Ploughing | जब हम खेतखलिहान की बात करते हैं, तो हमें खेत की तैयारी से ले कर फसल की कटाई, गहाई और उपज भंडारण तक के कई स्तरों से हो कर गुजरना पड़ता है. खेती का हर काम समय पर किया जाना बहुत ही जरूरी है, इसलिए अच्छी फसल पाने व खेती को फायदे का सौदा बनाने के लिए बेहद जरूरी है कि तय समय व योजना के मुताबिक खेतीकिसानी के काम किए जाएं.
मौजूद जमीन जलवायु व संसाधनों के अनुसार फसलों व उन की प्रमाणित किस्मों का चयन, सही समय पर सही तकनीक से बोआई, मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल की क्रांतिक अवस्थाओं पर सिंचाई, खरपतवार, कीट व रोग नियंत्रण के जरूरी उपाय व समय पर कटाई, गहाई, उपज का सुरक्षित भंडारण तथा विपणन जितना जरूरी है, उतना ही खेत की समय पर जुताई भी जरूरी है.
रबी फसल की कटाई होने के साथ ही खेत खाली हो जाते हैं. ऐसे में खेत में कीट व रोग पर काबू पाने के लिए ग्रीष्मकालीन जुताई का खास महत्त्व है, इसलिए खेत की गहरी जुताई कर के आगामी खरीफ की अच्छी पैदावार ली जा सकती है.
खेत की तैयारी में गरमी की जुताई व पलटाई का खास योगदान होता है, क्योंकि इस से जमीन में 1 फुट नीचे मौजूद कड़ी परत टूट जाती है व इस से तमाम कीट व खरपतवार के बीज भी खत्म हो जाते हैं. इस के अलावा मिट्टी में पानी सोखने की कूवत भी बढ़ती है. मिट्टी नरम होने से जड़ों का विकास होता है. इस तरह से खेत की उत्पादन कूवत में बढ़ोतरी होती है.
ग्रीष्मकालीन जुताई 15 सेंटीमीटर गहराई तक किसी भी मिट्टी पलटने वाले हल से करें. जुताई हमेशा खेत के ढलान की उलटी दिशा में ढलान को काटते हुए करनी चाहिए, जिस से बरसात का पानी व मिट्टी नहीं बहे. मिट्टी के बड़ेबड़े ढेले रहने चाहिए व मिट्टी भुरभुरी न हो, इस बात का खास ध्यान रखें.
गहरी जुताई के लिए एक विशेष यंत्र रेवल ट्रिपल मोल्ड प्लाऊ का इस्तेमाल करें. इस के अलावा डिश प्लाऊ और मिट्टी पलटने वाले हल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है. जुताई के लिए मध्य अप्रैल से 15 मई तक का समय ठीक रहता है.
जुताई करने के बाद 4 से 5 हफ्ते तक खेत को खुला छोड़ दें. मानसून की पहली बारिश तक खेत को खुला रखें. बारिश होने से हफ्तेभर पहले खुले खेत में देशी खाद व गोबर भी डाल सकते हैं. बारिश होने पर खेत की जुताई करें.
गौरतलब है कि जुताई करने से मिट्टी में मौजूद कीटपतंगे मिट्टी की ऊपरी सतह पर आ जाते हैं. मईजून की तेज गरमी से कीटपतंगे खत्म हो जाते हैं. इस से खरपतवार की समस्या भी नहीं रहती है व खेत की जल ग्रहण कूवत बढ़ती है. मिट्टी में मौजूद जरूरी पोषक तत्व फसल को सही मात्र में मिलने लगते हैं. मिट्टी के ऊपरनीचे होने से मिट्टी के क्षारीय व अम्लीय गुण बराबर हो जाते हैं. इस से उत्पादन कूवत में बढ़ोतरी होती है व मिट्टी नरम होने से पौधे की जड़ का अच्छा विकास होता है.
खेतीबारी के माहिर भी किसानों को गरमी में खाली पडे़ खेतों की गहराई से जुताई करने की सलाह देते हैं. खेतीबारी के माहिर रामराय जाट का कहना है कि इस से फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले रोगाणु कीटों के अंडे ऊपरी सतह पर आ जाते हैं और गरमी से खत्म हो जाते हैं.
उन्होंने बताया कि रोगाणु, रोगजनक कीड़े, खरपतवारों के बीज वगैरह फसल की कटाई के बाद जमीन की दरारों में सोते से पड़े रहते हैं. जब अगली फसल की बोआई की जाती है, तो अनुकूल मौसम मिलने पर ये सक्रिय हो कर फसल को जम कर नुकसान पहुंचाना शुरू कर देते हैं.
रामराय जाट ने आगे बताया कि इस के अलावा जमीन को गहराई से जोतने पर जल संरक्षण भी होगा. फसल की बोआई के समय बारबार एक तय गहराई तक कल्टीवेटर चलाने से खेतों में नीचे एक कड़ी परत बन जाती है, जिस से बारिश का पानी खेत के बाहर चला जाता है और अपने साथ मिट्टी और पोषक तत्वों को बहा ले जाता है.
गरमी की जुताई 9 से 15 इंच तक मिट्टी पलटने वाले हल से करने पर यह कड़ी परत टूट जाती है और वर्षाजल खेत में अधिक मात्रा में सोख लिया जाता है. मिट्टी भी धूप लगने से भुरभुरी हो जाती है. इस में वायु संचार बढ़ जाता है और खेत की जलधारण कूवत में बढ़ोतरी हो जाती है. इस के अलावा जुताई से खरपतवार भी नष्ट होते हैं और मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है.