Grain Storage: उत्पादन के मुकाबले अनाज का सुरक्षित भंडारण (Storage) करना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भंडारण के दौरान अनेक भौतिक व जैविक शत्रुओं जैसे नमी, कीटों, फफूंद, जीवाणु, चूहों व चिडि़यों आदि के द्वारा 10 से 12 फीसदी अनाज बरबाद कर दिया जाता है.
इस बरबादी को रोकने में किसान तभी सक्षम होंगे, जब उन को भंडारण की सही जानकारी होगी.
विभिन्न प्रकार के भंडारघर
अनाज भंडारण का सब से अच्छा तरीका यह है, जिस में किसी कमरे के अंदर एक ऊंचा फर्श बना कर नमी से बचाने के लिए बांस की चटाई या लकड़ी के तख्ते या पौलीथीन शीट पर बोरे की छल्ली लगाई जाती है. यह छल्ली दीवारों से 2.5 फुट दूर रखें, ताकि दीवारों से सीलन अनाज के बोरों में न आ सके, साथ ही आनेजाने का रास्ता भी खुला रहे. छल्लियों की आपसी दूरी भी इस तरह रखनी चाहिए कि गोदाम के अंदर अनाज की देखरेख आसानी से की जा सके. यह कम खर्च पर ज्यादा अनाज रखने का अच्छा तरीका है.
पक्की कोठी : मध्यमवर्गीय किसान अपने अनाज का भंडारण करने के लिए इस विधि का इस्तेमाल करते हैं. 1.6 घनमीटर की पक्की कोठी में 2 मीट्रिक टन अनाज भरा जा सकता है. कमरे के एक कोने में यह पक्की बखारी ईंट, सीमेंट, बालू, मौरंग आदि से बना कर दीवारों व नीचे की सतह पर पौलीथीन शीट लगा कर इसे नमी अवरोधक बना दिया जाता है. अनाज भरने और निकालने के लिए स्टील के बने इनलेट और आउटलेट बनाए जाते हैं.
धातुटीन की बखारी : आधे टन या 1 टन की कूवत वाली बखारी जरूरत के मुताबिक बनाई जाती है, जो छोटे किसानों या घरेलू इस्तेमाल के लिए मुनासिब होती है. इसे आसानी से इधरउधर हटा भी सकते हैं. इस में नमी नहीं जा सकती है. चूहे भी इसे काट नहीं सकते हैं.
भंडारण में इन सावधानियों का ध्यान रखें:
* अनाज सुखाने व छानने के अलावा भंडारघर की सफाई व पुताई का भी खयाल रखें. कीटों से बचाव के लिए मैलाथियान 50 ईसी, 5 फीसदी घोल का 3 लीटर प्रति 100 वर्गमीटर की दर से छिड़काव करें.
* जहां तक मुमकिन हो नए बोरे इस्तेमाल करें. पुराने बोरों को मैलाथियान 50 ईसी, 5 फीसदी घोल में भिगो कर उन का शोधन कर लें.
* धूनीकरण का काम कम से कम 2 बार करना चाहिए. पहले अनाज भरते समय और दोबारा 1 महीने बाद.
* रोशनदान, दरवाजे व खिड़की आदि को धूनीकरण करने के बाद बंद कर के गीली मिट्टी से दरारें बंद कर देनी चाहिए, जिस से अंदर की जहरीली गैस बाहर न आ सके.
देशी विधि से अन्न का भंडारण करना : नीम की सूखी पत्तियों, निबौली का पाउडर, सूखी हलदी, सूखी प्याज व लहसुन से भी अन्न का भंडारण कर सकते हैं. 1 क्विंटल अन्न भंडारण के लिए 1 किलोग्राम नीम की सूखी पत्तियां, 250 ग्राम निबौली का पाउडर, आधा किलोग्राम सूखी हलदी, 1 किलोग्राम सूखी प्याज व 1 किलोग्राम लहसुन रख कर भंडारण किया जा सकता है.
भंडारित अनाजों के कीट
अनाज का पतंगा : यह कीट धान, ज्वार व मक्का में ज्यादा लगता है, पर कभीकभी जौ और गेहूं को भी नुकसान पहुंचाता है. इस की लंबाई 6 से 9 मिलीमीटर व पंखों का फैलाव करीब 16 मिलीमीटर होता है. ऊपरी पंख का रंग पीलाभूरा होता है. पंख की निचली तरफ शल्कीय बाल होते हैं, जो पिछले पंख में ज्यादा बड़े होते हैं. पिछले पंख नुकीले होते हैं, जो छोर पर कुछ मुड़े होते हैं. इस कीट का लारवा (इल्ली) 4 से 7 मिलीमीटर लंबा, सफेद रंग का होता है. इस का सिर पीले रंग का होता है. लारवा बीज के अंदर ही रहता है. इस कीट का लारवा ही नुकसान पहुंचाता है. कीड़ा लगे बीज में केवल 1 छेद होता है, जो वयस्क के निकलने का रास्ता बनता है. यह कीट खेत व भंडारघर दोनों जगह आक्रमण करता है.
गेहूं का खपड़ा : यह कीट ज्यादातर गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा व मक्का आदि में पाया जाता है. यह कीट ढेर में ऊपर ही करीब 1 फुट की गहराई तक नुकसान पहुंचाता है. यह ढेर के अंदर ज्यादा गहराई तक घुस कर नहीं खा सकता, क्योंकि इस के विकास के लिए आक्सीजन की काफी जरूरत पड़ती है. इस कीट के ग्रब ही ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. इस कीट से जुलाई से अक्तूबर के दौरान ज्यादा नुकसान होता है. यह दानों के भ्रूण वाले भागों को खाना पसंद करता है, जिस से बीज के उगने की कूवत नष्ट हो जाती है और उस की पौष्टिकता में भी कमी आ जाती है.
दालों का घुन : यह कीट ज्यादातर अरहर, उड़द, मटर, चना, मसूर, मोेठ, लोबिया व सेम वगैरह दलहन फसलों को नुकसान पहुंचाता है. इस कीट का हमला खेत व भंडारघरों दोनों जगह पर होता है. यह भंडारघरों में ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. इस के ग्रब व प्रौढ़ दोनों ही नुकसान पहुंचाते हैं, पर ज्यादा नुकसान ग्रब के द्वारा ही होता है. खेतों में इस कीट का हमला फरवरी के महीने से ही (जिस समय पौधों में हरी फलियां लगती हैं शुरू हो जाता है. यह दानों को खाता है. दाने के अंदर ग्रब जिस जगह से घुसता है, वह जगह बंद हो जाती है और दाने के अंदर ही कीट भंडाररघरों में पहुंच जाता है. यह भंडारघरों में रखी दालों पर प्रजनन कर के दालों को नुकसान पहुंचाता है.
चावल का घुन : यह कीट भंडारित अनाजों का खास शत्रु है. यह सभी अनाजों को नुकसान पहुंचाता है. इस के प्रौढ़ व ग्रब (सूंड़ी) दोनों ही नुकसान पहुंचाते हैं. मादा कीट दाने में छोटा सा छेद बना कर घुस जाती है और अंदर के पूरे हिस्से को खा लेती है. इस प्रकार दाने खोखले हो जाते हैं और खाने व बोने के लायक नहीं रहते हैं. इस कीट से ज्यादा नुकसान जुलाई से नवंबर तक होता है.
लालसुरी (सुरसाली) : यह कीट आटा, मैदा, सूजी, मूंगफली, कपास, सेम के बीज व अन्य रखे अनाजों व मेवों को नुकसान पहुंचाता है. यह केवल कटे दानों या अन्य कीटों के द्वारा प्रभावित दानों को ही हानि पहुंचाता है. इस कीट के द्वारा आटा, मैदा, सूजी आदि को नुकसान होता है. इस की संख्या ज्यादा हो जाने के कारण आटा पीला पड़ जाता है और उस में कवक विकसित हो जाती है और खास किस्म की बदबू आने लगती है. इस कीट के ग्रब व प्रौढ़ नुकसान पहुंचाते हैं. इस के द्वारा ज्यादा नुकसान बरसात के दिनों में होता है.
आटे का कीट : यह कीट टूटे बीजों व अनाज को हानि पहुंचाता है. गेहूं, जौ व चावल के अलावा यह तिलहन, मसाले वाली फसलों व सब्जियों के बीजों को भी भंडारघर में नुकसान पहुंचाता है. यह आटा व उस से बने उत्पादों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. इस का लारवा व वयस्क दोनों की हानिकारक होते हैं.
दालों का ढोरा : इस कीट का आकार गोलाकार होता है. यह 4 से 5 मिलीमीटर लंबा होता है. यह कीट भूरेधूसर रंग का होता है. इस का लारवा या ग्रब मोटा, टेढ़ा, बिना पैर का और पीलेसफेद रंग का होता है, जिस का सिर काले रंग का होता है. यह मूंग, लोबिया, मटर व चना वगैरह को नुकसान पहुंचाता है. इस कीट के वयस्क हानि नहीं पहुंचाते, केवल लारवा ही हानिकारक होता है. इस की मादा बीज के ऊपर 1-1 कर के कई अंडे देती है, उन में से केवल 1 लारवा ही बीज के अंदर विकसित होता है, जो उसे अंदर से पूरा खोखला कर के एक बड़े छेद के द्वारा बाहर निकलता है.
भंडारण व कीटों की रोकथाम
भौतिक निरीक्षण : भौतिक तरीके जैसे तापमान, नमी व आक्सीजन में बदलाव कर के भंडारित कीटों की रोकथाम की जा सकती है. भंडारण करते समय खाद्यान्नों की नमी 8-10 फीसदी रखनी चाहिए. नाइट्रोजन या कार्बन डाईआक्साइड को कृत्रिम रूप से बढ़ा कर गोदाम का गैसीय वातावरण इस तरह बदल दिया जाता है कि सभी कीट मर जाते हैं. 9-9.5 फीसदी कार्बन डाईआक्साइड कीटों के लिए घातक होती है. कुछ किसान मिट्टी या बालू मिला कर अनाज रखते हैं. इस से कीटों को अनाज में आनेजाने में दिक्कत होती है और उन का शरीर घायल हो जाता है. लिहाजा उन का हमला कम होता है. दालों को कीटों से सुरक्षित रखने के लिए नारियल, मूंगफली या सरसों के तेल का इस्तेमाल करना लाभकारी रहता है. दालों को यदि दल कर रखा जाए तो दली हुई दालों पर कीट कम आक्रमण करते हैं.
यांत्रिक तरीके : अनाज की छंटाई जरूर करें. टूटे, कटे, चटके अनाज संक्रमण को बढ़ावा देते हैं. कीटों से संक्रमित अनाज की छनाई नियमित रूप से करें और छनाई के बाद बचे अवशेष को नष्ट कर दें, वरना कीड़े रेंग कर दोबारा भंडारघर तक पहुंच जाएंगे. इस काम को भंडारघर से दूर ही करें.
खाद्यान्नों की छनाई : कीट नियंत्रण के यांत्रिक उपायों में छनाई का स्थान खास है. भंडारित खाद्यान्नों की छनाई करना बहुत प्रभावकारी व व्यावहारिक होता है. छनाई से कीटग्रस्त खद्यान्नों को अलग किया जाना चाहिए. आमतौर पर छनाई का काम भंडारघर से दूर किया जाना चाहिए.
धूमन : भंडारघर में कीटनाशी रसायनों को गैस के रूप में इस्तेमाल करने की क्रिया को धूमन कहा जाता है. धूमन करने में बहुत सावधानी व तकनीकी जानकारी की जरूरत होती है. लिहाजा विशेषज्ञों की मौजूदगी में ही धूमन किया जाना चाहिए.
धूमन के लिए बहुत से कीटनाशी बाजार में मौजूद हैं. इथलीन डाईब्रोमाइट एंपुल, एथलीन डाईक्लोराइड और कार्बन टेट्रा क्लोराइड मिक्सचर व इथलीन डाईब्रोमाइड फार्म स्तर पर काम में लिया जा सकता है. एल्यूमिनियम फास्फाइड का इस्तेमाल वेयर हाउस व गोदामों में किया जा सकता है. ईडीबी एंपुल की दर 3 मिलीलीटर प्रति क्विंटल व एल्यूमिनियम फास्फाइड की दर 1 गोली प्रति 1 टन की रहती है. भंडारघर को 7 दिनों तक बंद रखना चाहिए.
अन्य तरीके
अनाज को सुखाना : अनाज में यदि नमी की मात्रा 10 फीसदी से कम होती है, तो उस में कीटों की बढ़ोतरी नहीं हो पाती है या वे मर जाते हैं. लिहाजा हलकी पर्त में अनाज को फैला कर धूप में सुखाते हैं, किंतु यह बात विशेष ध्यान देने की है कि अनाज को कभी जरूरत से ज्यादा नहीं सुखाना चाहिए, वरना ज्यादा गरमी से बीज नष्ट हो जाते हैं या उन में झुर्रियां पड़ सकती हैं.
ऊपर बताए तमाम तरीकों को अपनाते हुए अनाज को भंडारघरों में रखने की वैज्ञानिक विधि अपनानी चाहिए. अनाज जब वायु अवरुद्ध (एयर टाइट) गोदामों में रखा जाता है, तो गोदामों की आक्सीजन अनाजों द्वारा सोख ली जाती है और बदले में कार्बन डाईआक्साइड बाहर निकाली जाती है. इस से वातावरण जहरीला हो जाता है. 9-9.5 फीसदी कार्बन डाईआक्साइड की मौजूदगी में कीट मर जाते हैं.
भंडारघर में अपनाएं ये सुरक्षात्मक तरीके :
* खलिहान गांव व भंडारघर से दूर होने चाहिए, क्योंकि भंडारघरों से कीट खेतों व खलिहानों में पहुंच कर आगामी फसल की बालयों पर अपना ठिकाना बनाते हैं.
* कटाई की मशीनों को अच्छी तरह साफ कर लें वरना थ्रेशर आदि में पहले से इन कीटों की किसी न किसी रूप में मौजूदगी बनी रहती है, जो अनाज को संक्रमित कर देती है.
* अनाज की ढुलाई के साधनों ट्रैक्टर या बैलगाड़ी आदि को कीटरहित कर लें.
* भंडारण से पहले गोदामों को साफ करें. दरारों की विशेष सफाई करें. मिट्टी से बने भंडारघरों में पहले से बने छेदों को मिट्टी या सीमेंट से बंद कर दें. जाले आदि की सफाई कर दें.
* चूहों के बिलों को शीशे के बारीक टुकड़े मिट्टी के घोल में मिला कर बंद कर दें.
* भंडारघरों की चूने से पुताई कराएं.
* मैलाथियान 50 फीसदी 3 लीटर मात्रा प्रति 100 वर्गमीटर की दर से ले कर भंडारघरों में छिड़काव करें. अनाज भरने के बोरों का भी कीटनाशकों से उपचार करें.
* ऐसे बीज जिन की बोआई अगली फसल में करनी हो, उन को कीटनाशी जैसे 6 मिलीलीटर मैलाथियान या 4 मिलीलीटर डेल्टामेथ्रिन को 500 मिलीलीटर पानी में घोल कर 1 क्विंटल बीज की दर से उपचारित करें व छाया में सुखा कर भंडारण करें.
* कीटनाशी द्वारा उपचारित इस प्रकार के बीजों को किसी रंग द्वारा रंग कर भंडार पात्र के ऊपर उपचारित लिख देते हैं. इस तरह का उपचार कम से कम 6 महीने तक प्रभावी होता है. पर ऐसा उपचार खाने वाले अनाजों में नहीं करना चाहिए.
* बीज भरी बोरियों या थैलों को लकड़ी की चौकियों, फट्टों या 1000 गेज की पौलीथीन चादर या बांस की चटाई पर रखना चाहिए ताकि उन में नमी का असर न हो सके.
पारद की टिकड़ी द्वारा अन्न का भंडारण : 1 क्विंटल अनाज के लिए 5-6 टेबलेट काफी होती हैं. यह एक आयुर्वेदिक दवा है. इस दवा से भंडारित अनाज किसी भी तरह स्वास्थ्य के प्रति नुकसानदायक नहीं होता है. इस टिकड़ी से कोई भी अन्न भंडारित किया जा सकता है.
अनाज भंडारण के लिए रसायनों का इस्तेमाल
एल्युमिनियम फास्फाइड : घुन व चूहे वगैरह को मारने के लिए इस रसायन का इस्तेमाल किया जाता है. बड़ेबड़े भंडारघर जो घरों से दूर होते हैं या व्यापारिक भंडारघरों में इस रसायन का इस्तेमाल 1 या 2 टिकिया प्रति मीट्रिक टन के हिसाब से किया जाता है. जैसे ही इस की टिकिया खोल कर हवा में बाहर निकाली जाती है, तो हवा के संपर्क में आते ही इस में से फास्फीन गैस तैयार होने लगती है, जो बेहद जहरीली होती है.
थोड़ी सी असावधानी से यह गैस जानलेवा हो सकती है. इसी कारण घरों में इस का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. इन टिकियों को अनाज की मात्रा के हिसाब से गोदाम में बिखेर दिया जाता है. दवा डालने के बाद वायु अवरोधी गोदाम बंद कर देना चाहिए.
जिंक फास्फाइड : घर से दूर बने गोदामों में चूहे से सुरक्षा के लिए जिंक फास्फाइड को 1:39 के अनुपात में भुने दानों या आटे के साथ मिला कर चारा तैयार कर लेना चाहिए. इस में थोड़ा सा मीठा तेल अच्छी गंध के लिए मिला देना चाहिए. इस तरह बने चारे को 15 ग्राम की पुडि़या बना कर गोदामों में इधरउधर चूहों के चलनेफिरने के रास्ते में रख देना चाहिए और बिलों में भी पुडि़या रख कर बिल गीली मिट्टी से बंद कर देने चाहिए.
वारफैरिन, क्यूमैरिन : यह एक धीमा जहर है. इसे खा कर चूहे कई दिनों बाद मरते हैं, लिहाजा चूहों का पूरा परिवार धीरेधीरे इस के प्रभाव में आ जाता है. यह इनसानों और पालतू पशुओं के लिए काफी सुरक्षित है. इस दवा को भी 1:39 के अनुपात में दानों या आटे के साथ मिला कर थोड़ी चीनी भी मिलाते हैं. इस में थोड़ा मीठा तेल भी मिलाया जाता है.
भंडारण के खास निर्देश
अनाज के दानों को अच्छी तरह से सुखा दें, ताकि भंडारण करने के बाद अनाज खराब न हो. वैज्ञानिकों ने अनाज के भंडारण से पहले भंडारघर की सफाई पर भी जोर दिया है. सफाई के बाद ही अनाज का भंडारण करें. लोग घरों में अनाज का भंडारण तो करते हैं, लेकिन उन्हें भंडारण की विधि की ठीक जानकारी नहीं होती. ऐसे में अनाज ज्यादा दिनों तक ठीक नहीं रह पाता है, इसलिए जरूरी है कि भंडारघर में अनाज रखने से पहले उस की अच्छी तरह से सफाई कर लें. सब से पहले बीज भंडारण के लिए इस्तेमाल होने वाले कमरे, गोदाम या पात्र जैसे कुठला आदि के छेदों व दरारों को गीली मिट्टी या सीमेंट से भर दें.
यदि भंडारण कमरे या गोदाम में करना है, तो उसे अच्छी तरह साफ करने के बाद 4 लीटर मैलाथियान या डीडीवीपी को 100 लीटर पानी में (40 मिलीलिटर कीटनाशी 1 लीटर पानी में) घोल कर हर जगह छिड़काव करें. बीज रखने के लिए नई बोरियों का इस्तेमाल करें. यदि बोरियां पुरानी हैं, तो उन्हें गरम पानी में 50 सेंटीग्रेड पर 15 मिनट तक भिगोएं या फिर उन्हें 40 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ईसी या 40 ग्राम डेल्टामेथ्रिन 2.5 डब्ल्यूपी (डेल्टामेथ्रिन 2.8 ईसी की 38.0 मिलीलीटर मात्रा) प्रति लीटर पानी के घोल में 10 से 15 मिनट तक भिगो कर छाया में सुखा लें. इस के बाद उन में बीज या अनाज भरें.
यदि मटके में भंडारण करना है, तो पात्र में जरूरत के हिसाब से उपले डालें और उस के ऊपर 500 ग्राम सूखी नीम की पत्तियां डाल कर धुआं करें व ऊपर से बंद कर के वायु अवरोधी कर दें. उस पात्र को 4 से 5 घंटे बाद खोल कर ठंडा करने के बाद साफ कर के बीज या अनाज का भंडारण करें. यदि मटका अंदर व बाहर से एक्रीलिक (एनेमल) पेंट से पुता हो तो 20 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ईसी को 1 लीटर पानी में मिला कर बाहर छिड़काव करें व छाया में सुखा कर इस्तेमाल करें.
बीज या अनाज भरने के बाद पात्र का मुंह बंद कर के उसे वायु अवरोधी कर दें. किसी भी जगह या पात्र में बीज रखने से पहले बीजों को अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए, जिस से नमी की मात्रा 10 फीसदी या उस से कम रह जाए. कम नमी वाले बीजों को ज्यादातर कीट नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं.
यदि भंडारण गोदाम में कर रहे हैं, तो कभी भी पुराने बीज या अनाज के साथ नए बीज या अनाज को नहीं रखना चाहिए. भंडारण करने से पहले यह जांच कर लेनी चाहिए कि बीज में कीड़े लगे हैं या नहीं. यदि लगे हों, तो भंडारघर में रखने से पहले उन्हें एल्युमिनियम फास्फाइड द्वारा शोधित कर लेना चाहिए.
भंडारघर को 15 दिनों में 1 बार जरूर देखना चाहिए. बीजों में कीटों की मौजूदगी और फर्श व दीवारों पर जीवित कीट दिखाई देने पर जरूरत के मुताबिक कीटनाशी का छिड़काव करना चाहिए. यदि कीटों का प्रकोप शुरुआती है, तो 40 मिलीलीटर डीडीवीपी प्रति लीटर पानी के हिसाब से मिला कर बोरियों के ऊपर व हर जगह छिड़काव करें.
कीट नियंत्रण हो जाने के बाद हर 15 दिनों बाद कीटनाशकों को अदलबदल कर छिड़काव करते रहना चाहिए. भंडारघर के कचरे को जला दें या दबा कर नष्ट कर दें. भंडारघर की छत, दीवार व फर्श पर 1 भाग मैलाथियान 50 ईसी को 100 भाग पानी में मिला कर छिड़काव करें. यदि पुरानी बोरियों का इस्तेमाल करना पड़े, तो उन्हें 1 भाग मैलाथियान व 100 भाग पानी के घोल में 10 मिनट तक भिगो कर छाया में सुखा लें. उस के बाद अनाज का भंडारण करें. इस से अनाज ज्यादा दिनों तक ठीक रहता है.