वर्मी कंपोस्ट (Vermicompost) को टैंक, क्यारी और ढेर विधि से तैयार किया जा सकता है. कचरों के ढेर को काटपीट कर 10 फुट लंबे, 3 फुट चौड़े और ढाई फुट गहरे टैंक या गड्ढे में डाल दिया जाता है. इस से केंचुओं को कचरों को खाने और पचाने में आसानी हो जाती है.
टैंक में कचरा बिछाने के बाद उस पर पानी मिला गोबर डाल दिया जाता है. हर टैंक में 5000 या 5 किलोग्राम केंचुओं को डाल दिया जाता है.
कचरे में सही नमी बनाए रखने के लिए गरमी के मौसम में रोज 2 बार और ठंड के मौसम में रोज 1 बार पानी का छिड़काव किया जाना जरूरी है, ताकि 30 फीसदी नमी बनी रहे. वर्मी कंपोस्ट बनाने वाली जगह को ऊपर से जूट के भीगे बोरे से ढक देने पर नमी और अंधेरे में केंचुए ज्यादा तेजी से काम करते हैं.
केंचुए ऊपर से खाना शुरू करते हैं और धीरेधीरे नीचे जाते हैं, इस से ऊपर का कचरा पहले वर्मी कंपोस्ट में बदलता है. 35-40 दिनों के बाद से कचरे की ऊपरी सतह पर केंचुओं द्वारा छोड़ा गया मल दिखने लगता है. करीब 70 से 75 दिनों में वर्मी कंपोस्ट तैयार हो जाता है.
वर्मी कंपोस्ट बनाने वाले मोकामा के किसान रामअवतार बताते हैं कि तैयार होने पर वर्मी कंपोस्ट बगैर बदबू का बारीक, दानेदार और गहरा लाल रंग लिए चाय की पत्ती की तरह दिखता है. वर्मी कंपोस्ट को इकट्ठा कर के 2 एमएम की छलनी से छान कर पैकेटों में भरना चाहिए.
कृषि वैज्ञानिक बजेंद्र मणि बताते हैं कि वर्मी कंपोस्ट मिट्टी को उपजाऊ बनाने के अलावा उस की जलधारण कूवत को भी बढ़ाता है. इस का पीएच 7 से 7.5 के बीच होता है. इस से मिट्टी में ज्यादा समय तक नमी बनी रहती है, लिहाजा सिंचाई का खर्च कम हो जाता है. इस में नाइट्रोजन, फास्फेट और पोटाश के साथसाथ सभी पोषक और सूक्ष्म तत्त्व मौजूद रहते हैं.
खेत की तैयारी के समय प्रति हेक्टेयर 25-30 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए. पौधे लगाने के 15 दिनों बाद प्रति हेक्टेयर 12 से 15 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट डालना होता है. खाद्यान्न फसलों में प्रति हेक्टेयर 50 से 60 क्विंटल और सब्जियों में प्रति हेक्टेयर 100 से 120 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट डालना चाहिए. फलदार पेड़ों में प्रति पेड़ 1 से 5 किलोग्राम, सजावटी पौधों में प्रति गमला 100 ग्राम वर्मी कंपोस्ट डालने की जरूरत होती है.
कैमिकल खादों की जगह वर्मी कंपोस्ट यानी केंचुआ खाद का इस्तेमाल कर के मिट्टी और फसलों को बचाया जा सकता है. फसलों के कचरों, घासफूस, कूड़ा, गोबर, सड़ेगले फल और सब्जियों को केंचुए वर्मी कंपोस्ट में बदल देते हैं. अमूमन, हर केंचुआ 1 ग्राम का होता है और वह 24 घंटे में 1 ग्राम बीट निकालता है. 1 वर्गमीटर में बनी क्यारी में करीब 1000 केंचुए डालने पर रोज 1 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट तैयार हो जाता है.
इपीजीइक केंचुए मेन्योर वर्म या कंपोस्ट वर्म के नाम से जाने जाते हैं. ये कूड़ाकरकट के ढेर या जमीन की सतह पर सड़ते हुए किसी भी जैविक पदार्थ की परत तक सीमित रहते हैं. ये सड़ती हुई कार्बनिक चीजों को हजम कर जाते हैं. ये काफी कम समय तक जीवित रहेते हैं, पर इन की प्रजनन दर काफी ज्यादा होती है. एंडोजीइक केंचुए जमीन की निचली खनिजयुक्त परतों में रहते हैं और कार्बनिक चीजों के बजाय मिट्टी खाने में इन की ज्यादा दिलचस्पी होती है. एनेसिक केंचुआ बहुत जटिल और गहरी सुरंग बना कर रहते हैं. ये पत्ते ज्यादा खाते हैं.
वर्मी कंपोस्ट बनाने में बरती जाने वाली सावधानियां
* विधिवत ट्रेनिंग ले कर ही वर्मी कंपोस्ट बनाना शुरू करें.
* गोबर और कूड़ा कम से कम 20 दिन पुराना जरूर हो, क्योंकि ताजा गोबर में केंचुए मर जाते हैं.
* केंचुओं को सूरज की रोशनी, ज्यादा पानी, ज्यादा गरमी, चीटियों, मेंढकों, सांपों और चिडि़यों से बचाने के उपाय करना जरूरी है.
* नमी बनाए रखने के लिए जरूरत के मुताबिक पानी का छिड़काव करते रहें.
* वर्मी कंपोस्ट बनाने से ले कर पैकिंग करने तक का काम छायादार जगह पर ही करें.