Poultry Farming : लगन से किया गया काम कभी बेकार नहीं जाता, बल्कि इनसान की आमदनी का जरीया बन जाता है. ऐसा ही कर दिखाया है कुम्हेर पंचायत समिति क्षेत्र के पैंगोर गांव के नगला गधेड़ा निवासी पूर्व सैनिक सतवीर सिंह ने. उन्होंने करीब 6 लाख रुपए खर्च कर के मुरगीपालन का काम वैज्ञानिक तरीके से शुरू किया. आज वे हर महीने करीब 80000 रुपए कमा रहे हैं.
सीमा सुरक्षा बल के जवान सतवीर सिंह ने 24 साल काम करने के बाद मरजी से नौकरी छोड़ दी और गांव आ कर रोजगार की तलाश शुरू की. उन के मन में ऐसा काम करने की इच्छा थी, जो उन्हें ज्यादा मुनाफा दे सके. स्वयंसेवी संस्था लुपिन फाउंडेशन ने उन्हें मुरगीपालन करने की सलाह दी, क्योंकि दिल्ली, गुड़गांव, मथुरा, आगरा, ग्वालियर जैसे बड़े शहरों में मुरगियों की काफी मांग है. सब से पहले उन्हें घरेलू मुरगीपालन (बैकयार्ड) शुरू करने के लिए कहा गया. उन्होंने लुपिन फाउंडेशन से बैकयार्ड के लिए चूजे ले कर काम शुरू किया.
बैकयार्ड मुरगीपालन के दौरान सतवीर सिंह को इस बात का अच्छी तरह से पता चल गया कि मुरगियों में ज्यादातर कौनकौन सी बीमारियां फैलती हैं और उन की रोकथाम के क्या तरीके हैं. उन्होंने अपनी 4 बीघे जमीन में करीब 15000 चूजों का पालन करने के लिए वैज्ञानिक तरीके से शेडों को बनवाया. तापमान नियंत्रण के लिए शेडों की छतों पर फव्वारे और अंदर हीटर लगवाए. हर शेड में सेंसर भी लगाए गए, जिस से तापमान बढ़ते ही फव्वारे खुद चालू हो जाते हैं और तापमान में गिरावट आते ही हीटर काम करना शुरू कर देते हैं. बिजली की व्यवस्था के लिए सोलर पैनल लगाए गए ताकि रोशनी व अन्य कामों के लिए बिजली पर होने वाले खर्च की बचत हो सके. इस के अलावा जनरेटर भी खरीदा गया, जो सप्लाई बंद होने पर खुल चालू हो जाता है.
मुरगीपालन के लिए शेड बनवाने के बाद वे हरियाणा के जींद कसबे से करीब 11000 हाईब्रिड ब्रायलर चूजे ले आए. आसपास के क्षेत्रों में चूजे सप्लाई की व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्हें 1 चूजा करीब 50 रुपए का मिला. इन चूजों के भोजन के लिए वे मुरगियों के इस्तेमाल में आने वाला फीड भी ले आए.
सतवीर सिंह ने पूरे वैज्ञानिक तरीके से मुरगीपालन का काम शुरू किया. कोई समस्या होती तो वे फाउंडेशन के मुरगीपालन विशेषज्ञ से सलाह ले लेते.
मुरगीपालक सतवीर सिंह के पास एकसाथ करीब 11000 मुरगियां होने की वजह से खरीदार उन के गांव ही पहुंच जाते. वे मंडी का भाव देख कर उन की सप्लाई करते. वे अपने चूजों को आगरा, मथुरा व अलीगढ़ सहित विभिन्न शहरों के लिए सप्लाई करते. बदलते मौसम व त्योहारों के दिनों में जब मुरगियों की खपत घट जाती है, तो वे चूजों की संख्या में भी कमी कर देते हैं.
सतवीर सिंह रोजाना शेड में जा कर देखते हैं कि कोई चूजा बीमार तो नहीं है या उस ने खानापीना बंद कर रखा है. चूजों के इलाज के लिए वे विशेषज्ञों द्वारा दी गई सलाह के आधार पर दवाएं लाते हैं.
सतवीर सिंह इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि मुरगियों में फैलने वाली बर्डफ्लू नाम की बीमारी तो नहीं है, इस के लिए वे पशुपालन विभाग की टीम को मुरगियों के खून के नमूने मुहैया कराते हैं.
सतवीर सिंह द्वारा शुरू किए गए मुरगीपालन के काम में हो रही आमदनी को देख कर गांव व आसपास के क्षेत्रों के करीब आधा दर्जन लोगों ने भी मुरगीपालन का काम शुरू कर दिया है.
वैसे लुपिन फाउंडेशन ने भरतपुर जिले में करीब 200 मुरगीपालन की यूनिटें शुरू कराई हैं. मुरगीपालकों को फाउंडेशन न्यूनतम दरों पर चूजे मुहैया कराने के अलावा मुरगियों में फैलने वाले खास रोगों की रोकथाम की व्यवस्था भी कर रहा है. इस के अलावा गरीब तबके के लोगों के लिए संस्था ने घरेलू मुरगीपालन (बैकयार्ड पोल्ट्री) भी शुरू कराया है. करीब 600 लोग इस काम से जुड़े हुए हैं. गरीब लोगों के लिए बैकयार्ड पोल्ट्री अतिरिक्त आमदनी का जरीया बनी हुई है.