Citrus Fruits : भारत में उगाए जाने वाले तमाम फलों में नीबू प्रजाति के फलों की खास जगह है. इन में विटामिन ए, बी, सी व खनिज काफी मात्रा में पाए जाते हैं. नीबू वर्गीय फलों में मौसमी, माल्टा, संतरा व नीबू वगैरह खास हैं.

जलवायु व जमीन : नीबू प्रजाति के फल तमाम तरह की जलवायु में उगाए जाते हैं. मौसमी व माल्टा के उत्पादन के लिए गरमी के मौसम में अच्छी गरमी व सर्दी के मौसम में अच्छी सर्दी सही रहती है. इन के लिए शुष्क जलवायु जहां पर बारिश 50-60 सेंटीमीटर होती है, सही रहती है. संतरा व नीबू के लिए गरम, पाला रहित व नम जलवायु जहां बारिश 100-150 सेंटीमीटर होती है, सही रहती है. नीबू हर जगह उगाया जा सकता है.

नीबू प्रजाति के फलों की खेती कई प्रकार की जमीन में की जा सकती है, लेकिन ज्यादा उपजाऊ दोमट जमीन जो 2 से सवा 2 मीटर गहरी हो, इन की खेती के लिए ज्यादा अच्छी है. संतरा, मौसमी और माल्टा के लिए बलुई मिट्टी जिस में जल धारण की कूवत नहीं होती है, मुनासिब नहीं होती. जल निकास युक्त चिकनी मिट्टी जिस में जल धारण की कूवत नहीं होती है, इस की खेती के लिए अच्छी रहती है. इन फलों की खेती के लिए जमीन का चुनाव करते समय इस बात का खयाल रखना चाहिए कि जमीन लवणीय या क्षारीय न हो.

पौध लगाना : नीबू प्रजाति के पौधों को बीज व वानस्पतिक दोनों ही तरीकों द्वारा तैयार किया जाता है. बीज द्वारा पौधे तैयार करने के लिए जुलाई, अगस्त या फरवरी में बीज बोते हैं. नीबू में गूटी लगाने का सही समय जुलाई है. मौसमी व माल्टा के पौधों को कलिकायन से तैयार किया जाता है. इस के लिए पहले बीज से मूलवृंत तैयार करते हैं. बीज हमेशा रफलेमन (जमबेरी व जट्टी खट्टी) के स्वस्थ व पके फलों से लेने चाहिए. बीजों को फलों से निकालने के बाद उन्हें तुरंत क्यारियों में बो देना चाहिए. बीज बोने के लिए फरवरी का समय सही रहता है. जब मूलवृंत 1 साल का हो जाए तब उन पर ही कलिकायन (बडिंग) करें. नीबू प्रजाति के पौधे बीज से भी तैयार किए जा सकते हैं. बीजों को फलों से निकालने के बाद तुरंत नर्सरी में बो देना चाहिए. नर्सरी में पौधे 1 साल के होने के बाद ही खेत में रोपाई करनी चाहिए.

उन्नत किस्में : नीबू प्रजाति के तमाम वर्गों में इस्तेमाल में लाई जाने वाली प्रमुख प्रजातियों का विवरण निम्नलिखित है:

माल्टा वर्ग

जाफा : फल का आकार गोल होता है. इस की लंबाई 6.37 सेंटीमीटर और चौड़ाई 6.51 सेंटीमीटर होती है. यह पकने पर लालनारंगी रंग का हो जाता है. फल का औसत वजन 140 से 190 ग्राम होता है. इस में रस की मात्रा 30 से 35 फीसदी होतीहै. फल में बीजों की संख्या 5 से 10 तक तक होती है. इस के छिलके  की मोटाई 0.40 सेंटीमीटर होती है. फल नवंबरदिसंबर में पकते हैं. फल उत्पादन 125 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है.

मौसमी : इस के फल छोटे से मध्यम आकार के होते हैं, जिन की लंबाई 6.07 सेंटीमीटर और चौड़ाई 6.25 सेंटीमीटर होती है. फल के ऊपर लंबाई में धारियां और तले पर गोल छल्ला होता है. फल पकने पर गहरे पीले रंग के हो जाते हैं, जिन में रस की मात्रा 30 से 35 फीसदी होती है. इस के छिलके की मोटाई 0.35 सेंटीमीटर होती है. फल में खटास 0.25 फीसदी और मिठास 10 से 12 फीसदी होती है. मौसमी नवंबरदिसंबर में पकती है. फलों की उपज 85 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

संतरा वर्ग

किन्नू: इस के फल गोल, मध्यम व चपटापन लिए हुए नारंगी रंग के होते हैं. फल का वजन 125 से 175 ग्राम तक होता है. पकने पर छिलका पतला व चमकदार होता है. इस का गूदा नारंगीपीला होता है और रस की मात्रा 40 से 45 फीसदी होती है. फल जनवरी में पकते हैं. पौधा लगाने के 5 सालों बाद 125 से 150 किलोग्राम प्रति पौधा उपज हासिल होती है.

नागपुर संतरा : यह राजस्थान के झालावाड़ क्षेत्र की मुख्य किस्म है, जो हरे रंग की हलके वजन वाली होती है. यह भरपूर रस वाली किस्म है, जो जनवरीफरवरी में पक कर तैयार हो जाती है.

नीबू वर्ग

कागजी नीबू : इस के फल मध्यम गोल आकार के होते हैं. इस का छिलका पतला होता है. रस की मात्रा 45 फीसदी होती है. इस में घुलनशील लवण 7 फीसदी और अम्लता 3 से 5 फीसदी होती है. फल पकने का समय जुलाईअगस्त और मार्च होता है. पैदावार 40 से 50 किलोग्राम प्रति पौधा होती है.

पंत लेमन : यह पंतनगर से कागजी फलों की चुनी हुई किस्म है, जिस का छिलका पतला होता है.

पौधे लगाने की विधि : नीबू वर्गीय पौधे 5×5 मीटर की दूरी पर लगाएं और 6 से 8 मीटर की दूरी पर मौसमी, संतरा वगैरह के लिए 90×90×90 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे 2 महीने पहले यानी मईजून के दौरान खोद लेने चाहिए. गड्ढों में 25 किलोग्राम गोबर की खाद, 1 किलोग्राम सुपरफास्फेट व 50 से 100 ग्राम क्यूनालफास 1.5 फीसदी या एंडोसल्फान 4 फीसदी चूर्ण मिट्टी में मिला कर भर देना चाहिए. पौधे लगाने का सब से सही समय जुलाईअगस्त रहता है. जहां पानी की अच्छी सुविधा हो, वहां फरवरी में भी पौधे लगाए जा सकते हैं.

खाद व उर्वरक : गोबर की खाद,सुपर फास्फेट व म्यूरेट आफ पोटाश की पूरी मात्रा व यूरिया की आधी मात्रा दिसंबरजनवरी में डालें और बाकी आधी यूरिया जूनजुलाई में डालें.

सूक्ष्म तत्त्व : नीबू वर्गीय फलों में सूक्ष्म तत्त्वों की कमी से पेड़ों में तमाम विकार पैदा हो जाते हैं. सूक्ष्म तत्त्वों में जिंक, बोरोन, मैगनीज, तांबा व लोहा खास हैं. जिंक की कमी से पत्तियां छोटी रह जाती हैं और उन की नसों के बीच का रंग हलका पड़ जाता है. जिंक की कमी से फल गिरने लगते हैं. मैगनीज की कमी के कारण पत्तियों का रंग धीरेधीरे हलका हो जाता है. ये लक्षण विकसित पत्तियों पर साफ दिखाई देते हैं.

पौधों में इन तत्त्वों की कमी के असर को रोकने के लिए इन तत्त्वों का छिड़काव फरवरी व जुलाई में करना चाहिए. इन तत्त्वों को अलगअलग घोलने के बाद पानी में मिलाना चाहिए. छिड़काव के लिए जिंक सल्फेट 500 ग्राम, कापर सल्फेट 300 ग्राम, मैगनीज 200 ग्राम, मैग्नीशियम सल्फेट 200 ग्राम, बोरिक एसिड 100 ग्राम, फेरस सल्फेट 200 ग्राम व बुझा हुआ चूना 900 ग्राम ले कर 100 लीटर पानी में मिलाना चाहिए.

सिंचाई : फल तोड़ने के बाद 1 महीने तक पानी देना बंद कर दें. फिर फूल खिलने से पहले सिंचाई शुरू कर देनी चाहिए. फूल खिलने के समय सिंचाई न करें. जब फल मूंग के दाने के बराबर हो जाएं तो नियमित सिंचाई करें. गरमी के मौसम में करीब 10 से 15 दिनों के अंतर पर और सर्दी के मौसम में 25-30 दिनों के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए. फल विकास के समय सही मात्रा में नमी होना जरूरी है, वरना फल फटने लगते हैं.

देखभाल : फल देने वाले पौधों की कम से कम कटाईछंटाई करनी चाहिए. फलों को तोड़ने के बाद ऐसी शाखाएं जो जमीन के ज्यादा संपर्क में आ जाती हैं, उन को काट देना चाहिए. सभी रोगी व घनी शाखाओं को भी काट देना चाहिए. सही आकार देने के लिए रोपाई के 3 सालों तक कटाईछंटाई करते रहना चाहिए. बाग लगाने के शुरू के 3 सालों में बाग में दलहनी फसलों की खेती की जा सकती है. इस से शुरू के सालों में भी आमदनी हासिल होती रहेगी.

कीड़ों की रोकथाम

नीबू की तितली : इस की लटें शुरू में चिडि़यों के बीट की तरह दिखाई देती हैं. अंडों से निकलने के तुरंत बाद ये पत्तियों को खाने लगती हैं और नुकसान पहुंचाती हैं.

* रोकथाम के लिए पेड़ों की संख्या ज्यादा न हो, तो लटों को पेड़ों से चुन कर मिट्टी के तेल मिले पानी में डाल कर मार देना चाहिए.

* मोनोक्रोटोफास की 1.5 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें.

फल चूसक पतंगा: यह कीट फलों में छेद कर के रस चूसता है, जिस से संक्रमित भाग पीला पड़ जाता है और फल की गुणवत्ता कम हो जाती है.

* रोकथाम के लिए प्रकाशपाश का इस्तेमाल कर के पतंगों को इकट्ठा कर के मार देना चाहिए.

* शीरा या शक्कर की 100 ग्राम मात्रा के 1 लीटर पानी में बनाए घोल में 10 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ईसी मिला कर मिट्टी के प्यालों में 100 मिलीलीटर प्रति प्याला के हिसाब से पेड़ों पर कई जगह पर टांग देना चाहिए.

* मैलाथियान 50 ईसी की 1 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़कव करना चाहिए.

Citrus Fruits

लीफ माइनर, सिट्रस सिल्ला व रेड स्पाइडर माइट : लीफ माइनर की लटें बहुत छोटी होती हैं. ये पत्तियों में सुरंग बनाती हैं. बारिश के मौसम में इन का हमला ज्यादा होता है.

सिट्रस सिल्ला का आक्रमण नई पत्तियों व कोमल भागों में होता है. ये पत्तियों से रस चूसते हैं, जिस के कारण पत्तियां सिकुड़ जाती हैं.

इस कीट का हमला बारिश के मौसम में ज्यादा होता है.

रेड स्पाइडर माइट पत्तियों के ऊपरी सिरों से रस चूसती है. कभीकभी यह बहुत ही ज्यादा नुकसान पहुंचाती है.

रोकथाम के लिए फोरमोथियोन 25 ईसी (सेस्थियो) का 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बना कर छिड़काव करें. सिट्रस सिल्ला की रोकथाम के लिए नई पत्तियां आने पर छिड़काव करना जरूरी है. यह रसायन मिलीबग की भी रोकथाम करता है.

मूल ग्रंथी (सूत्रकृमि) : इस का हमला नीबू की जड़ों पर होता है. इस के हमले से पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, टहनियां सूखने लगती हैं और जड़ गुच्छेदार बन जाती है. इस के असर से पेड़ पर फल छोटे व कम लगते हैं और जल्दी गिर जाते हैं.

रोकथाम के लिए कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 ग्राम प्रति पेड़ की दर से इस्तेमाल करें.

बीमारियों की रोकथाम

नीबू का केंकर रोग: जीवाणु से होने वाले इस रोग से पत्तियों, टहनियों व फलों पर भूरे रंग के कटे खुरदरे व कार्कनुमा धब्बे पड़ जाते हैं. रोगी पत्तियां गिर जाती हैं. टहनियों व शाखाओं पर लंबे घाव बनते हैं, जिस से टहनियां टूट जाती हैं. इस रोग से कागजी नीबू को ज्यादा नुकसान होता है.

रोकथाम के लिए नए बगीचे में हमेशा रोग रहित नर्सरी के पौधे ही इस्तेमाल में लाएं और रोपाई से पहले पौधों पर बोर्डों मिश्रण (4:4:50) या ताम्रयुक्त कवकनाशी (ब्लाइटाक्स) 0.3 फीसदी का छिड़काव करें.

रोग के प्रकोप को रोकने के लिए कटाईछंटाई के बाद जून से अक्तूबर तक बोर्डों मिश्रण (4:4:50) या स्ट्रेप्टोसाक्लिन 250-500 मिलीग्राम प्रति लीटर के घोल का 20 दिनों के अंतर पर फरवरी और मार्च के महीनों में छिड़काव करें.

गोदाति रोग (गमोसिस) : इस रोग के कारण तनों पर जमीन के पास से और टहनियों के रोगग्रस्त भाग से गोंद जैसा पदार्थ निकल कर छाल पर बूंदों के रूप में इकट्ठा हो जाता है, जिस की वजह से छाल सूख कर फट जाती है और भीतरी भाग भूरे रंग का हो जाता है. रोग के हमले से अंत में पेड़ फटने की स्थिति में पहुंच जाता है.

रोकथाम के लिए रोगग्रस्त छाल खुरचने के बाद रिडोमिल एमजेड 20 ग्राम व अलसी का तेल 1 लीटर को अच्छी तरह मिला कर या ताम्रयुक्त कवकनाशी का लेप कर दीजिए और इन्हीं कवकनाशी के 0.3 फीसदी या रिडोमिल एमजेड 25 से 0.2 फीसदी घोल के 4-5 छिड़काव 15 दिनों के अंतर पर कीजिए. इस के अलावा बगीचे की सही देखभाल, पानी के अच्छे निकास, धूपहवा वगैरह का पूरा ध्यान इस रोग से बचाव के लिए जरूरी है.

विदर टिप या डाई बैक : इस रोग से पत्तियों पर भूरेबैगनी धब्बे पड़ जाते हैं.

टहनियां ऊपर से नीचे की ओर सूखती हुई भूरी हो जाती हैं और पत्तियां सूख कर गिर जाती है.

रोकथाम के लिए रोगयुक्त भाग की छंटाई के बाद ताम्र युक्त कवकनाशी (कापर आक्सीक्लोराइड) 3 ग्राम या मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव बारिश के मौसम में 15 दिनों व सर्दी के मौसम में 20 दिनों के अंतर पर करना चाहिए. इस के अलावा साल में 2 बार (फरवरी और अप्रैल में) सूक्ष्म तत्त्वों का छिड़काव करें.

फलों का गिरना: तोड़ाई के 5 हफ्ते पहले से फल गिरने लग जाते हैं. इन की रोकथाम के लिए 1 ग्राम 2-4 डी 100 लीटर पानी में या प्लेनोफिक्स हारमोन्स 1 मिलीलीटर प्रति 4 से 5 लीटर पानी में घोल कर संतरा और मौसमी के पेड़ों पर छिड़कना चाहिए.

तोड़ाई व उपज : संतरा, माल्टा व नीबू का रंग जब हलका पीला हो जाए, तब इन की तोड़ाई करनी चाहिए.

मौसमी, संतरा और माल्टा की उपज प्रति पौधा 70 से 80 किलोग्राम होती है. कागजी नीबू में 40 से 50 किलोग्राम प्रति पौधा उपज हासिल होती है.

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