Medicinal Plant: सतावर (Asparagus) लिलिएसी कुल का पौधा है, जिस का अंगरेजी नाम एस्परगस और वानस्पतिक नाम एस्परगस रेसीमोसम (वनीय) है. सतावर की खेती भारत के उष्ण कटिबंधी व उपोष्ण क्षेत्र में सफलतापूर्वक की जाती है.

सतावर (Asparagus) एक औषधीय पौधा (Medicinal Plant) है, जिस का इस्तेमाल होम्योपैथिक दवाओं में किया जाता है. भारत में तमाम दवाओं को बनाने के लिए हर साल 500 टन सतावर की जड़ों की जरूरत पड़ती है.

बोआई के लिए कैसी हो मिट्टी : इस फसल के लिए लैटेराइट, लाल दोमट मिट्टी जिस में सही जल निकासी सुविधा हो, मुफीद होती है.

20-30 सेंटीमीटर गहराई वाली मिट्टी में इसे आसानी से उगाया जा सकता है.

जलवायु : यह फसल विभिन्न कृषि मौसमों व हालात के तहत उग सकती है. इसे मामूली पर्वतीय क्षेत्रों और पश्चिमी घाट के मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है. यह सूखे के साथसाथ कम तापमान सह लेती है.

सतावर की प्रजातियां : सतावर की 2 ही किस्में होती हैं. पीली जड़ वाली सतावर और सफेद जड़ वाली सतावर.

सफेद जड़ वाली सतावर का उत्पादन ज्यादा होता है, मगर 1 किलोग्राम जड़ से महज 80 से 100 ग्राम चूर्ण हासिल होता है, जबकि पीली जड़ वाली सतावर का उत्पादन सफेद जड़ वाली सतावर से कम होता है, मगर 1 किलोग्राम जड़ से करीब 150 ग्राम चूर्ण हासिल होता है. सतावर की एक नामित विकसित की गई किस्म सिम शक्ति है, जिसे अधिक उत्पादन के लिए उगाया जा रहा है. इस की जड़ें हलकी पीले रंग की होती हैं.

खाद व उर्वरक : सतावर की फसल को प्रति हेक्टेयर 20 टन गोबर की सड़ी खाद की जरूरत होती है. 1 हेक्टेयर के लिए करीब 25000 पौधों की जरूरत होती है. मौजूदा समय में सतावर की फसल को ज्यादातर जैविक रूप में ही उगाया जा रहा है.

रोपाई : सतावर को जड़चूषकों या बीजों द्वारा ही लगाया जाता है. व्यावसायिक खेती के लिए बीजों की बजाय जड़चूषकों का ही इस्तेमाल किया जाता है.

सतावर लगाए जाने वाले खेत की मिट्टी को 15 सैंटीमीटर की गहराई तक अच्छी तरह खोदा जाता है और अपनी सुविधा के अनुसार खेत को क्यारियों में बांट दिया जाता है.

सतावर के अच्छी तरह विकसित जड़चूषकों को लाइनों में रोपा जाता है.

सिंचाई : पौधों की रोपाई के तुरंत बाद खेत की सिंचाई की जाती है. इसे 1 महीने तक नियमित रूप से 4-6 दिनों के अंतराल पर पानी दिया जाता है. इस के बाद 6 से 8 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जाती है.

पौधों को सहारा देना : सतावर की फसल लता वाली होने के कारण इस की सही बढ़वार के लिए इसे सहारे की जरूरत होती है. इस के लिए 4 से 6 फुट लंबी लकड़ी की स्टिक का इस्तेमाल किया जाता है.

खरपतवारों की रोकथाम : सतावर के पौधों की बढ़वार के शुरुआती समय के दौरान नियमित रूप से खरपतवार निकालने चाहिए.

खरपतवार निकालते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बढ़ने वाले पौधे को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे. फसल को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिए करीब 6 से 8 बार हाथ या हैंड हो से खरपतवार निकालने की जरूरत होती है.

Medicinal Plants

पौध सुरक्षा : सतावर की फसल में कोई भी गंभीर नाशीजीव और रोग देखने में नहीं आया है. यानी सतावर की फसल रोग व कीट मुक्त होती है.

कटाई, प्रसंस्करण व उपज : रोपाई के 12 से 14 महीने बाद इस की जड़ें परिपक्व होने लगती हैं यानी पूरी तरह तैयार हो जाती हैं. 1 पौधे से ताजी जड़ों की करीब 500 से 600 ग्राम पैदावार हासिल की जा सकती है. वैसे प्रति हेक्टेयर क्षेत्र से 12000 से 14000 किलोग्राम ताजी जड़ें हासिल की जा सकती हैं, जो सूखने के बाद करीब 1000 से 1200 किलोग्राम रह जाती हैं.

सतावर के औषधीय इस्तेमाल

* सतावर की जड़ों का इस्तेमाल मुख्य रूप से ग्लैक्टागोज के लिए किया जाता है, जो स्तनों के दूध के स्राव को उत्तेजित करता है.

* इस का इस्तेमाल शरीर के कम होते वजन में सुधार के लिए किया जाता है और इसे कामोत्तेजक के रूप में भी जाना जाता है.

* इस की जड़ों का इस्तेमाल दस्त, क्षय रोग व मधुमेह के इलाज में भी किया जाता है.

* सामान्य तौर पर इसे स्वस्थ रहने और रोगों से बचाव के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

* इसे कमजोर शरीर प्रणाली में बेहतर शक्ति प्रदान करने वाला पाया गया है.

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