हमारे देश के ज्यादातर किसान खेती करने के साथसाथ गायभैंस भी पालते हैं, जिस से उन्हें अलग से अच्छीखासी कमाई होती है. गायभैंसों से ज्यादा दूध लेना ही हर किसान का मकसद होता है, लेकिन कुछ किसान ही अपनी गायभैंसों से अच्छा दूध ले पाते हैं. और उन की गायभैंसें भी सेहतमंद नहीं रहती हैं.
गायभैंस के ब्याते समय देखभाल :
आमतौर पर गायभैंसें ब्याने में आधा घंटे से ले कर 3 घंटे तक का समय लेती हैं. अगर गायभैंसें ब्याने में इस से ज्यादा समय लें, तो फौरन पशु चिकित्सक को बुला कर दिखाएं.
अगर गाय या भैंस का नवजात बच्चा (बछिया, बछड़ा या कटिया, कटरा) पैदा होने के 30 सैकंड बाद भी सांस लेना शुरू नहीं करता है तो उसे कृत्रिम सांस (आर्टिफिशियल सांस) दिलाएं. नवजात बच्चे की छाती को धीरेधीरे दबाएं और पिछले हिस्से को उठा लें. ऐसा करने से बच्चा सांस लेना शुरू कर देगा.
नवजात बच्चा पैदा होने के 2-3 घंटे बाद पहला गोबर करता है. अगर नवजात बच्चा पैदा होने के 2-3 घंटे बाद गोबर नहीं करता है, तो उसे 30 मिलीलिटर अरंडी का तेल पिला दें.
नवजात बच्चे के जिस्म पर (ब्याने के फौरन बाद) लगा लसलसा पदार्थ आमतौर पर मां (गाय या भैंस) चाट कर साफ कर देती है. अगर लसलसा पदार्थ नवजात बच्चे की मां चाट कर ठीक से साफ नहीं करती है तो ऐसी हालत में उसे साफ, सूखे कपड़े से पोंछ दें.
आमतौर पर गायभैंसें ब्याने के 2-4 घंटे बाद जेर गिरा देती हैं, लेकिन कभीकभी वे 8-12 घंटे तक का समय जेर गिराने में लेती हैं.
अगर गायभैंसें ब्याने के 8-12 घंटे बाद भी जेर नहीं डालती हैं तो इस का मतलब जेर रुक गई है. ऐसी हालत में फौरन पशुओं के डाक्टर या किसी माहिर से बच्चेदानी में फ्यूरिया जैसी दवा डलवाएं.
अगर गायभैंसें ब्याने के 30 घंटे बाद भी जेर नहीं गिराती हैं, तो पशुओं के डाक्टर से उसे निकलवाएं. ब्याई गई गाय या भैंस को पहले 5 दिनों तक 100 मिलीलिटर बच्चेदानी की सफाई वाली दवा दिन में 2 बार पिलाएं.
बच्चे (बछिया, बछड़ा या कटिया या कटरा) के पैदा होते ही उस की टुंडी यानी नाभि पर एंटीसैप्टिक यानी टिंचर आयोडीन, डेटोल या हलदी पाउडर लगाएं.
पैदा हुए बच्चे को खीस (पेवसी/पहला दूध) जल्द ही पिला दें. खीस की खुराक बच्चे के जिस्म के 1/10वें हिस्से के बराबर रखें यानी 10 किग्रा के बच्चे को 1 लिटर खीस पीने को दें और 30 किग्रा के बच्चे को 3 लिटर खीस पिलाएं.
यह खीस बच्चे के लिए बहुत ही पौष्टिक आहार है. खीस में ऐसी खासीयत होती है, जो बच्चे को बीमारियों से बचाती है. यह बच्चे में बीमारी से लड़ने की कूवत पैदा करती है. खीस पिलाने से बच्चा बचपन से ही तंदुरुस्त रहता है.
बीमार से बचाव :
अक्तूबनवंबर माह में सर्दी पड़ना शुरू हो जाता है, ऐसे में बच्चे और उस की मां को सर्दी से बचाएं. बच्चे को सेहतमंद रखने के लिए और कब्ज से बचाने के लिए समयसमय पर 30-40 मिलीलिटर अरंडी का तेल पिलाते रहें.
जब बच्चे की उम्र 3 महीने की हो जाए तो उसे खुरपकामुंहपका बीमारी से बचाव का टीका लगवाएं. 6 महीने से ज्यादा उम्र वाले पशुओं को खुरपकामुंहपका, गलघोंटू और लंगरिया बीमारियों को रोकने वाला टीका लगवाएं.
चारा और पूरक आहार :
गाय और भैंस को हर 3 लिटर व ढाई लिटर दूध के हिसाब से 1 किलोग्राम राशन दें. जो गायभैंसें दूध नहीं दे रही हैं, उन्हें हर दिन 1 किलोग्राम राशन देना चाहिए.
गायभैंसों को 70 फीसदी हरा चारा और 30 फीसदी सूखा चारा देना चाहिए. तकरीबन 100 किलोग्राम वजन वाली गाय को 2.5 किलोग्राम और भैंस को 3 किलोग्राम सूखी खुराक की जरूरत होती है. इस में दोतिहाई चारा और एकतिहाई दाना देना चाहिए.
हरे चारे में कम से कम 11-12 फीसदी प्रोटीन होना चाहिए और दाने में 18-20 फीसदी प्रोटीन जरूरी है. सभी पशुओं को संतुलित मात्रा में प्रोटीन देना जरूरी होता है.
पशुओं को संतुलित मात्रा में चारादाना दिन में 2 बार 8-10 घंटे के अंतराल पर दें. इस के अलावा 2 बार साफ ताजा पानी पीने को दें.
6 महीने की गाभिन गाय को 1 किलोग्राम व 6 महीने की गाभिन भैंस को डेढ़ किलोग्राम राशन (दाना) अलग से दें.
दुधारू पशुओं को रोजाना कम से कम 5 किलोग्राम हरा चारा जरूर दें. सर्दी के मौसम में बरसीम सब से अच्छा हरा चारा होता है.
पशु के राशन में 2 फीसदी मिनरल मिक्सचर जरूर मिलाएं.
पशुओं से ज्यादा दूध लेने और उन को लंबे समय तक सेहतमंद बनाए रखने के लिए उन्हें संतुलित मात्रा में चारादाना (राशन) देना जरूरी होता है. संतुलत राशन में खनिज लवण के साथ पोषक तत्त्व, प्रोटीन, विटामिन वगैरह तय मात्रा में रखे जाते हैं.
संतुलित आहार (राशन) बनाने का फार्मूला न्यूट्रीशन ऐक्सपर्ट से संपर्क कर के हासिल करें. संतुलित राशन घर पर भी बना सकते हैं. राशन बनाने में उम्दा क्वालिटी का अनाज (जई, जौ, गेहूं, ज्वार वगैरह), तेल, खली (सरसों, मूंगफली वगैरह की खली), ग्वारमील, शीरा, नमक, मिनरल मिक्सचर व विटामिनों का संतुलित मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है.
एडवांस डेरी फार्म पर पूरक आहार (सप्लीमैंट्री राशन) दिया जाता है. पूरक आहार खिलाने से पशु के जिस्म में आई कमियां दूर हो जाती हैं और वह लंबे समय तक सेहतमंद व दुधारू बना रहता है. पूरक आहार में मिनरल मिक्सचर, फीड एडिटिव, बाईपास प्रोटीन, बी कांप्लैक्स वगैरह को शामिल किया जाता है. बहुत सी प्राइवेट कंपनियां पूरक आहार बाजार में बेचती हैं, तो उन की पूरी जानकारी हासिल कर के अपने पशु को पूरक आहार खिलाएं.
पशुओं का कीड़ों से बचाव :
छोटे या जवान पशुओं को बाहरी और अंदरूनी कीड़े काफी नुकसान पहुंचाते हैं. अंदरूनी कीड़े जैसे फीताकृमि, गोलकृमि, वगैरह पशु के पेट में रह कर उस का आहार व खून पीते हैं, वहीं बाहरी कीड़े जैसे जूं, किल्ली, पिस्सू माइट वगैरह पशु के बाहरी जिस्म पर रहते हैं और उस का खून चूसते हैं. बाहरी और अंदरूनी दोनों ही कीड़े पशु को कमजोर बना देते हैं, जिस के चलते पशु की दूध देने की कूवत कम होती जाती है और पशु समय से पहले ही कमजोर व बीमार हो कर मर सकता है.
पशुओं के अंदरूनी कीड़ों को मारने के लिए कीड़ेमार दवा जैसे फेंटास, एल्बोमार, पैनाखुर वगैरह की सही मात्रा पशु चिकित्सक से पूछ कर दें. वहीं बाहरी कीड़ों को मारने के लिए ब्यूटाक्स दवा की 2 मिलीलिटर मात्रा को 1 लिटर पानी में घोल कर पशु के शरीर पर अच्छी तरह से पोंछा लगाएं, पर दवा लगाने से पहले पशु के मुंह पर मुचका जरूर बांध दें, ताकि पशु दवा को चाट न सके.
बनाएं गोबर से खाद :
पशुओं के गोबर का इस्तेमाल उपले यानी ईंधन बनाने में कतई न करें. गड्ढा खोद कर उस में गोबर डालें और गोबर की खाद तैयार करें. जिन पशुपालकों के पास खेती की जमीन नहीं है, वे गोबर की खाद गड्ढे में तैयार कर उसे अच्छे दामों पर बेच सकते हैं. जैविक खेती में गोबर की सड़ी खाद की काफी मांग रहती है.
नस्ल का चुनाव :
दूध उत्पादन के लिए हमेशा दुधारू नस्ल के पशु ही पालें. गाय में साहीवाल, हरियाणा, करनस्विस, करनफ्रिज वगैरह और भैंस में मुर्रा, मेहसाना वगैरह नस्लें माली नजरिए से फायदेमंद साबित होती हैं.
दुधारू पशु (गायभैंस) खरीदने से पहले उस की नस्ल, दूध देने की कूवत वगैरह की जांच जरूर करनी चाहिए. पशु की वंशावली का रिकौर्ड भी जरूर देखना चाहिए यानी उस की मां, नानी, परनानी वगैरह कितना दूध देती थीं. इस के अलावा आप अपने इलाके और सुविधाओं के आधार पर ही पशु का चुनाव करें.
कैसी हो पशुशाला?
पशुशाल हमेशा ऐसी जगह बनाएं, जहां बारिश का पानी नहीं भरता हो. जगह हवादार व साफसुथरी होनी चाहिए. पशुशाला का फर्श पक्का खुरदरा रखें. गोबर को पशुशाला से उठा कर दूर खाद के गड्ढे में डालें. पशुशाला से पानी की निकासी का भी सही बंदोबस्त रखें.
पशुशाला के आसपास गंदा पानी जमा न होने दें. पशुशाला में मक्खीमच्छर से बचाव का भी इंतजाम करें. पशुओं को सर्दी, गरमी व बरसात से बचाने के लिए पशुशाला में पुख्ता इंतजाम करें.
ध्यान रखें कि पशुओं को किसी भी तरह की परेशानी न हो. सर्दी के मौसम में पशुशाला में बिछावन के लिए भूसा, लकड़ी का बुरादा, पेड़ों की सूखी पत्तियां या गन्ने की सूखी पत्तियों का इस्तेमाल करें. बिछावन गीला होने के बाद उसे गोबर के साथ उठा कर खाद के गड्ढे में डाल दें. हर रोज सूखा बिछावन ही इस्तेमाल में लाएं.
इन बातों का खयाल रखें
* पशुओं को अफरा बीमारी से बचाने के लिए 1 लिटर मीठे तेल में 200 ग्राम काला नमक, 100 ग्राम मीठा खाने वाला सोडा, 30 ग्राम अलवाइन व 20 ग्राम हींग मिला कर दें. अफरा से बचाव के लिए जरूरत से ज्यादा बरसीम, खड़ा गेहूं व ज्यादा राशन न खिलाएं.
* पशुओं को थनैला बीमारी से बचाने के लिए पशुशाला को हमेशा साफसुथरा रखें व हवादार रखें. समयसमय पर थनैला के लिए दूध की जांच करते रहें.
* थनैला की जांच के लिए 1 कप पानी में 1 चम्मच सर्फ घोलें व 5 चम्मच दूध में 1 चम्मच यह घोल मिला दें.
अगर दूध जैल बन जाए तो समझ लें कि पशु को थनैला हो गया है. थनैला होने पर फौरन पशुओं के डाक्टर से इलाज कराएं.
* थनैला से बचाव के लिए पशु का दूध निकालने से पहले व बाद में थनों को साफ पानी से धोएं और साफ व सूखे कपड़े से पोंछ दें. दूध दुहने वाले के हाथ के नाखून हमेशा कटे होने चाहिए. पशुशाला आरामदायक होनी चाहिए.
* हमेशा उन्नत नस्ल की गायभैंसें पालें. मादा को गाभिन कराने के लिए अच्छी नस्ल के सांड़ के वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान कराएं.
* कटियाबछिया को समय पर गाभिन कराने के लिए उन के खानपान पर खास ध्यान दें, ताकि वे सही वजन हासिल कर सकें.
* समय पर बछिया/कटिया को संक्रामक गर्भपात से बचाने वाला टीका लगवाएं. पशु को पेट के कीड़े मारने के लिए हर 6 महीने में 1 बार कीड़े मारने वाली दवा दें.
* जब कटिया या बछिया का वजन 250 किलोग्राम हो जाए, तो उन को समय पर गाभिन होने के लिए 50 ग्राम खनिज मिश्रण 1 चम्मच कोलायडल आयोडीन और 125 ग्राम अंकुरित अनाज 2 महीने तक दें. कटियाबछिया की सफाई का पूरा ध्यान रखें.