सूरजमुखी (Sunflower) की खेती देश में पहली बार साल 1969 में उत्तराखंड के पंतनगर में की गई थी. यह एक ऐसी तिलहनी फसल है, जिस पर प्रकाश का कोई असर नहीं पड़ता. यानी यह फोटोइनसेंसिटिव है. हम इसे खरीफ, रबी और जायद तीनों मौसमों में उगा सकते हैं. इस के बीजों में 45-50 फीसदी तक तेल पाया जाता है. इस के तेल में एक खास तत्त्व लिनोलिइक अम्ल पाया जाता है. लिनोलिइक अम्ल शरीर में कोलेस्ट्राल को बढ़ने नहीं देता है. अपनी खूबियों की वजह से इस का तेल दिल के मरीजों के लिए दवा की तरह काम करता है.

प्रकाश का कोई असर न पड़ने की वजह से सूरजमुखी अचानक होने वाले मौसम के बदलावों को भी सह लेता है. इसीलिए सू्ररजमुखी की खेती किसानों को भरपूर आमदनी देती है. इसी वजह से देश के अलगअलग हिस्सों में इस की खेती का रकबा बढ़ता ही जा रहा है.

जमीन : इस की खेती अम्लीय और क्षारीय जमीनों को छोड़ कर हर तरह की जमीनों में की जा सकती है. वैसे ज्यादा पानी सोखने वाली भारी जमीन इस के लिए ज्यादा अच्छी होती है.

खेत की तैयारी : खेत में भरपूर नमी न होने पर पलेवा लगा कर जुताई करनी चाहिए. पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद साधारण हल से 2-3 बार जुताई कर के खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए या रोटावेटर का इस्तेमाल करना चाहिए.

किस्में : सूरजमुखी की 2 तरह की किस्में होती हैं, एक कंपोजिट और दूसरी हाईब्रिड. कंपोजिट किस्मों में माडर्न व सूर्या खास हैं. हाईब्रिड किस्मों में केवीएसएच 1, एसएच 3222, एमएसएफएच 17 व वीएसएफ 1 वगैरह शामिल हैं.

बोआई का समय व विधि : जायद फसल की बोआई फरवरी के अंतिम हफ्ते से ले कर मध्य मार्च तक कर लेनी चाहिए, जबकि बसंतकालीन बोआई 15 जनवरी से 10 फरवरी तक कर लेनी चाहिए. लाइन से बोआई करना बेहतर होता है. बोआई हल के पीछे कूंड़ों में 4-5 सैंटीमीटर गहराई पर करें और लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखें.

Sunflower

बीजों की मात्रा : हाईब्रिड किस्म होने पर 5-6 किलोग्राम और कंपोजिट किस्म होने पर 12-15 किलोग्राम बीजों का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

खाद व उर्वरक : खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी की जांच कराने के बाद मिली शिफारिशों के आधार पर ही करना चाहिए. वैसे मोटे तौर पर 3-4 टन खूब सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना लाभप्रद होता है.

कंपोजिट किस्म में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन और हाईब्रिड किस्म में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए. कंपोजिट व हाईब्रिड दोनों किस्मों के लिए 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश देना जरूरी होता है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के वक्त कूंड़ों में देनी चाहिए.

नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा बोआई के 25-30 दिनों बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए. अगर आलू के बाद सूरजमुखी की बोआई की जा रही है, तो उर्वरकों की मात्रा 25 फीसदी घटा देनी चाहिए. तिलहनी फसलों की गुणवत्ता में सल्फर की खास भूमिका होती है, लिहाजा, 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से देना लाभदायी रहेगा.

खरपतवार नियंत्रण : खरपतवार निकालने के लिए रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल न कर के यांत्रिक विधि अपनाएं. अगर रासायनिक विधि ही अपनानी है, तो बोआई के 2-3 दिनों के अंदर पेंडीमेथलीन (50 फीसदी) दवा का इस्तेमाल करें.

सिंचाई : पहली सिंचाई बोआई के 20-25 दिनों बाद करना जरूरी होता है. भारी जमीन में 3-4 सिंचाई व हलकी जमीन में 4-5 सिंचाई करना ठीक होता है. फूल निकलते समय और दाना भरते समय खेत में नमी बनाए रखना बहुत ही जरूरी है. सिंचाई इस तरीके से करनी चाहिए कि पौधे गिरने न पाएं. स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई करना बेहतर होगा.

खास कीड़े

दीमक : दीमक फसल को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाती है. इस की रोकथाम बोआई से पहले ही कर लेनी चाहिए. इस के लिए खेत में पड़े फसल अवशेषों को खूब अच्छी तरह से सड़ा देना चाहिए. खूब अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद ही खेत में इस्तेमाल करनी चाहिए. दीमक की रोकथाम के लिए बिवेरिया बैसियाना या क्लोरपाइरीफास (20 ईसी) दवाओं का इस्तेमाल कृषि वैज्ञानिक से सलाह ले कर कर सकते हैं.

हरा फुदका : इस कीट के प्रौढ़ व बच्चे पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं. इस की रोकथाम के लिए डाईमेथोएट 30 फीसदी ईसी दवा की 1 लीटर मात्रा का 600-800 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. दवा का छिड़काव हमेशा दोपहर के बाद करना चहिए.

डस्की बग : ये कीड़े पत्तियों व डंठलों से रस चूस कर हानि पहुंचाते रहते हैं. जिन दवाआें से हरा फुदका की रोकथाम होती है, उन्हीं से इस की रोकथाम भी की जा सकती है.

फली बेधक : ये कीट फूल में बन रहे बीजों को खा कर काफी नुकसान पहुंचाते हैं. रोकथाम के लिए कृषि वैज्ञानिक से पूछ कर दवा का छिड़काव शाम के समय करें.

Sunflowerकटाईमड़ाई: जब सूरजमुखी के बीज पक कर कड़े हो जाएं तो मुंडकों यानी फूलों की कटाई कर लेनी चाहिए. पके हुए मुंडकों का पिछला भाग पीलेभूरे रंग का हो जाता है. मुंडकों को काट कर छाया में सुखा लेना चाहिए, मगर ढेर बना कर नहीं रखना चाहिए. सूखने के बाद इस की मड़ाई सूरजमुखी वाले थ्रैशर या डंडे से पीट कर करनी चाहिए.

उपज और भंडारण : सूरजमुखी की सामान्य प्रजतियों की पैदावार 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर व हाईब्रिड प्रजातियों की पैदावार 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है. भंडारण के लिए इस के बीजों की नमी 8-10 फीसदी ही होनी चाहिए. 3 महीने के अंदर बीजों से तेल की पेराई कर लेनी चाहिए, वरना तेल में कड़वाहट आने लगती है.

कुछ अन्य ध्यान देने वाली बातें

*             बीज शोधन और बीज उपचार के बाद ही सूर्यमुखी के बीजों की खेत में बोआई करें.

*             सूरजमुखी का फूल काफी बड़ा और वजनदार होता है. लिहाजा, तेज हवा चलने पर पौधों के गिरने का खतरा रहता है. इस से बचने के लिए पहली सिंचाई करने के बाद पौधों पर 10-15 सेंटीमीटर मिट्टी जरूर चढ़ा देनी चाहिए.

*             15 दिनों के अंदर घने बोए गए पौधों को 15-20 सैंटीमीटर की दूरी पर कर देना चाहिए.

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