Biogas Plant : आज भी कई किसान खेतीबारी के साथसाथ पशुपालन भी करते हैं, इस से उन की आय में बढ़ोतरी भी होती है. कुछ लोग गोबर के उपले बनाते हैं या फिर गोबर को इकट्ठा करते रहते हैं, जिसे बाद में खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं. तो क्यों न इस आमदनी को और ज्यादा बढ़ाने की दिशा में काम किया जाए. क्यों न हम गोबर गैस प्लांट (Biogas Plant) लगाएं, जिस से हमें ऊर्जा के साथ उन्नत किस्म की गोबर की खाद भी मिलेगी.
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा संशोधित गोबर गैस प्लांट (Biogas Plant) तैयार किया है, जिस में काफी में ऊर्जा पैदा होती है और इस गोबर गैस प्लांट (Biogas Plant) की सहायता से गैस का चूल्हा जलाया जा सकता है, रोशनी के लिए बल्ब जलाए जा सकते हैं और कम हार्स पावर का इंजन भी चला सकते हैं. गोबर गैस प्लांट (Biogas Plant) से बेकार निकला गोबर जो पूरी तरह से सड़ जाता है, वह एक बढि़या खाद का काम करता है, जिस के इस्तेमाल से खेती की जमीन की पैदावार कूवत बढ़ती है. इस से रासायनिक खादों का भी इस्तेमाल कम करना पड़ता है.
आज हरियाणा में 1 करोड़ टन गोबर का 69 फीसदी भाग गोबर की खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. 28.5 फीसदी गोबर उपले बनाने के काम आता है और मात्र 2.5 फीसदी गोबर बायोगैस प्लांट में इस्तेमाल करते हैं.
कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर हम सारे गोबर का इस्तेमाल गोबर गैस प्लांट के लिए करें तो 40 करोड़ घन मीटर गैस हर साल पैदा की जा सकती है, इस में इस्तेमाल किए गए गोबर से 50 लाख टन जैविक खाद भी बनेगी, जिस खाद में खेती के लिए फायदेमंद नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश जैसे सूक्ष्म तत्त्व भी मौजूद होंगे.
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने गोबर द्वारा चलने वाले जनता मौडल के बायोगैस प्लांट को संशोधित कर के यह नया डिजाइन तैयार किया है, जो ताजे गोबर से चलता है. इस नए डिजाइन के प्लांट में गोबर डालने का पाइप 12 इंच चौड़ा होता है ताकि गोबर बिना पानी के सीधे ही डाला जा सके. गोबर के निकलने की जगह को भी चौड़ा रखा गया है, जिस से गोबर गैस के दबाव से खुद बाहर आ सके. निकलने वाला गोबर काफी गाढ़ा होता है, जिसे कस्सी की सहायता से खेत में डाला जा सकता है.
शुरूशुरू में गोबर गैस प्लांट बनाने के बाद उस में गोबर व पानी का घोल बराबर मात्रा में डाल दिया जाता है. इस के बाद गैस की निकासी का पाइप बंद कर के 10-15 दिनों के लिए छोड़ दिया जाता है.
जब गोबर की निकासी वाली जगह से गोबर आना शुरू हो जाता है, तो प्लांट में ताजा गोबर बिना पानी के प्लांट के आकार के मुताबिक सही मात्रा में हर रोज एक बार डालना शुरू कर दिया जाता है और उस से बनने वाली गोबर गैस को जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल किया जा सकता है, साथ ही निकलने वाले गोबर को खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. यह गोबर की खाद खेती के लिए बहुत फायदेमंद होती है.
गोबर गैस प्लांट से जुड़ी ज्यादा जानकारी के लिए अध्यक्ष, सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, फोन नंबर 01662-285292 से संपर्क कर सकते हैं.
इस प्लांट की खासीयत
* इस प्लांट को लगाने में जगह व पैसे की लागत दूसरे डिजाइन के मुकाबले कम आती है. इसे घर के आंगन में भी लगा सकते हैं. इस के आसपास की जगह साफसुथरी रहती है और बदबू नहीं आती.
* 3-4 पशुओं के गोबर से चलने वाले 2 घन मीटर का प्लांट लगाने का खर्चा तकरीबन 20000 रुपए है. इस से बनने वाली गैस से 4-5 सदस्यों का 3 वक्त का खाना आसानी से बन सकता है.
* इस में ताजा गोबर डाला जाता है. गोबर को पानी में घोल कर डालने की जरूरत नहीं होती, जिस से समय और मेहनत दोनों की बचत होती है. अगर आप मुरगीपालन भी करते हैं, तो गोबर के साथ मुरगी की खाद (10 फीसदी) भी मिला कर डाल सकते हैं, जिस से 10 से 15 फीसदी गैस ज्यादा बनती है और खाद की गुणवत्ता भी बढ़ती है.
* गोबर गैस प्लांट को लैट्रीन से साथ जोड़ कर भी गैस की मात्रा व खाद की गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है.
* बाहर निकलने वाला गोबर (सलरी) गाढ़ा होता है. इसलिए इसे इकट्ठा करने के लिए गड्ढे की जरूरत नहीं पड़ती, इसे आसानी से इकट्ठा किया जा सकता है और खेत में डाला जा सकता है.
* निकली गोबर खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की मात्रा गोबर के मुकाबले ज्यादा होती है और इस का इस्तेमाल करने से जमीन की गुणवत्ता बढ़ती है. इस में नीम, आक या धतूरे के पत्ते मिला कर डालने से खेत में कीड़ों व बीमारियों का हमला नहीं होता.
* सही तरह से बना हुआ बायोगैस प्लांट कई सालों तक बिना कठिनाई के चलता रहता है.
* गोबर गैस प्लांट लगवाने के लिए भारत सरकार समयसमय पर किसानों को अनुदान भी देती है. इस के लिए किसान अपने नजदीकी कृषि अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं.