हमारे यहां मूली की खेती ठंडे इलाकों से ले कर ज्यादा तापमान वाले इलाकों में भी की जा सकती है, लेकिन ज्यादा तापमान वाले इलाकों में मूली की फसल कठोर और तीखी होती है.
मूली की खेती के लिए रेतीली दोमट और दोमट मिट्टियां उम्दा होती हैं. मटियार जमीन में इस की खेती करना फायदेमंद नहीं होता है, क्योंकि उस में मूली की जड़ें सही तरीके से पनप नहीं पाती हैं.
मूली की खेती के लिए ऐसी जमीन का चयन करना चाहिए, जो हलकी भुरभुरी हो और उस में जैविक पदार्थों की भरपूर मात्रा हो. मूली के खेत में खरपतवार नहीं होने चाहिए, क्योंकि उन से जड़ों की बढ़वार रुक जाती है.
खेत की तैयारी : मूली की फसल लेने के लिए खेत की कई बार जुताई करनी चाहिए. पहले 2 बार कल्टीवेटर से जुताई कर के पाटा लगा दें, उस के बाद गहरी जुताई करने वाले हल से जुताई करें. मूली की जड़ें जमीन में गहरे तक जाती हैं, ऐसे में गहरी जुताई न करने से जड़ों की बढ़वार सही तरीके से नहीं हो पाती है.
मूली की उन्नत किस्में :
मूली की फसल लेने के लिए ऐसी किस्म का चयन करना चाहिए, जो देखने में सुंदर व खाने में स्वादिष्ठ हो.
पूसा चेतकी : 40 से 50 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म पूरी तरह सफेद, नरम व मुलायम होती है. स्वाद में तीखापन कम होता है. इस की औसत पैदावार 250 क्विंटल प्रति हेक्टयर तक मिल सकती है. यह किस्म पूरे भारत में कहीं भी लगाई जा सकती है.
पूसा मृदुला : बोआई के 250-300 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म लाल रंग की होती है. शीत ऋतु के लिए अच्छी फसल है. इस की औसत उपज 135 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल जाती है. पूरे भारत के लिए यह किस्म मुफीद है.
पूसा जामुनी : 55 से 60 दिनों में तैयार होने वाली यह अनूठी गुणों वाली किस्म है. यह पौष्टिकता से भरपूर बैगनी रंग में होती है.
पूसा गुलाबी : यह किस्म भी 55 से 60 दिनों में तैयार होती है. नाम के मुताबिक यह गुलाबी रंग की होती है. यह बेलनाकार किस्म है.
पूसा विधु : 50 से 60 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म सफेद रंग की बेलनाकार होती है. इस की 400 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिलती है. यह किस्म दिल्ली और उस के आसपास के इलाकों के लिए खास है.
इस के अलावा मूली की रैपिड रैड, पूसा हिमानी, हिसार मूली नंबर 1, पंजाब सफेद व ह्वाइट टिप वगैरह किस्मों को अच्छा माना जाता है.
मूली की खेती मैदानी इलाकों में सितंबर से जनवरी माह तक और पहाड़ी इलाकों में मार्च से अगस्त माह तक आसानी से की जा सकती है. वैसे, मूली की तमाम ऐसी किस्में तैयार की गई हैं जो मैदानी व पहाड़ी इलाकों में पूरे साल उगाई जा सकती हैं. पूसा चेतकी, पूसा देसी व जापानी सफेद वगैरह किस्में ऐसी हैं, जिन्हें सालभर उगाया जा सकता है.
मूली की 1 हेक्टेयर खेती के लिए तकरीबन 10 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. बारिश के मौसम में मेंड़ बना कर इस की बोआई की जाती है, जबकि दूसरे मौसमों में इसे समतल जमीन में भी उगाया जा सकता है. अगर मूली की फसल मेंड़ों पर ली जा रही है, तो मेंड़ों से मेंड़ों की दूरी 45 सैंटीमीटर व ऊंचाई 22-25 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.
खाद व उर्वरक : चूंकि मूली की जड़ें सीधे तौर पर इस्तेमाल की जाती हैं, लिहाजा इस में कम से कम रासायनिक खादों का इस्तेमाल किया जाना ठीक माना जाता है. मूली की बोआई से पहले ही मिट्टी में 120 क्विंटल गोबर की खाद व 20 किलोग्राम नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देनी चाहिए.
इस के अलावा 75 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिलानी चाहिए.
सिंचाई : बारिश के मौसम में मूली की फसल को सिंचाई की कोई जरूरत नहीं होती है, लेकिन गरमी में 4-5 दिनों के अंतराल पर फसल की सिंचाई करते रहना चाहिए. सर्दी वाली फसलों की सिंचाई 10-15 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए.
खरपतवार व कीट : मूली की फसल से खरपतवारों को समयसमय पर निकालते रहना चाहिए, चूंकि खरपतवारों से फसल का उत्पादन प्रभावित होता है, लिहाजा हर 15 दिनों पर खेतों में उगने वाले खरपतवारों को निकाल देना चाहिए.
मूली की फसल को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों में पत्ता काटने वाली सूंड़ी, सरसों की मक्खी व एफिड शामिल हैं. इन कीटों की रोकथाम के लिए रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करना सही नहीं होता है. इन कीटों की रोकथाम के लिए हमेशा जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इस के लिए 5 लिटर गोमूत्र व 15 ग्राम हींग को आपस में अच्छी तरह मिला कर फसल पर छिड़काव करते रहना चाहिए.
आमतौर पर मूली की फसल में कोई खास रोग नहीं लगता है, फिर भी कभीकभी इस में रतुआ रोग का हमला देखा गया है. इस की रोकथाम के लिए नीम का काढ़ा, गोमूत्र व तंबाकू मिला कर फसल को पूरी तरह से तरबतर करते हुए छिड़काव करना चाहिए.
उपज व लाभ : मूली की फसल जब कोमल हो तभी इस की खुदाई कर लेनी चाहिए, क्योंकि ऐसी अवस्था में इस के दाम बहुत अच्छे मिलते हैं. बोआई के 30-35 दिनों बाद मूली की फसल उखाड़नी शुरू कर देनी चाहिए.