यह सर्दियों के मौसम में पैदा की जाने वाली फसल है. इस फसल को तकरीबन हर तरह की मिट्टी में उपजाया जा सकता है, लेकिन इस के लिए सब से सही बलुई दोमट मिट्टी होती है. इस फसल पर पाले का असर भी नहीं होता है.

खेत की तैयारी

खेत की जुताई कर के छोड़ दें, जिस से मिट्टी को तेज धूप लगे और कीड़ेमकोड़े खत्म हो जाएं. उस के बाद ट्रैक्टर हैरो या कल्टीवेटर से 3-4 बार जुताई करें. अच्छी तरह से पाटा चलाएं, जिस से मिट्टी भुरभुरी हो जाए. देशी गोबर वाली खाद मिला कर खेत को तैयार करें. इस के बाद गाजर के बीजों की बोआई करें. खेत में चाहें तो क्यारियां भी बना सकते हैं.

गाजर की मुख्य किस्में

पूसा केसर : यह एक उन्नतशील एशियाई किस्म है, जिस की जड़ें लालनारंगी सी होती हैं. जड़ें लंबीपतली व पत्तियां कम होती हैं. यह अगेती किस्म है, जिस में अधिक तापमान को सहन करने की कूवत होती है.

पूसा यमदिग्न: यह अधिक उपज देने वाली किस्म है. इस की जड़ों का रंग हलका नारंगी (बीच के हिस्से में हलका पीला) होता है. गूदा मुलायम व मीठा होता है.

पूसा मेघाली : यह किस्म अच्छी मानी जाती है. किसान अपने इलाके के हिसाब से कृषि जानकारों से राय ले कर इस के बीज बो सकते हैं. यह किस्म भी अच्छे गुण वाली है.

पूसा रुधिर : यह पूसा की खास किस्म है. आकर्षक लंबी लाल जड़ें, चमकता लाल रंग, समान आकार और ज्यादा मिठास इस प्रजाति की खासीयतें हैं. इस के अलावा हिसार गेरिक, हिसार रसीली, हिसार मधुर, पूसा अंकिता वगैरहहैं.

इन सब के अलावा यूरोपियन किस्मों की बोआई अक्तूबरनवंबर माह में करते हैं.

बीज की मात्रा और समय

अगेती किस्मों को अगस्त से सितंबर महीने तक ही बो दें. मध्यम व पछेती किस्मों को नवंबर महीने के आखिरी हफ्ते तक बोया जाता है. गाजर की बोआई के लिए 6-7 किलोग्राम बीजों की प्रति हेक्टेयर जरूरत होती है. बोआई लाइनों में मेंड़ बना कर करें. इन मेंड़ों की आपस की दूरी 30-45 सैंटीमीटर और पौधे की दूरी 6 से 8 सैंटीमीटर रखें या छोटीछोटी क्यारियां बना कर बोएं.

खाद व उर्वरक

गाजर की अच्छी खेती लेने के लिए देशी गोबर की खाद 15 से 20 ट्रौली प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालें. नाइट्रोजन 30 किलोग्राम, फास्फोरस 40 किलोग्राम और पोटाश 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई से 15-20 दिन पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं. 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नाइट्रोजन बोआई से 35-40 दिनों बाद छिड़कें, जिस से जड़ें अच्छी विकसित हो सकें.

सिंचाई : बोआई के लिए पलेवा करें या नमी होने पर बोएं. बोआई के 10-15 दिनों के बाद नमी न होने पर हलकी सिंचाई करें. सिंचाई अधिक पैदावार लेने के लिए जरूरी है, इसलिए हलकीहलकी सिंचाई करें. खेत में नमी रहना जरूरी है.

खरपतवार : खेत में खरपतवार न पनपने दें. समय रहते ही खरपतवार निकालते रहें. साथ ही, गाजर के पौधे ज्यादा घने महसूस हों तो उन्हें कम कर दें.

कीड़े व बीमारियां : गाजर में ज्यादातर पत्ती काटने वाला कीड़ा लगता है, जो पत्तियों को नुकसान पहुंचाता है. इस की रोकथाम के लिए जरूरी उपाय करें. फसल को अगेती बोएं. गाजर की फसल में एक पीलापन वाली बीमारी लगती है, जो पत्तियों को खराब करती है. बीजों को 0.1 फीसदी मरक्यूरिक क्लोराइड से उपचारित कर के बोने पर यह बीमारी नहीं लगती है.

खुदाई : जब गाजर की मोटाई व लंबाई ठीकठाक और बाजार भेजने लायक हो जाए, तो खुदाई करनी चाहिए. खुदाई के लिए खेत में नमी होनी चाहिए. खुदाई के समय ध्यान रखें कि जड़ों को नुकसान न पहुंचे. जड़ों के कटने से भाव घट जाता है.

उपज : गाजर की फसल का ठीक तरह से ध्यान रखा जाए, तो 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है. वैसे, उपज किस्मों पर अधिक निर्भर करती है.

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