Mango | आम्रपाली व जनार्दन पसंद किस्मों के संकरण से विकसित इस किस्म को साल 2000 में संस्थान द्वारा पेश किया गया. इस का पेड़ कम फैलाव लिए हुए और कम शाखाओं वाला होता है. नियमित फलत वाली यह किस्म मौसम में देर से तैयार होती है. इस के फल का आकार तिरछा व अंडाकार होता है और औसत वजन 250-350 ग्राम होता है. तैयार होने पर इस के फल का रंग बैगनीहरा होता है. पकने पर यह चमकीला पीला व लाल हो जाता है. पके हुए फल का गूदा कम रेशे वाला व सख्त होता है. इस का गूदा नारंगीपीला होता है. 10 साल की अवस्था होने पर इस का औसत फल उत्पादन 80 किलोग्राम प्रति पेड़ तक होता है. विदेशी बाजार में इस के निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं.
अरुनिका : इस के पेड़ का आकार बौना होता है. यह नियमित फलत वाली किस्म है, जिस में ऐंथ्रेकनोज को सहने की कूवत होती है. इस के फल आकर्षक होते हैं और गूदा सख्त होता है. 10 साल की अवस्था होने पर इस का औसत फल उत्पादन 60 किलोग्राम प्रति पेड़ तक होता है. विदेशी बाजार में इस के निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं.
दशहरी : लखनऊ के पास दशहरी गांव में हुई उत्पत्ति के कारण इस किस्म को दशहरी नाम से जाना जाता है. दशहरी उत्तर भारत की खास व्यावसायिक किस्म है और देश के उम्दा आमों में इस का खास स्थान है. इस का फल आकार में मध्यम व लंबा होता है. इस का औसत वजन 200-250 ग्राम होता है. इस के पके फलों का रंग पीला होता है, जो मध्य मौसम में पकते हैं. इस के फलों की गुणवत्ता अच्छी व भंडारण कूवत मध्यम होती है.
लंगड़ा : उत्तर भारत के बनारस, गोरखपुर व बिहार क्षेत्र में उगाई जाने वाली आम की इस किस्म के फल मध्यम, अंडाकार व हलके हरेपीले रंग के होते हैं. इस के फल मध्यम मौसम में पकते हैं. फलों की गुणवत्ता उत्तम और भंडारण कूवत मध्यम होती है. इस के फलों में मिठास व खटास का अच्छा मिश्रण होता है, जिस से यह बेहद स्वादिष्ठ किस्म मानी जाती है. साथ ही फलों में गूदे की मात्रा ज्यादा व गुठली पतली होती है. बिहार में इसे मालदा नाम से भी जाना जाता है.
चौसा : आम की इस किस्म की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के संडीला नामक स्थान में एक तालुकेदार के बाग में संयोगवश एक बीजू पेड़ के रूप में हुई. इस की खास महक व स्वाद के कारण इसे भारत के उत्तरी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है. इस के फल बड़े, चपटे व अंडाकार होते हैं. इस के फलों का रंग हलका पीला होता है और गुणवत्ता अच्छी होती है. इस के फल रसीले होते हैं. आम की यह किस्म देर में पक कर तैयार होती है.
आम्रपाली : आम की यह किस्म दशहरी व नीलम से विकसित की गई है. इस के पेड़ बौने होते हैं और फल देर में पकते हैं. इस के फल मध्यम आकार के और स्वादिष्ठ होते हैं. फलों की भंडारण कूवत अच्छी होती है. यह किस्म सघन बागबानी के लिए अच्छी है. 1 हेक्टेयर में इस किस्म के 1600 पौधे लगाए जा सकते हैं, जो 5 साल के बाद 16 टन प्रति हेक्टेयर फल देने की कूवत रखते हैं. ज्यादा विटामिन ‘ए’ व छोटे आकार के कारण गृह वाटिका में इस का खास महत्त्व है.
मल्लिका : आम की यह संकर किस्म नीलम और दशहरी के संकरण से विकसित की गई. इस के फल पीले और मध्यम बड़े आकार के होते हैं. इस के फल का औसत भार 300 ग्राम होता है. फलों में गूदे की मात्रा काफी होती है व गुठली पतली होती है. इस के फलों की गुणवत्ता व भंडारण कूवत अच्छी है. यह देर से तैयार होने वाली किस्म है. आंध्र प्रदेश व कर्नाटक आदि राज्यों में इस की व्यावसायिक खेती बढ़ रही है. यह किस्म प्रसंस्करण के लिए अच्छी है.