पेड़ के तने के आसपास 250 ग्राम क्लोरपाइरीफास चूर्ण 1.5 फीसदी प्रति पेड़ की दर से मिट्टी में मिला देने से अंडों से निकलने वाले निम्फ मर जाते हैं. पालीथीन की 30 सेंटीमीटर चौड़ी पट्टी पेड़ के तने के चारों ओर जमीन की सतह से 30 सेंटीमीटर ऊंचाई पर दिसंबर के दूसरेतीसरे हफ्ते में गुजिया के निकलने से पहले लपेटने से निम्फों का पेड़ों पर ऊपर चढ़ना रुक जाता है. पट्टी के दोनों सिरों को सुतली से बांधना चाहिए. इस के बाद थोड़ी ग्रीस पट्टी के निचले घेरे पर लगाने से गुजिया को पट्टी पर चढ़ने से रोका जा सकता है. यह पट्टी बाग में मौजूद सभी आम के पेड़ों व अन्य पेड़ों पर भी बांधनी चाहिए. अगर किसी वजह से यह विधि नहीं अपनाई गई और गुजिया पेड़ पर चढ़ गई, तो ऐसी हालत में 0.05 फीसदी कार्बोसल्फान 0.2 मिलीलीटर प्रति लीटर या 0.06 फीसदी डायमेथोएट 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर का छिड़काव करें.

Mango Orchards

पुष्प गुच्छ मिज : आम के पेड़ों पर मिज के प्रकोप से 3 चरणों में हानि होती है. इस का पहला प्रकोप कली के खिलने की अवस्था में होता है. नए विकसित बौर में अंडे दिए जाने व लार्वा द्वारा बौर के मुलायम डंठल में घुसने से बौर पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं. इस का दूसरा प्रकोप फलों के बनने की अवस्था में होता है. फलों में अंडे देने व लार्वा के घुसने की वजह से फल पीले हो कर गिर जाते हैं. तीसरा प्रकोप बौर को घेरती हुई पत्तियों पर होता है.

इलाज : अक्तूबर व नवंबर में बाग में की गई जुताई से मिज की सूंडि़यों के साथ सोए पड़े प्यूपे भी नष्ट हो जाते हैं. जिन बागों में इस कीट का हमला होता रहा है, वहां बौर फूटने पर 0.06 फीसदी डायमेथोएट का छिड़काव करना चाहिए. अप्रैलमई में 250 ग्राम क्लोरपाइरीफास चूर्ण प्रति पेड़ के हिसाब से छिड़काव करने पर पेड़ के नीचे सूंडि़यां नष्ट हो जाती हैं. फरवरी में भुनगे के लिए किए जाने वाले कीटनाशी के छिड़काव से इस कीट की भी अपनेआम रोकथाम हो जाती है.

डासी मक्खी : वयस्क मक्खियां अप्रैल में जमीन से निकल कर पके फलों पर अंडे देती हैं. 1 मक्खी 150 से 200 तक अंडे देती है. 2-3 दिनों के बाद सूंडि़यां अंडों से निकल कर गूदे को खाना शुरू कर देती हैं.

इलाज : इस कीट के असर को कम करने के लिए सभी गिरे हुए व मक्खी के प्रकोप से ग्रसित फलों को इकट्ठा कर के नष्ट कर देना चाहिए. पेड़ों के आसपास सर्दी के मौसम में जुताई करने से जमीन के अंदर के प्यूपों को नष्ट किया जा सकता है. काठ से बने यौनगंध ट्रैप को पेड़ पर लगाना इस की रोकथाम में बहुत कारगर है. इस ट्रैप के लिए प्लाईवुड के 5×5×1 सेंटीमीटर आकार के गुटके को 48 घंटे तक 6:4:1 के अनुपात में अल्कोहल, मिथाइल यूजिनाल, मैलाथियान के घोल में भिगो कर लगाना चाहिए. यौनगंध ट्रैप को 2 महीने के अंतर पर बदलना चाहिए. 10 ट्रैप प्रति हेक्टेयर लटकाने चाहिए.

रोगों की रोकथाम

पाउडरी मिल्ड्यू (खर्रा, दहिया) : इस रोग के लक्षण बौरों, पत्तियों व नए फलों पर देखे जा सकते हैं. इस रोग का खास लक्षण सफेद कवक या चूर्ण के रूप में जाहिर होता है. नई पत्तियों पर यह रोग आसानी से दिखता है, जब पत्तियों का रंग भूरे से हलके हरे रंग में बदलता है. नई पत्तियों पर ऊपरी और निचली सतह पर छोटे सलेटी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो निचली सतह पर ज्यादा होते हैं. बौरों पर यह रोग सफेद चूर्ण की तरह दिखाई पड़ता है और बौरों में लगे फूलों के झड़ने की वजह बनता है. इस रोग की वजह से फूल नहीं खिलते हैं और समय से पहले ही झड़ जाते हैं. नए फलों पर पूरी तरह सफेद चूर्ण फैल जाता है और मटर के दाने के बराबर हो जाने के बाद फल पेड़ से झड़ जाते हैं.

इलाज : पहला छिड़काव 0.2 फीसदी घुलनशील गंधक का घोल बना कर उस समय करना चाहिए, जब बौर 3-4 इंच का होता है. दूसरा छिड़काव 0.1 फीसदी डिनोकोप का होना चाहिए, जो पहले छिड़काव के 15-20 दिनों के बाद हो. दूसरे छिड़काव के 15-20 दिनों के बाद तीसरा छिड़काव 0.1 फीसदी ट्राईडीमार्फ का होना चाहिए.

एंथ्रेकनोज : यह रोग पत्तियों, टहनियों और फलों पर देखा जा सकता है. पत्तियों की सतह पर पहले गोल या अनियमित भूरे या गहरे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं. प्रभावित टहनियों पर पहले काले धब्बे बनते हैं और फिर पूरी टहनी सलेटी रंग की हो जाती है. पत्तियां नीचे की ओर झुक कर सूखने लगती हैं और बाद में गिर जाती हैं. बौर पर सब से पहले पाए जाने वाले लक्षण हैं, गहरे भूरे रंग के धब्बे, जो कि फूलों पर जाहिर होते हैं. बौर व खिले फूलों पर छोटे काले धब्बे उभरते हैं, जो धीरेधीरे फैलते हैं और आपस में जुड़ कर फूलों को सुखा देते हैं. ज्यादा नमी होने पर यह रोग तेजी से फैलता है.

इलाज : सभी रोगग्रसित टहनियों की छंटाई कर देनी चाहिए और बाग में गिरी हुई पत्तियों, टहनियों और फलों को इकट्ठा कर के जला देना चाहिए. मंजरी संक्रमण को रोकने केलिए 0.1 फीसदी कार्बेंडाजिम का 15 दिनों के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करना चाहिए. संक्रमण को रोकने के लिए 0.3 फीसदी कापर आक्सीक्लोराइड का छिड़काव भी लाभकारी है. 0.1 फीसदी थायोफनेट मिथाइल या 0.1 फीसदी कार्बेंडाजिम का बाग में फल तोड़ाई से पहले छिड़काव करने से गुप्त संक्रमण को कम किया जा सकता है.

उल्टा सूखा रोग : टहनियों का ऊपर से नीचे की ओर सूखना इस रोग का मुख्य लक्षण है. विशेष तौर पर पुराने पेड़ों में बाद के पत्ते सूख जाते हैं, जो आग से झुलसे हुए से मालूम पड़ते हैं. शुरू में नई हरी टहनियों पर गहरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. जब ये धब्बे बढ़ते हैं, तब नई टहनियां सूख जाती हैं. ऊपर की पत्तियां अपना हरा रंग खो देती हैं और धीरेधीरे सूख जाती हैं. इस रोग का ज्यादा असर अक्तूबरनवंबर में दिखाई पड़ता है.

इलाज : छंटाई के बाद गाय का गोबर व चिकनी मिट्टी मिला कर कटे भाग पर लगाना फायदेमंद होता है. संक्रमित भाग में 3 इंच नीचे से छंटाई के बाद बोर्डो मिक्चर 5:5:50 या 0.2 फीसदी कापर आक्सीक्लोराइड का छिड़काव रोग की रोकथाम में बेहद कारगर होता है.

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